Chapter Notes and Summary
इस पाठ में लेखक ने पाकिस्तान के एक मुसलमान से हुई मुलाकात व उससे संबंधित हालात के बारे में बताया है। लेखक ने एक दिन समाचार पत्र में ‘तक्षशिला (पाकिस्तान) में आगजनी’ की खबर सुनी तो उसे हामिद खाँ की याद आ गई। उसने मन-ही-मन यह प्रार्थना की कि उसे और उसकी दुकान को कुछ नुकसान हुआ हो।
लेखक जब तक्षशिला के पौराणिक खंडहर को देखने गया था तो उसे भूख और प्यास ने हामिद खाँ की दुकान तक पहुँचाया। उसने दुकान में घुसते ही देखा कि अधेड़ उम्र का पठान अंगीठी के पास चपातियाँ बना रहा था। जब दोनों का आमना-सामना हुआ तो पठान लेखक को घूर-घूर कर देख रहा था। बातचीत में पता चला कि लेखक एक हिंदू है। पठान के यह पूछने पर कि क्या तुम एक मुसलमान के हाथ की चीज खाओगे? तो लेखक ने कहा कि क्यों नहीं। उसके वहाँ (मालाबार में) यदि किसी को बढ़िया चाय पीनी हो या बढ़िया पुलाव खाना हो तो वह मुसलमानी होटल में ही जाता है। लेखक ने जब बताया कि उसके यहाँ हिंदू-मुसलमान मिल-जुलकर रहते हैं‚ दंगे न के बराबर होते हैं‚ तो हामिद खाँ को यकीन ही नहीं हुआ। उसने कहा कि आप जैसा हिंदू शायद ही होगा जो इतने .फख्र से यह बात बताए।
लेखक भरपेट चपाती‚ सालन एवं चावल खाकर बहुत अच्छा महसूस करता है और जाते हुए बहुत संकोच से एक रुपया निकालकर हामिद खाँ को दिया, पर हामिद खाँ ने उसे लौटाते हुए कहा कि मैं अपने मेहमान से रुपये नहीं लेता। पर मान रखने के लिए वह कहता है ‘‘भाई जान मैंने खाने के पैसे आपसे ले लिए हैं‚ मगर मैं चाहता हूँ कि यह आप ही के हाथों में रहे। आप जब पहुँचें तो किसी मुसलमानी होटल में जाकर इस पैसे से पुलाव खाएँ और तक्षशिला के भाई हामिद खाँ को याद करें।’’ फिर वहाँ से लौटकर लेखक तक्षशिला के खंडहरों की तरफ चला आया।
उसके बाद फिर हामिद खाँ को लेखक ने नहीं देखा।