Chapter 3. अधिगम

अधिगम का अर्थ एवं परिभाषाएँ

वुडवर्थ के अनुसार−‘‘नवीन ज्ञान और नवीन प्रतिक्रियाओं को प्राप्त करने की प्रक्रिया अधिगम की प्रक्रिया है।’’
स्कीनर के अनुसार−सीखना‚ व्यवहार में उत्तरोत्तर सामंजस्य की एक प्रक्रिया है।’’
क्रो व क्रो के अनुसार−‘‘सीखना आदतों‚ ज्ञान और अभिवृत्तियों का अर्जन है।’’
गेट्‌स व अन्य के अनुसार−‘‘सीखना अनुभव व प्रशिक्षण द्वारा व्यवहार में परिवर्तन है।’’
क्रोनबैक के अनुसार−‘‘अधिगम की अभिव्यक्ति अनुभव के परिणामस्वरूप व्यवहार में परिवर्तन के रूप में होती है।’’
गिलफोर्ड के अनुसार−‘‘व्यवहार के कारण व्यवहार में आया कोई भी परिवर्तन अधिगम है।’’ इस प्रकार हम कह सकते हैं कि सीखना या अधिगम क्रिया द्वारा व्यवहार में परिवर्तन है‚ व्यवहार में हुआ यह परिवर्तन कुछ समय तक बना रहता है‚ यह परिवर्तन व्यक्ति के पूर्व अनुभवों पर आधारित होता है।
अधिगम की विशेषताएँ
योकम तथा सिम्पसन ने अधिगम की निम्नलिखित विशेषताओं की चर्चा की है−
(i) अधिगम विकास है।
(ii) अधिगम समायोजन है।
(iii) अधिगम सोद्‌देश्य है।
(iv) अधिगम क्रियाशील है।
(v) अधिगम व्यक्तिगत व सामाजिक दोनों है।
(vi) अधिगम अनुभवों का संगठन है।
(vii) अधिगम विवेकपूर्ण व सृजनशील है।
(viii) अधिगम वातावरण के परिणामस्वरूप होता है।
(ix) अधिगम व्यक्ति के आचरण को प्रभावित करता है।
मैककाव ने अधिगम की निम्न विशेषताएँ बतायी हैं−
(i) अधिगम व्यवहार में सतत्‌ परिवर्तन है जो जीवन पर्यन्त चलता है।
(ii) अधिगम सार्वभौमिक व सर्वांगीण है।
(iii) अधिगम में व्यक्ति सम्पूर्ण रूप से (शारीरिक एवं मानसिक रूप से) सम्मिलित रहता है।
(iv) अधिगम अधिकांशत: व्यवहार के संगठन में परिवर्तन होता है।
(v) अधिगम विकासात्मक होता है।
(vi) अधिगम तैयारी व अभिप्रेरणा पर निर्भर करता है।
अधिगम के प्रकार-
अधिगम किये जाने वाले कार्य की प्रकृति के आधार पर अधिगम को तीन प्रकारों में बाँटा जा सकता है−
(i) शाब्दिक अधिगम (ii) गत्यात्मक अधिगम (iii) समस्या समाधान अधिगम
शैक्षिक उद्‌देश्यों के परिप्रेक्ष्य में अधिगम को तीन पक्षों में विभक्त किया जा सकता है−
(i) संज्ञानात्मक अधिगम (ii) भावात्मक अधिगम (iii) चेष्टात्मक अधिगम या क्रियात्मक अधिगम
शिक्षण के स्तर के आधार पर अधिगम के तीन प्रकार हैं−
(i) स्मृति स्तर अधिगम (ii) अवबोध स्तर अधिगम (iii) चिंतन स्तर अधिगम
आ. एन. गैने ने अधिगम की प्रकृति को समझने के लिए अधिगम को आठ भागों में विभक्त किया जो कि सोपान की क्रम में व्यवस्थित हैं−
1. संकेत अधिगम− इसे क्लासिकल अनुबंधन भी कहा जाता है।
इस प्रकार का अधिगम पावलव द्वारा प्रतिपादित क्लासिकल अनुबंधन सिद्धान्त के अनुरूप होता है। इस प्रकार का सीखना यांत्रिक होता है इसलिए गैने ने इसे सबसे नीचे रखा है।
2. उद्‌दीपक अनुक्रिया अधिगम− इसे क्रियाप्रसूत अनुबंधन भी कहा जाता है। इस प्रकार का सीखना स्कीनर के सिद्धान्त ‘क्रियाप्रसूत अनुबंधन सिद्धान्त’ पर आधारित है।
3. श्रृंखला अधिगम− इसे क्रमिक अधिगम भी कहते हैं। इस प्रकार के अधिगम में अधिगम सामग्री क्रमबद्ध रूप में व्यवस्थित रहती है तथा प्राणी एक-एक करके क्रम से अधिगम सामग्री को सीखता है। वर्णमाला‚ गिनती पहाड़ा‚ ऐतिहासिक विवेचन आदि इसके सरल उदाहरण हैं।
4. शाब्दिक अधिगम− इस प्रकार के अधिगम से तात्पर्य शब्दों‚ वाक्यों‚ वार्तालाप‚ साहित्य‚ लेखन सम्बन्धी अधिगम से है‚ जो शाब्दिक व्यवहार में परिवर्तन लाने से सम्बन्धित रहता है।
5. बहु-विभेद अधिगम− इसके अन्तर्गत प्राणी विभिन्न समान वस्तुओं में विभेद करना सीखता है।
6. सम्प्रत्यय अधिगम− इस प्रकार के अधिगम से तात्पर्य पूर्व अनुभवों‚ प्रशिक्षण अथवा संज्ञानात्मक प्रक्रियाओं के आधार पर सम्प्रत्ययों का निर्माण करने से होता है।
7. सिद्धान्त अधिगम− सिद्धान्त अधिगम से तात्पर्य सिद्धान्तों को समझने से है।
8. समस्या-समाधान अधिगम− समस्या समाधान अधिगम के अन्तर्गत प्राणी अपनी समस्याओं का स्वयं समाधान करना सीखता है।

अधिगम को प्रभावित करने वाले कारक

अधिगम को निम्नलिखित कारक प्रभावित करते हैं−
1. बालक का शारीरिक व मानसिक स्वास्थ्य− शारीरिक दृष्टि से स्वस्थ्य तथा मानसिक रूप से स्वस्थ बालक सीखने में रुचि लेते हैं जिससे वे शीघ्रता से सीख जाते हैं। इसके विपरीत कमजोर‚ बीमार तथा मानसिक अस्वस्थता वाले बच्चे सीखने में कठिनाई का अनुभव करते हैं।
2. परिपक्वता− शारीरिक व मानसिक रूप से परिपक्व होने पर सीखने की गति बढ़ जाती है‚ जिससे सीखने का स्तर भी बढ़ जाता है।
3. सीखने की इच्छा− जिस बात को सीखने की प्रबल इच्छा होती है व्यक्ति उस बात को जल्दी सीख जाता है जबकि इच्छा न होने पर वह नहीं सीख पाता है।
4. प्रेरणा− सीखने के लिए बच्चों को प्रेरित करना अत्यन्त आवश्यक है। इसलिए समय-समय पर प्रशंसा‚ प्रोत्साहन तथा प्रतियोगिता के आधार पर सीखने को प्रोत्साहित करना चाहिए।
5. विषय सामग्री का स्वरूप− छात्रों के रुचि‚ बुद्धि‚ अभिक्षमता के अनुरूप विषय-वस्तु होने पर वे जल्दी सीख जाते हैं जबकि कठिन‚ नीरस तथा अर्थहीन विषय सामग्री होने पर बच्चे नहीं सीख पाते हैं।
6. वातावरण− भौतिक व सामाजिक दोनों ही वातावरण अधिगम को प्रभावित करते हैं। शुद्ध वायु‚ उचित प्रकाश‚ शांत वातावरण एवं मौसम की अनुकूलता के बीच बच्चे जल्दी सीख जाते हैं।
7. शारीरिक एवं मानसिक थकान− शिक्षण अधिगम प्रक्रिया के लिए समय सारिणी का बड़ा महत्व है। कठिन विषय थोड़े समय में ही छात्रों को थका देते हैं। इसलिए समय-सारिणी में कठिन विषयों को पहले व सरल विषयों को बाद में स्थान दिया जाता है। कालांशों के बीच विश्रान्तिकाल का भी ध्यान रखना चाहिए‚ इससे थकान का प्रभाव कम हो जाता है।
• इसके अतिरिक्त बुद्धि‚ रुचि‚ अभिक्षमता‚ जीवन का लक्ष्य‚ विषय का ज्ञान‚ व्यवहार‚ पूर्व अधिगम‚ व्यक्तित्व‚ शिक्षण विधि‚ बाल केन्द्रित शिक्षा‚ अनुशासन‚ पाठ्‌यवस्तु का संगठन एवं उसका जीवन से सम्बन्ध जैसे कारक भी अधिगम को प्रभावित करते हैं।

अधिगम की प्रभावशाली विधियाँ

अधिगम की प्रभावशाली विधियाँ निम्नलिखित हैं−
1. करके सीखना− बच्चे जिस कार्य को स्वयं करते हैं उसे वे जल्दी सीख जाते हैं। इसलिए आधुनिक बाल केन्द्रित शिक्षा प्रणाली इसी पर आधारित है।
2. अनुकरण द्वारा सीखना− विद्यालय में बच्चे‚ की जाने वाली क्रियाओं का अनुकरण करके सीखते हैं। इस विधि में शिक्षक छात्र के लिए आदर्श स्वरूप होता है। हैगार्ट के अनुकरण द्वारा सीखने का सिद्धान्त से भी यह स्पष्ट हो जाता है कि बच्चे अनुकरण द्वारा सीखते हैं।
3. निरीक्षण करके सीखना− बच्चे जिस वस्तु का निरीक्षण करते हैं उसके बारे में वे जल्दी और स्थायी रूप से सीख जाते हैं। इसका कारण है कि निरीक्षण करते समय वे उस वस्तु को छूते हैं‚ या प्रयोग करते हैं या आपस में उसके बारे में चर्चा करते हैं‚ इस प्रकार वे अपने एक से अधिक इन्द्रियों का प्रयोग करते हैं।
4. परीक्षण करके सीखना− इसके अन्तर्गत छात्र अपनी आवश्यकता के अनुरूप सामग्री का परीक्षण करते हैं तथा ज्ञान प्राप्त करते हैं। इस विधि को विज्ञान‚ गणित‚ सामाजिक विज्ञान एवं नैतिक शिक्षा आदि में प्रयोग किया जा सकता है।
5. सामूहिक विधियों द्वारा सीखना− इस सम्बन्ध में कोलसनिक का मत है कि बालक को प्रेरणा प्रदान करने‚ उसे शैक्षिक लक्ष्य को प्राप्त करने में सहायता देने‚ उनके मानसिक स्वास्थ्य को उत्तम बनाने‚ उसके व्यवहार में सुधार करने और उसमें आत्मनिर्भरता तथा सहयोग की भावनाओं का विकास करने के लिए सामूहिक विधियाँ अधिक प्रभावशाली होती हैं। मुख्य सामूहिक विधियाँ निम्नलिखित हैं−
(i) सम्मेलन व विचारगोष्ठी विधि− इस विधि में किसी विशेष विषय पर छात्र/छात्राओं द्वारा विचार-विमर्श‚ वाद-विवाद एक निश्चित समय में करना होता है। इसमें ऐसे प्रकरण पर विचार किया जाता है जिसमें सभी सदस्यों की रुचि होती है। इसके द्वारा सामाजिक एवं भावात्मक गुणों के विकास के साथ-साथ दूसरों के विरोधी विचारों का सम्मान एवं सहनशीलता की भावना विकसित की जाती है।
(i) प्रोजेक्ट विधि− इसमें प्रत्येक छात्र अपनी व्यक्तिगत रुचि‚ ज्ञान और क्षमता के अनुसार स्वतंत्र रूप से कार्य करते हैं‚ जिससे सीखना सरल हो जाता है। सामूहिक रूप से कार्य करने के कारण उनमें स्पर्द्धा‚ सहयोग और सहानुभूति का भी विकास होता है।
(iii) समूह अधिगम− इसके अन्तर्गत सीखने वालों को विभिन्न समूह में बाँट दिया जाता है। सीखने वालों को अपने साथियों के साथ खुले मन से विषय-वस्तु पर आधारित अपने विचारों एवं भावों को अभिव्यक्त करने का अवसर मिलता है। इसका मुख्य उद्‌देश्य छात्रों को अपनी समस्याओं का स्वयं निराकरण करने के लिए प्रोत्साहित करना तथा उन्हें समाधान निकालने के लिए अवसर प्रदान करना होता है।
अच्छे शिक्षक के गुण− • गतिविधियों के निर्माण की क्षमता • स्पष्ट निर्देश • बच्चे की मानसिक क्षमता पहचानना • निरन्तर सीखने वाला • विषय-वस्तु का पर्याप्त ज्ञान • झिझक न होना • पूर्व ज्ञान से जोड़ने का कौशल • शिक्षण पूर्व योजना • वक्ता के साथ श्रोता • भयमुक्त कक्षा • पूर्वाग्रह मुक्त • पक्षपात रहित व्यवहार इसके अतिरिक्त वाचन विधि‚ प्रयास एवं त्रुटि विधि‚ पूर्ण विधि‚ अंश विधि‚ अंतराल विधि‚ सतत्‌ विधि अधिगम की अन्य विधियाँ हैं।
ध्यान देने योग्य बातें− अधिगम विधियाँ कैसी हों−• किसी भी विषय का शिक्षण बच्चों के पूर्व ज्ञान एवं अर्जित क्षमताओं पर निर्भर करता है। • सीखने की विधियाँ ऐसी हों‚ जो बच्चों को सीखने में आत्मनिर्भर बनाये • बच्चे स्वतंत्र रूप से सीखने के लिए प्रेरित हो। • वे सीखने में आनन्द अनुभव करें। • उनमें आपस में सहयोग की भावना विकसित हो।

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