Chapter Notes and Summary
रीढ़ की हड्डी एक सामाजिक व्यंग्य प्रधान एकांकी है। इसके माध्यम से उन्होंने उन लोगों पर कटाक्ष किया है‚ जो लड़के और लड़कियों में अंतर करते हैं। रीढ़ की हड्डी में जगदीश चंद्र माथुर ने उस दशा को चित्रित करने की कोशिश की है जब लड़कियाँ पढ़-लिखकर काबिल हो जाती हैं‚ उनमें आत्मविश्वास जाग जाता है। फिर भी समाज के कुछ रूढ़िवादी लोगों को यह मंजूर नहीं होता।
इस एकांकी का प्रारंभ कुछ इस प्रकार है जब रामबाबू अपने घर को सजाते-सँवारते हैं क्योंकि उनकी लड़की उमा को शादी के लिए गोपाल प्रसाद और उनका लड़का शंकर देखने के लिए आने वाले हैं। रामबाबू नौकर के ठीक से काम न करने के कारण उस पर झुँझलाते हैं। रामबाबू अपनी पत्नी से कहते हैं कि उमा को समझा-बुझाकर ठीक से तैयार कर दो। उसे लड़के वाले देखने के लिए आने वाले हैं।
इस पर उनकी पत्नी कहती है कि लड़के वालों की बात सुनकर उमा मुँह फुलाए बैठी है। रामबाबू अपनी पत्नी को होशियार करते हैं कि लड़के वालों के सामने उमा की पढ़ाई-लिखाई की बात न की जाए‚ क्योंकि वे कम पढ़ी-लिखी लड़की चाहते हैं।
वार्तालाप हो ही रही थी कि दरवाजे की ओर से किसी के आने की आहट आई।
लड़के वाले आ रहे थे। रामबाबू ने बढ़कर उनका स्वागत किया। गोपाल प्रसाद एक पढ़े-लिखे आदमी थे। वे पेशे से वकील थे और उनका लड़का शंकर बी एस सी करने के बाद लखनऊ के मेडिकल कॉलेज में पढ़ रहा था। रामबाबू ने उन्हें चाय-नाश्ता करवाया और कुछ देर तक बातों का दौर चलता रहा। तत्पश्चात् गोपाल प्रसाद ने विवाह की बात आरंभ की। उन्होंने स्पष्ट शब्दों में कहा कि उन्हें ज्यादा पढ़ी-लिखी लड़की नहीं चाहिए‚ मैट्रिक हो‚ तो काफी है। क्योंकि पढ़ने-लिखने का काम पुरुषों का होता है। औरतें तो घर-गृहस्थी करती हैं‚ इसलिए उनकी पढ़ाई की कोई अहमियत नहीं होती। उनके बेटे की भी ऐसी ही धारणा थी।
कुछ देर बाद रामस्वरूप अपनी पत्नी से कहते हैं कि उमा को बुलाओ। उमा पान की तश्तरी लेकर कमरे में प्रवेश करती है। गोपाल प्रसाद एवं शंकर दोनों ही उसे देखते हैं। जैसे ही गोपाल प्रसाद उसकी आँखों पर चश्मा देखते हैं‚ वे तुरंत
पूछते हैं कि पढ़ाई-लिखाई के कारण चश्मा लगा है क्या? इस पर रामस्वरूप सफाई देते हुए कहते हैं कि पढ़ाई के कारण नहीं बल्कि कुछ दिनों से आँख में तकलीफ थी‚ इस कारण कुछ ही दिनों के लिए चश्मा लगवाया है। गोपाल प्रसाद उमा से गाना सुनते हैं। वह सधी हुई आवाज में मीरा का भजन ‘मेरे तो गिरधर गोपाल दूसरो न कोई’ गाने लगती है। जैसे ही वह शंकर को देखती है‚ गाना बंद कर देती है और आग्रह करने पर भी नहीं गाती। तत्पश्चात् गोपाल प्रसाद उमा से सिलाई‚ कढ़ाई‚ पेंटिंग आदि के बारे में पूछते हैं परंतु उमा कुछ भी उत्तर नहीं देती। गोपाल प्रसाद तरह-तरह के सवाल पूछकर उसे अपमानित कर रहे थे। लड़कियाँ निर्जीव वस्तुएँ या बेबस जानवर नहीं होतीं। उनका भी मान-सम्मान होता है। उमा के कुछ न बोलने पर गोपाल प्रसाद कहते हैं‚ कुछ तो बोलो। इस पर रामस्वरूप कहते हैं थोड़ा शरमाती है परंतु उमा से उत्तर देने के लिए कहते हैं। इस पर उमा कहती है कि जब कोई मेज-कुर्सी खरीदने आता है‚ तो वह दुकानदार उन बेजान कुर्सी‚ मेजों से कुछ नहीं पूछता। रामस्वरूप‚ चौंककर उठ खड़े होते हैं। लेकिन उमा कहती है अब बाबू जी मुझे बोल लेने दीजिए और गोपाल प्रसाद के लड़के के बारे में बताती है कि उनका लड़का लड़कियों के हॉस्टल के इर्द-गिर्द ताँक-झाँक करता हुआ कई बार पकड़ा गया है।
गोपाल प्रसाद उठ खड़े होते हैं और कहते हैं कि उनकी लड़की (रामस्वरूप) पढ़ी-लिखी है‚ वे उन्हें धोखा दे रहे हैं। वे जाने लगते हैं तो इस पर उमा कहती है कि जाकर पता अवश्य कर लीजिए कि आपके लड़के की रीढ़ की हड्डी है भी या नहीं। बाबू गोपाल प्रसाद को गुस्सा आ जाता है और शंकर के चेहरे पर रुलासापन साफ दिखाई देता है। रामस्वरूप कुर्सी पर हताश होकर बैठ गए। उमा रोने लगती है। घबराई हुई रामस्वरूप की पत्नी प्रेमा दौड़ी हुई आती है। इतने में उनका नौकर रतन भी मक्खन लेकर आ जाता है। सभी उसकी ओर देखने लगते हैं और कहानी समाप्त हो जाती है।