Chapter Notes and Summary
सत्यवती के बडे़ पुत्र् चित्रंगद बड़े वीर थे, किंतु किसी गंधर्व के साथ युद्ध में वे मारे गए। उनकी कोई संतान नहीं थी। इसलिए उनके छोटे भाई विचित्र्वीर्य को हस्तिनापुर का राजा बनाया गया। विचित्र्वीर्य अभी कम उम्र के थे इसलिए राज-काज भीष्म को ही देखना पड़ता था। जब विचित्र्वीर्य विवाह के योग्य हुए तब भीष्म को उनके विवाह की चिंता हुई। काशिराज की कन्याओं का स्वयंवर होने वाला था। भीष्म उस स्वयंवर में पहुँचे। भीष्म को वहाँ उपस्थित देखकर सभी को लगा कि वह मात्र् स्वयंवर देखने के उद्देश्य से वहाँ पधारे हैं किन्तु जब उन्होंने स्वयंवर में अपना नाम दिया तो वहाँ उपस्थित सभी राजकुमारों में हलचल मच गई। सभी भीष्म पर फब्तियाँ कसने लगे। यहाँ तक कि काशिराज की कन्याओं ने भी उनकी अवहेलना की। तब भीष्म सभी राजवुळमारों को हराकर काशिराज की तीनों कन्याओं को बलपूर्वक रथ पर बैठा कर हस्तिनापुर पहुँचे। यहाँ विवाह की सारी तैयारियाँ हो चुकी थी। जब कन्याओं को विवाह मंडप में ले जाने का समय हुआ तो अंबा ने एकान्त में
भीष्म को अपने मन की बात बताई कि मैं सौभदेश के राजा शाल्व को अपना पति मान चुकी हूँ। भीष्म ने अंबा को उचित प्रबंध के साथ शाल्व के पास भेज दिया। इधर अंबा की दोनों बहनों का विवाह विचित्र्वीर्य से हो गया।
उधर अंबा जब शाल्व के पास पहुँची तो उसने अंबा को अपनी पत्नी मानने से इन्कार कर दिया। शाल्व ने अंबा से कहा कि भीष्म बलपूर्वक हरण करके तुम्हें ले गए। इतने बडे़ अपमान के बाद मैं तुम्हें स्वीकार नहीं कर सकता। अब उचित यही होगा कि तुम भीष्म के पास ही लौट जाओ। अंबा हस्तिनापुर लौट आई। बेचारी अंबा न इधर की हुई न उधर की। हार कर वह भीष्म से बोली-आप मुझे हर कर लाए हैं।
अत: आप मुझसे विवाह कर लें। भीष्म ने अंबा को अपनी प्रतिज्ञा की बात याद दिलाई और विचित्र्वीर्य से ही विवाह करने का आग्रह किया किंतु विचित्र्वीर्य ने उस आग्रह को अस्वीकार कर दिया। भीष्म ने अंबा को समझा कर शाल्व के पास ही जाने की प्रार्थना की। लाचार अंबा पुन: शाल्व के पास गई। इस बार भी शाल्व ने उसकी विनती को ठुकरा दिया। इस तरह छह वर्षों तक अंबा हस्तिनापुर और सौभदेश के बीच ठोकरें खाती रही। इन सारे दु:खों का कारण उसने भीष्म को माना। इसलिए उसके मन में बदले की आग जलने लगी।
भीष्म से बदला लेने के लिए अंबा कई राजाओं के पास गई और प्रार्थना की कि युद्ध करके भीष्म से उसके अपमान का बदला लें किंतु राजा भीष्म के नाम से ही डरते थे। राजाओं से निराश होकर अंबा तपस्वी ब्राह्मणों के पास गई। उन लोगों ने उसे परशुराम के पास जाने की सलाह दी। अंत में ऋषियों की सलाह पर अंबा परशुराम के पास गई।
अंबा की करुण कहानी सुनकर परशुराम का हृदय पिघल गया। उन्होंने उससे पूछा कि तुम मुझसे क्या चाहती हो? अंबा भीष्म को मृत्यु दण्ड देना चाहती थी। परशुराम ने अंबा की प्रार्थना पर भीष्म को युद्ध के लिए ललकारा। युद्ध कई दिनों तक चलता रहा किन्तु हार-जीत का फैसला नहीं हो सका। अंत में परशुराम ने हार मान कर अंबा से कहा कि तुम भीष्म की ही शरण में जाओ। किंतु अंबा विचलित नहीं हुई। वह तपस्या करने वन में चली गई। अपने तपोबल से वह स्त्री रूप छोड़कर पुरुष बन गई और उसने अपना नाम शिखंडी रख लिया।
वुळरुक्षेत्र् में कौरवों और पाण्डवों के बीच युद्ध हुआ तब भीष्म के विरुद्ध रथ पर शिखंडी आगे बैठा था। पितामह जानते थे कि शिखंडी कोई अन्य नहीं अपितु अंबा ही है, इसलिए उन्होंने उस पर प्रहार नहीं किया। इस युद्ध में अर्जुन ने शिखंडी को आगे करके भीष्म पितामह पर बाण चलाया और विजय प्राप्त की। जब भीष्म घायल होकर धरती पर गिरे तब अंबा का क्रोध शांत हुआ।