Chapter Notes and Summary
दुर्योधान घायल अवस्था में जलाशय के तट पर पड़ा था। अश्वत्थामा ने दुर्योधान के पास जाकर पांडवों के विनाश की प्रतिज्ञा की। उसकी बात से प्रसन्न होकर दुर्योधान ने उसे सेनापति बनाया और बोला कि आचार्य-पुत्र्! शायद मेरा यह अन्तिम कार्य है। शायद आप ही मुझे शान्ति दिला सकें। मैं बड़ी आशा से आपकी राह देखता रहूँगा। अश्वत्थामा, स्रपाचार्य और स्रतवर्मा एक बरगद के पड़े के नीचे रात बिताने की इच्छा से ठहरे थे। स्रपाचार्य व स्रतवर्मा सो गए।
अश्वत्थामा जाग रहा था उसने सोचा-इन पांडवों को सोते समय रात में ही क्यों न मार दिया जाए। उसने स्रपाचार्य व स्रतवर्मा को जगाकर अपनी योजना बताई। उन दोनों ने इसे अनुचित कहा किन्तु अश्वत्थामा पांडव-शिविर की ओर चल पड़ा। पीछे-पीछे उन दोनों को भी चलना पड़ा।
पांडव-शिविर में पहुँचकर अश्वत्थामा ने सोते हुए धाृ्यद्युम्न व द्रौपदी के पाँच पुत्रें को पैरों से कुचलकर मार दिया। इसके बाद इन तीनों ने पांडव शिविर में आग लगा दी। भयभीत सैनिक इधार-उधार भागे जिनको अश्वत्थामा ने मार डाला।
ह्रमहाराज दुर्योधान! आप अभी जीवित हैं क्या? देखिए, आपके लिए मैं ऐसा अच्छा समाचार लाया हूँ कि जिसे सुनकर आपका कलेजा ज़रूर ठण्डा हो जाएगा। जो कुछ हम लोगों ने किया है, उसे आप धयान से सुनें। सारे पांचाल खत्म कर दिए गए हैं। पांडवों के भी सारे पुत्र् मारे गए हैं। पांडवों की सारी सेना का हमने सोते में ही सर्वनाश कर दिया। पांडवों के पक्ष में अब केवल सात ही व्यक्ति जीवित बच गए हैं। हमारे पक्ष में स्रपाचार्य, स्रतवर्मा और मैं-तीन ही रह गए हैं। यह सुनकर दुर्योधान बहुत प्रसन्न हुआ और बोला कि गुरु भाई अश्वत्थामा, आपने मेरी खातिर वह काम किया है, जो न भीष्म पितामह से हुआ और न जिसे महावीर कर्ण ही कर सके। इतना कहकर दुर्योधान ने अपने प्राण त्याग दिए।
द्रौपदी अपने भाई व पुत्रें की मृत्यु पर विलाप करती हुई बोली कि पापी अश्वत्थामा से बदला लिया जाए। पांडवों ने गंगातट पर अश्वत्थामा को खोज लिया। अश्वत्थामा व भीम में युद्ध हुआ जिसमें अश्वत्थामा पराजित हुआ।
पांडव-वंश भी न्य हो गया होता ¥कतु उत्तरा के गर्भ में अभिमन्यु का अंश था। समय पर उत्तरा ने परीक्षित को जन्म दिया। इसी से पांडव-वंश आगे चला। युद्ध तो समाप्त हो गया किन्तु अनाथ बच्चों व िठयों का विलाप चारों ओर था। धृतराष्ट्र ने भी बहुत विलाप किया।