Chapter Notes and Summary
भारत में विशाल जनसंख्या का बसेरा होने के अलावा और वुळछ न होने पर भी, नेहरू जी ने इसे किसी पश्चिमी मित्र् की तरह आलोचना की नज़र से ही देखा। मोहनजोदड़ो की सभ्यता करीब पाँच हजार वर्ष पुरानी है, परन्तु फिर भी वह अति विकसित सभ्यता है। इसके स्थायी रूप से टिके रहने का कारण इसका ठेठ भारतीयपन और आधुनिक भारतीय सभ्यता का आधार है। प्रळांस, मिस्र, ग्रीस, चीन, अरब, मध्य-एशिया और भू-मधय सागर के लोगों से उसका बराबर निकट सम्पर्वळ रहा। भारत ने उन्हें प्रभावित किया।
इंडस या सिंधु जिसके आधार पर हमारे देश का नाम इंडिया और हिन्दुस्तान पड़ा। ब्रह्मपुत्र् को पार करके हजारों वर्षों से जातियाँ और कबीले, काफिले और फौजें आती रही हैं। यमुना नदी के चारों ओर नृत्य, उत्सव और नाटक और न जाने कितनी पौराणिक कथाएँ एकत्र् हैं।
गंगा नदी ने तो भारत के इतिहास के आरम्भ से ही उसके हृदय पर राज किया है। गंगा की गाथा, भारत की सभ्यता और संस्वृळति की कहानी है।
नेहरूजी ने भग्नावशेषों, पुरानी मूर्तियों व भित्तिचित्रें को अंजता, एलोरा, ऐलिपेंळटा की गफुाएँ और अन्य स्थानों को देखा तथा इलाहाबाद और हरिद्वार में वुळम्भ मेले में सैकड़ों, हजारों श्रद्धालु आते हैं।
इस तरह भारत के इतिहास की लम्बी झाँकी व सांस्वृळतिक परम्परा में विलक्षणता प्रतीत होती है।
भारत के पतन व नाश के कारण तकनीक की दौड़ में पिछड़ा हुआ होना है। यूरोप तमाम बातों में एक जमाने में पिछड़ा हुआ था परन्तु तकनीक के मामले में आगे निकल गया। इसका कारण विज्ञान की चेतना और हौसलेमंद जीवन शद्नि और मानसिकता थी।
भारत भी तरक्की और विकास करना चाहता था। इसलिए अंग्रेज़ों के प्रति विद्रोह की चेतना पनपी।
भारत की ग्रामीण जनता ने नेहरू जी को बहुत आकर्षित किया, क्योंकि उन्होंने प्राचीन सांस्वृळतिक परम्परा को बचाए रखा था। इसका कारण उन लोगों की दृढ़ता और अंत: शद्नि है।
उत्तर से दक्षिण और पूरब से पश्चिम तक किसानों की समस्याएँ समान थींμगरीबी, कर्ज, निहित स्वार्थ, जमींदार, महाजन, भारी लगान और कर, पुलिस के अत्याचार और ये सब उस ढाँचे में लिपटे हुए थे जिसे विदेशी हुवूळमत ने आरोपित किया था। भारत के पहाड़, नदियाँ, जंगल और पैळले हुए खेत हमारे लिए खाना मुहै”या करते हैं, सब हमें प्रिय हैं लेकिन सबसे अधिक महत्त्वपूर्ण है भारत की जनता।
तमाम भिकाताओं के बावजूद पठान पर भारत की छाप वैसी ही स्पष्ट है जैसे तमिल पर। सीमांत क्षेत्र् प्राचीन भारतीय संस्वृळति के प्रमुख केन्द्र में से था। तक्षशिला का महान विश्वविद्यालय, जो दो हजार वर्ष पहले अपनी प्रसिद्धि की चरम सीमा पर था। भारत के अलावा मध्य एशिया के विभिका भागों से विद्यार्थी भी वहाँ खिंचे चले आते थे। यह जानकारी बेहद हैरत में डालने वाली है कि अनेकों भाषा-भाषी जनता से बसा हुआ विशाल मध्य भाग, सैकड़ों वर्षों से अपनी अलग पहचान बनाए रहा। एक भारतवासी, भारत के किसी भी हिस्से में अपने ही घर जैसा महसूस करता था, जबकि दूसरे देश में पहुँचकर वह अजनबी और परदेसी महसूस करता था।
वे लोग जो गैर-भारतीय धर्म को मानने वाले थे या भारत में आकर बस गये थे। वुळछ पीढ़ियों के बाद स्पष्ट रूप से भारतीय हो गए। जैसे यहूदी, पारसी और मुसलमान। जिन भारतीयों ने इन धर्मों को स्वीकार कर लिया वे धर्म-परिवर्तन के बावजूद भारतीय बने रहे।
अनुवादों और टीकाओं के माध्यम से भारत के प्राचीन महाकाव्य, रामायण और महाभारत और अन्य ग्रन्थ भी जनता के बीच दूर-दूर तक प्रसिद्ध थे। अनपढ़ ग्रामीणों को सैकड़ों पद याद थे अपनी बातचीत के दौरान वे लोग बराबर या तो उन्हें उद्धत करते थे या फिर किसी ऐसी कहानी का उल्लेख करते थे जिससे कोई नैतिक उपदेश मिले।
चारों ओर गरीबी और उससे पैदा होने वाली अनगिनत विपत्तियाँ पैळली थीं। जिन्दगी को वुळचलकर विवृळत और भयंकर रूप दे दिया गया था। इससे तरह-तरह के भ्रष्टाचार पैदा हुए। पर साथ ही एक प्रकार की नम्रता और भलमनसाहत थी जो हजारों वर्ष की सांस्वृळतिक विरासत की देन थी, जिसे बड़े से बड़ा दुर्भाग्य भी नहीं मिटा पाया था।