Chapter Notes and Summary
अर्जुन व जयद्रथ का युद्ध चल रहा था। दूसरी ओर सात्यकि व भूरिश्रवा लड़ रहे थे। अर्जुन ने देखा सात्यकि ज़मीन पर पड़ा है और भूरिश्रवा उस पर वार करने को उद्यत है। उसी समय अर्जुन ने एक बाण से भूरिश्रवा की उठी हुई बाँह काट दी। भूरिश्रवा ने श्रीस्रष्ण व अर्जुन की निंदा की। भूरिश्रवा युद्ध के मैदान में शरों को फैलाकर और आसन जमाकर बैठ गया उसने वहीं आमरण अनशन शुरू कर दिया। यह सब देखकर अर्जुन बोला कि वीरो! तुम सब मेरी प्रतिज्ञा जानते हो। मेरे बाणों की पहुँच तक अपने किसी भी मित्र् या साथी का शत्र्ु के हाथों वध न होने देने का प्रण मैंने कर रखा है। इसलिए सात्यकि की रक्षा करना मेरा धर्म था। भूरिश्रवा ने अर्जुन से सहमत होकर अपना सिर ज़मीन पर टेक दिया। इसी मध्य सात्यकि ने भूरिश्रवा का सिर काट लिया। सात्यकि के इस स्रत्य की सभी ने निंदा की। इधर अर्जुन कौरव-सेना को चीरता हुआ जयद्रथ के निकट पहुँच गया। अर्जुन व जयद्रथ में भयंकर युद्ध चल रहा था। सूर्यास्त का समय निकट था। दोनों के मध्य युद्ध जारी था। जयद्रथ सूर्य की ओर देखने लगा, तो श्रीस्रष्ण ने अर्जुन से कहा कि अर्जुन जयद्रथ सूर्य की ओर देख रहा है और मन में समझ रहा है कि सूर्य डूब गया। परंतु अभी तो सूर्य डूबा नहीं है। अपनी प्रतिज्ञा पूरी करने का तुम्हारे लिए यही अवसर है। श्रीस्रष्ण के ये वचन अर्जुन के कान में पड़े ही थे कि अर्जुन के गांडीव से एक तेज़ बाण छूटा और जयद्रथ के सिर को उड़ा ले गया।
यह चौदहवें दिन का युद्ध था। जयद्रथ-वध से उत्साहित युधिष्ठिर ने द्रोणाचार्य पर आक्रमण कर दिया। आज युद्ध रात तक चलता रहा।
द्रोणाचार्य के भयंकर युद्ध को देखकर श्रीस्रष्ण अर्जुन से बोले कि अर्जुन! वुळछ वुळचक्र रचकर ही इनको परास्त करना होगा। आज परास्त न हुए तो ये हमारा सर्वनाश कर देंगे। इसलिए किसी को आचार्य के पास जाकर यह खबर पहुँचानी चाहिए कि अश्वत्थामा मारा गया। इस व्यवस्था के अनुसार भीम ने गदा-बहार से अश्वत्थामा नाम के एक भारी लड़ाके हाथी को मार डाला। फिर द्रोण की सेना के पास जाकर ज़ोर से चिल्लाने लगा-मैंने अश्वत्थामा को मार डाला है। द्रोणाचार्य ने जब सच्चाई जानने के लिए युधिष्ठिर से पूछा, तो युधिष्ठिर ने कहा-अश्वत्थामा मारा गया, पता नहीं मनुष्य या हाथी। वाक्य का अंतिम भाग पांडव-सेना के शोर में आचार्य सुन नहीं पाए। पुत्र्-शोक से दु:खी द्रोण ने हथियार डाल दिए और भूमि पर ध्यानमग्न बैठ गए।
इसी हाहाकार के बीच धृष्टद्युम्न ने ध्यानमग्न आचार्य की गरदन पर खड्ग से जोर का वार किया। आर्चाय द्रोण का सिर तत्काल ही धड़ से अलग होकर गिर पड़ा।