Chapter Notes and Summary
कवि शिवमंगल सिंह ‘सुमन’ द्वारा रचित ‘हम पंछी उन्मुक्त गगन के’ कविता में पक्षियों के माध्यम से स्वतंत्र्ता के महत्त्व को दर्शाया गया है। कविता के माध्यम से पक्षी कह रहे हैं कि हम खुले आकाश में विचरण करते हैं। यदि हमें पिंजड़े में बन्द कर दिया गया तो हम अपना मधुर गीत नहीं सुना पाएँगे। पिंजड़ा भले ही सोने का क्यों न हो, खुशी में फडफ़ड़ाते हमारे पंख उससे टकरा कर टूट जाएँगे, इसलिए पिंजड़े में बन्दी जीवन हमारे लिए महत्त्वहीन है। हम नदियों और झरनों का बहता जल पीने वाले हैं, पिंजड़े के अन्दर न तो हमारी भूख मिटेगी और न ही प्यास। हमें आज़ाद रहकर कड़वी निबौरी खाना अधिक पसंद है, क्योंकि वह चाहे कितनी भी कड़वी हो पर गुलामी में रहकर सोने की कटोरी में मैदा खाने से तो अच्छी है। सोने के पिंजरे में कैद होकर हम अपनी गति और उड़ने की कला सब भूल गए हैं। वृक्ष की ऊँची डालियों पर झूला झूलना अब एक सपना बन कर रह गया है हमारी इच्छा थी कि हम उड़ते हुए नीले आकाश की सीमा तक पहुँच जाएँगे और सूरज की किरणों जैसी अपनी लाल चोंच से तारों जैसे अनार के दाने चुगेंगे। अगर हम आज़ाद रहेंगे तो हम आकाश की सीमा तक पहुँच जाएँगे। हमारी उड़ान की प्रतिस्पर्धा सीमाहीन क्षितिज से होगी। इस प्रतिस्पर्धा में या तो हम आकाश की अनंत ऊँचाइयों को छू लेंगे अथवा अपने प्राण त्याग देंगे। अंत में पक्षी मनुष्य से विनयपूर्वक कहते हैं कि भले ही हमारा घोंसला नष्ट कर डालो और हमारा ठिकाना भी तोड़ दो लेकिन जब ईश्वर ने हमें पंख दिए हैं तो हमारी उड़ान में व्यवधान मत डालो यह उड़ान ही हमारा जीवन है। उड़ने की आज़ादी छीनकर हमसे हमारा जीवन मत छीनो।