Chapter Notes and Summary
ह्रजब सिनेमा ने बोलना सीखाह् पाठ ‘प्रदीप तिवारी’ द्वारा रचित है। 14 मार्च, 1931 की ऐतिहासिक तारीख भारतीय सिनेमा में बड़े बदलाव का दिन था। जब भारतीय सिनेमा में पहली बोलती फिल्म ‘आलम आरा’ प्रदर्शित हुई जिसके फिल्मकार अर्देशिर एम. ईरानी थे तथा इस फिल्म का आधार एक पारसी नाटक था। फिल्म ने हिन्दी-उर्दू के मेल वाली हिन्दुस्तानी भाषा को लोकप्रिय बना दिया। इस फिल्म में गीत, संगीत तथा नृत्य के अनोखे संयोजन थे। फिल्म मुम्बई के ‘मैजेस्टिक’ सिनेमा में प्रदर्शित हुई। मूक फिल्मों की शूटिंग तो दिन में हो जाती थी, परन्तु सवाव्ळ फिल्म होने के कारण रात में फिल्म की शूटिंग होती व स्रत्र्मि प्रकाश की आवश्यकता पड़ती थी, जिसके कारण प्रकाश प्रणाली का विकास हुआ। 1956 में ‘आलम आरा’ के 25 वर्ष पूरे होने पर फिल्मकार अर्देशिर को ह्रभारतीय सवाव्ळ फिल्मों का पिताह् कहा गया। सवाव्ळ फिल्मों का निर्माण शुरू होने के बाद अभिनेता-अभिनेत्र्यिों, संवाद लेखक, गायक व अन्य बहुत से लोगों को अपनी प्रतिभा प्रदर्शित करने का मौका दिया। यहीं से सिनेमा के एक नए युग का प्रारम्भ हुआ।