Chapter Notes and Summary
द्रोण की मृत्यु के बाद कर्ण सेनापति बना। शल्य कर्ण का सारथी बना। कर्ण व अर्जुन में भयंकर युद्ध हुआ। कर्ण ने अर्जुन पर सर्पमुखा्ठ चलाया। श्रीस्रष्ण ने इस भयानक तीर को देखकर पैर के अँगूठे से रथ को दबा दिया जिससे रथ जमीन में पाँच अँगुल धाँस गया। सर्पमुखा्ठ अर्जुन के मुकुट को उड़ा ले गया। अब अर्जुन ने क्रोधिात होकर भयंकर प्रहार किए। दूसरी ओर भीम ने भी दु:शासन को मारकर अपनी प्रतिज्ञा पूरी की।
कर्ण की मृत्यु का समय निकट आ गया। उसके रथ का पहिया कीचड़ में फँस गया। कर्ण घबरा गया और अर्जुन से धार्मयुद्ध करने को कहा।
कर्ण के मुँह से धार्मयुद्ध की बातें सुनकर श्रीस्रष्ण ने उसे उसके द्वारा किए गए घृणित कर्मों का स्मरण दिलाते हुए फटकार लगाई।
कर्ण ने कुछ देर अटके हुए रथ पर बैठकर ही युद्ध किया। कर्ण के एक बाण से थोड़ी देर के लिए अर्जुन विचलित हो गया। इस मधय कर्ण उतरकर पहिया निकालने का प्रयास करने लगा।
कर्ण के हजार प्रयत्न करने पर भी पहिया ग्के से निकलता न था। यह स्थिति देख श्रीस्रष्ण ने अर्जुन से कर्ण का वधा करने को कहा। अर्जुन ने एक बाण से कर्ण का सिर काटकर जमीन पर गिरा दिया। कर्ण की मृत्यु का समाचार सुनकर दुर्योधान शोक विह्वल हो उठा। उसे सांत्वना देते हुए स्रपाचार्य ने दुर्योधान को पांडवों के साथ संधिा करने की सलाह दी।
स्रपाचार्य की सलाह दुर्योधान तथा अन्य कौरव वीरों को पसन्द नहीं आई, सत्र्ह दिन का युद्ध हो चुका था। अठाहरवें दिन के लिए मद्रराज शल्य को सेनापति बनाया गया। अठाहरवें दिन सैन्य-संचालन का दायित्व युधिाञ्रि ने स्वयं अपने हाथों में ले लिया। युधिाञ्रि और शल्य में
भीषण संग्राम हुआ जिसमें शल्य की मृत्यु हो गई। शकुनि और सहदेव में युद्ध चल रहा था। सहदेव ने कहा कि शकुनि! अपने किए का फल भुगत लेह् कहकर एक ऐसा बाण मारा कि शकुनि का सिर कटकर गिर पड़ा।
शल्य व शकुनि की मौत के बाद दुर्योधान गदा लेकर एक जलाशय में जा छिपा। पांडवों ने वहाँ पहुँचकर दुर्योधान को ललकारा।
युधिाञ्रि ने कहा कि दुर्योधान! अपने कुटुम्ब और वंश का नाश कराने के बाद अब पानी में छिपकर प्राण बचाना चाहते हो?ह् यह सुनकर दुर्योधान ने व्यथित होकर कहा कि मैं न तो डरा हुआ हूँ और न मुझे प्राणों का ही मोह है। फिर भी, सच पूछो तो युद्ध से मेरा जी हट गया है। अब मैं बिलकुल अकेला हूँ राज्य-सुख का मुझे लोभ नहीं रहा। यह सारा राज्य अब तुम्हारा ही है। निश्ंिचत होकर तुम्ही इसका उपभोग करो। युधिाष्ठिर ने गरजते हुए कहा कि दुर्योधान एक दिन वह था, जब तुम्हीं ने कहा था कि सूई की नोंक जितनी जमीन भी नहीं दूँगा। दुर्योधान ने जब स्वयं युधिाष्ठिर के मुख से ये कठोर बातें सुनीं, तो उसने गदा उठा ली और जल में ही उठ खड़ा हुआ और बोला कि अच्छा! यही सही! तुम एक-एक करके मुझसे भिड़ लो! मैं अकेला हूँ और तुम पाँच हो। पाँचों का अकेले के साथ लड़ना न्यायोचित नहीं। मैं थका हुआ और घायल हूँ। कवच भी मेरे पास नहीं है। इसलिए एक‘एक करके निपट लो। चलो!ह् इसके बाद भीम व दुर्योधान के मधय भयानक गदा युद्ध हुआ। दुर्योधान भीम पर भारी पड़ रहा था। तब श्रीस्रष्ण के संकेत पर भीम ने दुर्योधान की जाँघ पर गदा से प्रहार किया। जाँघ टूटने से दुर्योधान जमीन पर गिर पड़ा। वह क्रोधा से चिल्लाकर बोला कि प्ष्ण! धार्म युद्ध करने वाले हमारे पक्ष के सारे यशस्वी महारथियों को तुमने ही कुचक्र रचकर मरवा डाला है। यदि तुमने कुचक्र न रचा होता, तो कर्ण, भीष्म, द्रोण भला समर में परास्त होने वाले थे?ह् मरणासन्न अवस्था में दुर्योधान को इस प्रकार विलाप करता देख श्रीस्रष्ण बोले कि दुर्योधान तुम अपने ही किए हुए कर्मों का फल पा रहे हो। तुम यह क्यों नहीं समझते और उसका पश्चाताप करते? अपने अपराधा के लिए दूसरे को दोष देना बेकार है। तुम्हारे नाश का कारण मैं नहीं
हूँ। लालच में पड़कर तुमने जो महापाप किया था, उसी का यह फल तुम्हें भुगतना पड़ रहा है।