Chapter Notes and Summary
इस कथा में लेखक भगवती प्रसाद वाजपेयी ने एक फेरीवाले की भावनाओं को बड़े ही मर्मस्पर्शी तरीके से चित्र्ति किया है। वह फेरीवाला गलियों में पहली बार खिलौने बेचने जाता है और मधुर ढंग से गाकर कहता है-बच्चों को बहलाने वाला, खिलौने वाला। उसकी आवाज़ सुनकर छोटे बच्चों की माँएँ चिक उठाकर छज्जे से झाँकने लगती हैं तो बच्चों का झुंड खिलौने वाले को घेर लेता है। रोहिणी ने चुन्नू-मुन्नू से पूछा कि खिलौने कितने में लिए तो उन्होंने बताया कि दो पैसों में। यह सुनकर रोहिणी को अचरज हुआ कि इतने सस्ते में खिलौने वाला खिलौने कैसे दे गया।
छह महीने बाद नगर में एक मुरलीवाला आया उसकी आवाज़ रोहिणी ने सुनी तो उसे तुरन्त खिलौनेवाले की याद आई। मुरलीवाले से विजय बाबू ने मुरली का मूल्य पूछा तो उसने कहा कि वह देता तो तीन पैसे में है लेकिन उन्हें दो पैसे में ही दे देगा। मुरलीवाले से मुरलियाँ लेकर विजय बाबू भीतर आ गए।
आठ माह बाद उसी सर्दी के दिनों में रोहिणी के कानों में आवाज़ आई, ह्रबच्चों को बहलाने वाला, मिठाईवाला। रोहिणी झट से नीचे आई।
पति घर में नहीं थे। दादी ने मिठाईवाले को बुलाया। उसने कहा कि वह पैसे की सोलह मिठाइयाँ देता है। दादी ने उसे पच्चीस देने को कहा तो वह न माना। रोहिणी ने दादी से कहा कि वह चार पैसे की मिठाइयाँ ले लें। पूछने पर मिठाईवाले ने बताया कि वह पहले मुरली और खिलौने लेकर भी आ चुका है। रोहिणी के अत्यधिक आग्रह पर मिठाईवाले ने उसे अपनी कथा सुनाई कि वह अपने नगर का प्रतिष्ठित आदमी था।
धन-धान्य , स्त्री, बच्चे सभी थे, परंतु भाग्य की लीला वुळछ ऐसी रही कि अब कोई साथ नहीं है। वह इन बच्चों में अपने बच्चों को खोजने निकला है। वह कहीं न कहीं जन्मे जरूर होंगे। उसी समय चुन्नू-मुन्नू आ गए। मिठाईवाले ने उन्हें मिठाई दी। रोहिणी ने उसकी ओर पैसे (मिठाई के दाम) बढ़ाए तो उसने कहा कि अब इस बार वह पैसे न ले सकेगा। उसने पेटी उठाई और अपने मधुर स्वर में गाता हुआ निकल गया।