Chapter Notes and Summary
प्रस्तुत पाठ ‘धर्म की आड़’ के लेखक प्रसिद्ध साहित्यकार एवं स्वतंत्रता सेनानी गणेश शंकर विद्यार्थी हैं। प्रस्तुत पाठ में लेखक ने उन समाज विरोधी लोगों की पोल खोली है जो धर्म के नाम पर आम-निरक्षर जनता को आपस में लड़वाकर अपना स्वार्थ सिद्ध कर लेते हैं। ऐसे लोग न केवल समाज के अपितु स्वतंत्रता के भी विरोधी होते हैं। इससे तत्कालीन स्वतंत्रता संघर्ष में काफी क्षति पहुँची।
लेखक को दु:ख है कि देश में धर्म के नाम पर मासूमों को लड़ाकर कुछ लोग समाज को बाँटने में लगे हुए हैं। लेखक को ऐसा प्रतीत होता है कि यह हाल देश के लगभग प्रत्येक शहर का है। धर्म एवं ईमान की बुराइयों से काम निकालना अब काफी आसान हो गया है क्योंकि साधारण-से-साधारण आदमी धर्म के नाम पर जान देने को तैयार है। लेखक को लगता है कि पश्चिमी देशों में आर्थिक असंतुलन काफी अधिक है इसी कारण वहाँ साम्यवाद‚ बोल्शेविज्म आदि का जन्म हुआ है जबकि हमारे देश में धन की मार की अपेक्षा बुद्धि पर मार अधिक है। यहाँ गरीबों की बुद्धि का इस्तेमाल कर उन्हें आपस में लड़ाया-भिड़ाया जाता है। लेखक चाहता है कि धर्म एवं ईमान के नाम पर किए जा रहे इस भीषण व्यापार को रोका जाना चाहिए।
लेखक चाहता है कि धर्म की उपासना में किसी तरह की रुकावट न हो। प्रत्येक व्यक्ति को अपने धर्म को मानने की धार्मिक आजादी मिलनी चाहिए। यदि कोई दूसरे के धर्म में टाँग अड़ाए‚ तो इसे स्वाधीनता के विरुद्ध समझा जाए।
लेखक के अनुसार स्वाधीनता संग्राम में मुल्ला-मौलवियों एवं धर्माचार्यों का प्रवेश बिल्कुल नहीं होना चाहिए। यदि हमने मौलाना अब्दुल बारी और शंकराचार्य जैसे धर्माचार्यों को अधिक महत्त्व दिया‚ तो देश में धार्मिक उन्माद‚ प्रपंच तथा उत्पात फैलने में अधिक समय नहीं लगेगा। लेखक महात्मा गाँधी के ‘धर्म’ के स्वरूप को अपनाने की सीख देता है। दो घंटे पूजा करने तथा पाँच वक्त नमाज अदा करने के बाद भी यदि व्यक्ति बेइर्मानी भरे कार्य करे‚ तो उसे सजा मिलनी चाहिए। आचरण में भलमनसाहत प्रथम कसौटी हो। दिन-रात पूजा-पाठ करने के बाद बुरे आचरण
करने वालों की अपेक्षा वे नास्तिक एवं ला-म़जहबी लोग भले हैं जिनका आचरण अच्छा है और जो दूसरों के सुख-दुख का पूरा ध्यान रखते हैं। ईश्वर भी ऐसे आदमी से प्रेम करता है और पाखंडियों को आदमी बनने की सलाह देता है।