Chapter Notes and Summary
तेजस्वी पुत्र् देवव्रत को पाकर राजा शांतनु ने उसको राजकुमार बना दिया। चार वर्ष और बीत गए। एक दिन राजा शांतनु ने यमुना तट पर खड़ी सत्यवती नाम की युवती को देखा। वह मल्लाहों के सरदार की पुत्री थी। राजा ने जब उससे प्रेम-याचना की तो सत्यवती ने कहा कि मेरे पिता मल्लाहों के सरदार हैं। पहले उनकी अनुमति ले लीजिए। फिर मैं आपकी पत्नी बनने को तैयार हूँ। राजा शांतनु ने सत्यवती के पिता केवटराज से अपनी इच्छा प्रकट की तो केवटराज ने राजा के सामने यह शर्त रख दी, ह्र आपके बाद हस्तिनापुर के राज सिंहासन पर मेरी लड़की का पुत्र् बैठेगा, इस बात का आप मुझे वचन दे सकते हैं? ह्रशांतनु यह शर्त स्वीकार न कर सके।
वे गंगा पुत्र् देवव्रत के अतिरिद्न किसी अन्य को सिंहासन देने की बात सोच भी नहीं सकते थे।
निराश मन से राजा नगर को लौट आए। वह निराश और चिंताग्रस्त रहने लगे। जब देवव्रत ने पिता से दु:ख का कारण पूछा तो राजा ने गोलमोल बात बताई। कुशाग्रबुद्धि देवव्रत ने राजा के सारथी से अपने पिता के दु:ख का कारण पता किया। पिता के मन की व्यथा को देखकर देवव्रत केवटराज से मिले और उनसे कहा कि यदि तुम्हारा आपत्ति का कारण यही है, तो मैं वचन देता हूँ कि मैं राज्य का लोभ नहीं करूँगा।
सत्यवती का पुत्र् ही मेरे पिता के बाद राजा बनेगा। किन्तु केवटराज इससे संतुष्ट नहीं हुए। उन्होंने कहा कि मुझे आप पर पूरा भरोसा है कि आप अपने वचन पर अटल रहेंगे, किन्तु आप जैसे वीर का पुत्र् भविष्य में मेरे नाती से राज्य छीनने का प्रयास नहीं करेगा, यह मैं कैसे मान लूँ। केवटराज के इस प्रश्न को सुनकर पितृ भक्त देवव्रत तनिक भी विचलित नहीं हुए। गंभीर स्वर में देवव्रत ने कहा कि मैं जीवनभर विवाह नहीं करूँगा। आजन्म ब्रह्यचारी रहूँगा। मेरे संतान ही न होगी। अब तो तुम संतुष्ट हो?ह् देवव्रत ने भयंकर प्रतिज्ञा की थी, इसलिए उस दिन से उनका नाम ही भीष्म पड़ गया। केवटराज ने सत्यवती का विवाह शांतनु के साथ कर दिया। सत्यवती के दो पुत्र् हुए-चित्रंगद और विचित्र्वीर्य। शांतनु के बाद चित्रंगद सिंहासन पर बैठे, परन्तु उनकी असमय मृत्यु हो गई।
उनके बाद विचित्र्वीर्य राजा बने जिनके दो रानियाँ थीं अंबिका और अंबालिका। अंबिका से धाृतराष्ट्र व अंबालिका से पांडु पैदा हुए। धाृतराष्ट्र के पुत्र् कौरव व पांडु के पुत्र् पांडव कहलाए। कुरूक्षेत्र् के युद्ध के अंत तक महात्मा भीष्म इस वंश के कुल नायक और पूज्य रहे।