Chapter Notes and Summary
प्रस्तुत पाठ ‘शुक्रतारे के समान’ में महात्मा गांधी के निजी सहायक महादेव भाई देसाई के बेमिसाल व्यक्तित्व तथा गांधीजी के साथ उनके संघर्षपूर्ण जीवन का सिलसिलेवार विवरण दिया गया है। यह लेख मूलत: गुजराती भाषा में है‚ जिसका हिंदी अनुवाद यहाँ प्रस्तुत किया गया है। महादेव भाई की कर्मठता‚ समर्पण‚ सज्जनता तथा सरलता को लेखक ने पूरी ईमानदारी से उकेरा है।
लेखक ने महादेव भाई की तुलना उस शुक्रतारे से की है जो चंद्रमा का साथी है और जो आकाश रूपी जीवनपथ पर अपनी चमक बिखेरता हुआ लुप्त हो गया।
महादेव भाई सेवा धर्म के लिए ही जन्मे थे इसलिए वे परिहास में अपने आपको गांधीजी का ‘पीर-बावर्ची-भिश्ती-खर’ के रूप प्रस्तुत करते थे। गांधीजी उन्हें पुत्र से भी अधिक मानते थे। उन्होंने महादेव देसाई को अपना वारिस कहा था। जब गामदेवी के मणिभवन में लोग गांधीजी के पास जुल्मों एवं अत्याचारों की कहानियाँ लेकर आते थे‚ तो महोदव भाई उनकी शिकायतों को टिप्पणी रूप में लिखकर गांधीजी के सामने प्रस्तुत करते। ‘क्रॉनिकल’ के अंग्रेज संपादक हार्नीमैन को देश निकाला दिए जाने के बाद ‘यंग इण्डिया’ (हार्नीमैन इस साप्ताहिक में भी लिखते थे) का कार्यभार गांधीजी के कंधों पर आ गया। ‘यंग इण्डिया’ के साथ-साथ ‘नवजीवन’ भी गांधीजी के पास आ गया। महादेव भाई गांधी के कंधों से यह बोझ निरंतर हल्का करते रहे। वे देश-भ्रमण के बावजूद लेख लिखते और साप्ताहिक के लिए भेजते।
महादेव भाई देश-विदेश की राजनीतिक घटनाओं को पारखी ऩजरों से परखते और टिप्पणी करते। वे गांधीजी के नाम आने वाले पत्रों के जवाब भी लिखते। महादेव भाई की ‘विनय-विवेक युक्त चेतना’ की सभी प्रशंसा करते। महादेव भाई ने साहित्य के प्रति रुचि होने के कारण वकालत छोड़ी और कई महत्त्वपूर्ण साहित्यिक रचनाओं का अनुवाद किया जिनमें टैगोर‚ शरद बाबू का साहित्य भी शामिल था। महादेव भाई ने गांधीजी की आत्मकथा ‘सत्य के प्रयोग’ का अंग्रेजी अनुवाद किया था। गांधीजी
उनकी साहित्यिक अभिरुचि एवं लिखावट में बरती जाने वाली सावधानी के कायल थे। उन्हें महादेव भाई के लिखे ‘नोट’ पर अधिक भरोसा था। बड़े-बड़े धुरंधर लेखक महादेव भाई की टिप्पणी से मिलान किए बगैर अपनी टिप्पणी को गांधीजी के सम्मुख प्रस्तुत न करते। महादेव घंटों का काम मिनटों में करते थे।
लेखक महादेव भाई के व्यक्तित्व की तुलना गंगा-यमुना के परम उपकारी सोने की कीमत वाले ‘गाद’ से करते थे। जिसमें कठोरता तो दूर एक कंकड़ तक न मिलता था। महादेव भाई का व्यक्तित्व एक रूप में गांधीजी का व्यक्तित्व बन गया था। उन्हें उनकी लिखावट को देखकर बड़े-बड़े ‘वायसराय’ ऐसे ‘खुशनवी़ज’ को पाने की इच्छा पाल लेते थे। पूरे ब्रिटिश प्रशासन में उनके जैसी शुद्ध एवं सुंदर लिखावट वाला कोई न था। तमाम व्यवस्थाओं के बीच वे प्रतिदिन 11 मील पैदल चलकर सेवाग्राम से भंगनवाड़ी और भंगनवाड़ी से सेवाग्राम की यात्रा करते। यह अथक श्रम ही उनकी अकाल मृत्यु का कारण बना लेकिन वे महात्मा गांधी के हृदय से अलग न हो सके।