Chapter Notes and Summary
प्रस्तुत पाठ ‘धूल’ के लेखक रामविलास शर्मा हैं। यह पाठ धूल के भौतिक-रासायनिक महत्त्व के साथ-साथ सांस्कृतिक महत्त्व को भी प्रतिपादित करता है। लेखक की दृष्टि में धूल का ऐतिहासिक महत्त्व ही उसकी महिमा को व्याख्यायित करता है। भगवान श्रीकृष्ण के मुख पर लगी धूल अभिजात वर्ग के सौंदर्य प्रसाधन-सामग्री से भी कहीं अधिक सौंदर्यमयी है। लेखक को दु:ख है कि नागरी सभ्यता धूल के इस महत्त्व को न तो समझती है और न ही इसके सौंदर्य को पहचान पाती है। लेखक के अनुसार नागरी सभ्यता चमकदार हीरों की प्रेमी है‚ धूल भरे हीरों की नहीं।
पाठ में मिट्टी के गुणकारी धर्म को प्रस्तुत किया गया है। अखाड़ा प्रेमी लेखक के लिए अखाड़े की मिट्टी देवताओं पर चढ़ने वाली मिट्टी प्रतीत होती है। यह धूल साधारण धूल नहीं है; तेल और मट्ठे से रझाई हुई है। शरीर इसी धूल या मिट्टी से बनता है। पाठ इस तथ्य को रेखांकित करता है कि शरीर के निर्माण में जितने अनिवार्य तत्त्व हैं‚ वे सब मिट्टी के गुण हैं।
प्रकृति का बड़ा भाग मिट्टी की ही उपज है। यही प्रकृति अपने सौंदर्य से हमें रिझाती है। हालाँकि मिट्टी और धूल में शब्द व रस‚ देह व प्राण‚ चाँद व चाँदनी के समान अंतर है। लेखक ‘धूल’ से ‘निर्मित’ गोधूलि शब्द के साहित्यिक एवं सांस्कृतिक महत्त्व को इस पाठ में प्रतिपादित करता है। सूर्यास्त के पश्चात् घर वापस आते पशुओं अथवा मेले से वापस आती बैलगाड़ियों के पीछे छूट गई धूल का सौंदर्य ‘गोधूलि’ शब्द से निखरता है। लेखक के अनुसार भले ही कवियों ने ‘गोधूलि’ शब्द का कविताओं में नागरी ढंग से वर्णन किया हो‚ परंतु यह शब्द ग्राम भाषा एवं संस्कृति की धरोहर है। लेखक के अनुसार गोधूलि का वास्तविक अर्थ है—गायों तथा गोपालों के पैरों की धूल। लेखक ने धूल का एक पक्ष इस पाठ में प्रस्तुत किया है। यह पक्ष है देश के प्रति सम्मान एवं रक्षा का भाव। धूल श्रद्धा‚ भक्ति एवं स्नेह की आलंबन है। मानव के भाव ‘धूल’ के क्रियात्मक प्रयोग पर अवलंबित हैं—धूल चाटना‚ धूल झाड़ना आदि।
इस पाठ में धूल के कई अर्थों को प्रतिपादित किया गया है। धूल की व्यंजनाएँ अलग-अलग रूपों में अलग-अलग प्रकार से प्रस्तुत होती हैं। धूल का वर्ण मिट्टी की पहचान है। श्वेत रंग मिट्टी का अनिवार्य रंग है‚ विशेषण नहीं। धूल का सामाजिक पक्ष देश के प्रति सम्मान में दिखता है। किसान का महत्त्व इसलिए गौण नहीं हो सकता कि वह धूल से भरा होता है। धूल भरा हीरा भले ही अपनी चमक न बिखेरे परंतु किसी चमकदार काँच से उसकी तुलना नहीं की जा सकती। हीरा अमर है‚ काँच नश्वर। अत: समाज में निहित धूल भरे व्यक्तित्व को पहचान उन्हें महत्त्व देने की आवश्यकता है। जिस समय हम इस महत्त्व को पहचान गए उस दिन से समाज को एक नई दिशा एवं गति मिलेगी।