Chapter Notes and Summary
‘नरोत्तमदास जी’ द्वारा रचित प्रस्तुत कविता ‘सुदामा चरित’ में श्रीस्रष्ण व सुदामा की मित्र्ता का वर्णन किया गया है। मित्र्ता में जात-पाँत, अमीरी-गरीबी नहीं देखी जाती है। सच्चा मित्र् ही सदैव सच्चा हितैषी होता है। बहुत लम्बे समय बाद सुदामा श्रीस्रष्ण से मिलने पहुँचते हैं।
सुदामा की दीन-हीन दशा देखकर श्रीस्रष्ण बहुत ज्यादा दु:खी हो गए, परन्तु अपने मित्र् से मिलकर उन्हें अत्यधिक प्रसन्नता हुई तथा उन्होंने बहुत ही आदर व सम्मान से सुदामा का स्वागत किया। मित्र् की दीन-दशा देखकर श्रीस्रष्ण रोने लगे तथा अपने आँसुओं से ही सुदामा के पैरों
को धो दिया। सुदामा द्वारा लाए गए चावलों को स्रष्ण जी ने बहुत चाव से खाया। जब सुदामा महल से विदा होते हैं, तो स्रष्ण उन्हें कोई तोहफा नहीं देते हैं, इस कारण सुदामा मन में अपने मित्र् के बारे में बुरा-भला सोचने लगते हैं, परन्तु जब अपने नगर पहुँचकर अपनी वुळटिया की जगह महल देखते हैं, तो वह आश्चर्यचकित रह जाते हैं। श्रीस्रष्ण की स्रपा देखकर सुदामा का मन मित्र् के लिए प्रेम व सम्मान से भर जाता है।