Chapter Notes and Summary
पिछले दस पंद्रह वर्षों में भारत में खानपान की संस्स्रति बहुत बदली है। दक्षिण भारत के विशेष व्यंजन; जैसे-इडली-डोसा, बड़ा-साँभर, रसम अब उत्तर भारत में सुलभ हैं तो उत्तर भारत की रोटी-दाल-साग और विशेषकर यहाँ की ‘ढाबा’ संस्स्रति पूरे देश में फैल चुकी है। फास्ट पूळड; जैसे-बर्गर, नूडल्स, पिज्जा आदि पूरे देश में तेजी से प्रचलित हुए हैं।
भारत के अलग-अलग क्षेत्रें की विशेषता माने जाने वाले वुळछ प्रमुख खाद्य पदार्थ अब पूरे देश में कहीं भी आसानी से मिल जाते हैं जैसे-गुजराती ढोकला-गाठिया, बंगाली मिठाइयाँ आदि। अंग्रेजी राज में साहबी ठिकानों तक सीमित रहने वाली ब्रेड अब लाखों-करोड़ों हिन्दुस्तानियों की रसोई में प्रवेश कर चुकी है। खानपान में आए इस बदलाव से सबसे अधिक प्रभावित युवा वर्ग है। उन्हें स्थानीय व्यंजनों की तो अधिक जानकारी नहीं है। लेकिन नए व्यंजनों के बारे में उन्हें काफी जानकारी है।
खानपान में आए बदलाव से जो इसकी नयी मिली-जुली संस्स्रति उभरी है उसके सकारात्मक पक्ष भी हैं। इन्हें बनाने में समय की बचत तो होती ही है, नयी पीढ़ी देश-विदेश के व्यंजनों को भी जानने लगी है। खानपान की इस नयी संस्स्रति ने राष्ट्र को एक सूत्र् में बाँधने का कार्य भी किया है।