Chapter Notes and Summary
कवि ने जाड़े की शाम के प्राकृतिक दृश्य का जो चित्र्ण किया है उसे देख कर ऐसा प्रतीत होता है मानो पहाड़ किसी किसान की तरह बैठा हुआ है, जिसके सिर पर आकाश साफ़े के रूप में बँधा है। उसके घुटनों पर चादर की तरह नदी पड़ी है। उसके सामने सूरज चिलम की भाँति रखा हुआ-सा लगता है। समीप ही स्थित पलाश का जंगल जलती हुई अँगीठी की भाँति लगता है। दूर पूर्व में अंधकार ऐसे दिखाई दे रहा है, मानो भेड़ों का समूह हो। अचानक मोर के बोलने की आवाज से ऐसा लगता है मानो किसी ने किसान को आवाज दी हो। उसी के साथ ऐसा लगता है जैसे चिलम औंधी गिर पड़ी हो, क्योंकि सूरज डूब गया और धुँआ उठने लगा अर्थात् अंधकार छा गया।