Chapter Notes and Summary
मौर्य साम्राज्य का अवसान हुआ और उसकी जगह शंवुळ वंश ने ले ली। मेनाडंर जिसने भारत पर हमला तो किया लेकिन भारतीय चेतना से प्रभावित होकर बौद्ध हो गया और राजा मिलिंद के नाम से प्रसिद्ध हुआ। इस प्रकार भारतीय-यूनानी संस्वृळतियों का मेल हुआ।
मध्य एशिया में शक लोग बौद्ध और हिन्दू हो गए। इनमें वुळछ ने हिन्दू धर्म और वुळछ ने बौद्ध धर्म अपना लिया। कनिष्क उनका सबसे प्रसिद्ध शासक था।
320 ई. में शासक चन्द्रगुप्त ने गुप्त साम्राज्य की नींव रखी। जब आर्य भारत आए तब उन्हें आर्यावर्त्त या भारतवर्ष कहा जाता था। गुप्त शासकों में प्रसिद्ध शासक समुद्रगुप्त को भारत का ‘नेपोलियन’ कहा गया है। गुप्त वंश ने लगभग 150 वर्षों तक शासन किया। यशोवर्मन के नेतृत्व में संगठित होकर नए आक्रमणकारियों ने ‘गोरे हूण’ पर आक्रमण किया और उनके सरदार मिहिर गुल को वैळद कर लिया। गुप्तों के वंशज बालादित्य ने उसे छोड़ दिया जो उसे भारी पड़ा। 629 ई. में चीनी यात्री हुआन त्सांग भारत आया। हर्ष की मृत्यु 648 ई. में हुई। मौर्य, वुळषाण, गुप्त दक्षिण में चालुक्य, राष्ट्रवूळट आदि ने दो-दो सौ, तीन-तीन सौ वर्षों तक राज्य किया।
भारत में व्यद्नि के बाहरी और भीतरी जीवन तथा मनुष्य और प्रवृळति के बीच भी समन्वय का प्रयास दिखाई देता है। यहाँ अनेक राजा आते-जाते रहे, पर यह व्यवस्था नींव की तरह बनी रही।
भारतीय रंगमंच का मूल उद्गम ऋग्वेद की ऋचाओं में खोजा जा सकता है। रामायण और महाभारत में नाटकों का उल्लेख मिलता है।
एक नाटककार ‘भास’ उसके तेरह नाटकों का संग्रह मिला है। ‘अश्वघोष’ के प्राचीनतम संस्वृळत नाटक ताड़पत्रें पर लिखे मिले हैं। चन्द्रगुप्त (द्वितीय) विक्रमादित्य उज्जयिनी के शासक थे। कालिदास उनके नवरत्नों में से एक थे। ‘मेघदूत’ उनकी लम्बी कविता है। ‘शवुळन्तला’ उनका प्रसिद्ध नाटक है। 400 ई. में चन्द्रगुप्त के काल में विशाखदत्त ने ‘मुद्राराक्षस’ नामक नाटक लिखा।
ईसा की पहली शताब्दी तक उपनिवेशीकरण की चार प्रमुख लहरें दिखाई देती हैं। इन उपनिवेश के नाम खनिज, धातु, किसी उद्योग या खेती की पैदावार के आधार पर होता था। भारतीय उपनिवेशों का इतिहास ईसा की पहली दूसरी शताब्दी से आरम्भ होकर पंद्रहवी शताब्दी तक अर्थात् तेरह सौ साल का है। चंपा, अंगकोर, श्रीविजय, भज्जापहित सहित अनेक संस्वृळत के अध्ययन केन्द्र थे। भारतीय कला प्रवृळति चित्र्ण से भरपूर है। इस पर चीनी प्रभाव दिखाई देता है। अजन्ता-एलोरा की गफुाएँ सातवीं-आठवीं शताब्दी में तैयार की गयी। जिनके बीच वैळलाश का विशाल मन्दिर है। एलीपेंळटा की गफुाओं का निर्माण भी इसी समय हुआ। इसमें नटराज शिव नृत्य मुद्रा में हैं।
भारत में कपड़ा उद्योग बहुत विकसित था। यहाँ का बना कपड़ा दूर-दूर के देशों में जाता था। रेशमी कपड़ा भी यहाँ बनता था। रेशम चीन से आयात किया जाता था। यहाँ पक्वेळ रंग खोजकर कपड़ों की रंगाई में प्रगति की गई। इनमें से एक नील का रंग था, जिसे इंडिगो कहा जाता था। यह शब्द इंडिया से बना था।
ज्योतिष की मदद से पंचांग तैयार किए जाते थे। समुद्री यात्र पर जाने वालों के लिए खगोलशास्त्र् का ज्ञान सहायक होता था।
आधुनिक अंकगणित और बीजगणित की शुरुआत भारत में ही हुई। दस भारतीय संख्याओं के अंक बेजोड़ थे। शून्य आरम्भ में एक बिन्दी के रूप में था। बाद में यह वृत्ताकार बन गया। भारतीय गणित के क्षेत्र् में 427 ई. में जन्मे ज्योतिर्विद आर्यभट, भास्कर 522 ई., ब्रह्मपुत्र् 628 ई. ने अपना-अपना योगदान दिया। 1114 ई. में जन्मे भास्कर द्वितीय ने खगोलशास्त्र्, बीजगणित, अंकगणित पर ग्रन्थ लिखे। ‘लीलावती’ नामक उनकी पुस्तक बहुत प्रसिद्ध हुई। आठवीं शताब्दी में कई भारतीय विद्वान गणित तथा खगोलशास्त्र् की पुस्तवेंळ लेकर बगदाद गए। वहाँ भारतीय अंक प्रचलित हुए। अरबी अनुवादों के माध्यम से भारतीय गणित का ज्ञान व्यापक क्षेत्र् में पैळल गया। यह नया गणित स्पेन के पूरे विश्वविद्यालय के माधयम से यूरोपीय देशों में पहुँचा।
सातवीं शताब्दी में हर्ष के शासनकाल में उज्जयिनी पुन: कला और संस्वृळति का केन्द्र बनी, पर नवीं शताब्दी तक कमजोर होकर नष्ट हो गई। भारत राजनीतिक तथा रचनात्मक रूप से कमजोर पड़ गया था। दक्षिण भारत आक्रमणों तथा हमलों से बचा रहा। नालंदा विश्वविद्यालय का नाम तब खूब प्रसिद्ध था। यहाँ अनेक विषयों की शिक्षा दी जाती थी। हर सभ्यता के जीवन में ऋास और विकास के दौर बार-बार आते हैं।
सभ्यता के ध्वस्त होने के कई उदाहरण हैं। जैसेμयूरोप की प्राचीन सभ्यता जिसका अन्त रोम के पतन के साथ हुआ। भारतीय सभ्यता का पतन अचानक नहीं बल्कि धीरे-धीरे हुआ। ऊँची जाति वाले, नीची जाति वालों को नीची नज़र से देखा करते थे। नीची जाति के लोगों को शिक्षा तथा विकास से वंचित रखा जाता था। इन सब कारणों से विचारों में, दर्शन में, राजनीति में युद्ध की पद्धति में अर्थात् हर तरफ ऋास हुआ। इसके बाद भी भारत में जीवनी शद्नि और अद्भुत दृढ़ता, लचीलापन और स्वयं को ढालने की क्षमता शेष थी।