Chapter Notes and Summary
राम के मन में सीता को लेकर कई प्रश्न थे। राम ने सोचा मारीच की मायावी आवाज़ उन तक न पहुँची हो। तभी उन्होंने लक्ष्मण को आते देखा और सीता को अकेले छोड़कर आने के लिए वह लक्ष्मण पर क्रोधिात हो गये। लक्ष्मण ने कहा मैं जानता था आप सकुशल होंगे, परन्तु देवी सीता ने मुझे आने को विवश कर दिया उस मायावी आवाज़ को सुनकर। राम भागते हुए आश्रम पहुँचे, परन्तु सीता वहाँ नहीं थी, राम ने सीता को हर सम्भव स्थान पर ढूँढा। लक्ष्मण ने राम को ढाँढस बँधाते हुए कहा-आप आदर्श पुरुष हो आपको धौर्य रखना चाहिए।
वन में राम को टूटे रथ के टुकड़े, मरा हुआ सारथी और मृत घोड़े दिखे। वहाँ से थोड़ी दूर राम ने लहुलुहान जटायु को देखा, जटायु ने बताया कि सीता को रावण उठा ले गया। रावण उन्हें दक्षिण-पश्चिम दिशा की ओर उड़ा ले गया है। जटायु की मृत्यु हो गई। राम ने आगे बढ़ने से पहले जटायु की अंतिम क्रिया की।
एक दिन यात्र के प्रारम्भ में ही विशालकाय राक्षस ने उन पर आक्रमण कर दिया। उसका नाम कबंधा था। कबंधा, राम और लक्ष्मण की शक्ति और बुद्धि पर आश्चर्यचकित हो गया और दोनों का परिचय जानकर उन्हें पंपा सरोवर के निकट ऋष्यमूक पर्वत पर वानरराज सुग्रीव से मदद का आग्रह करने को कहा तथा मतंग ऋषि की शिष्या शबरी से अवश्य मिलने का आग्रह किया। कबंधा ने उन दोनों से यह भी इच्छा व्यक्त की कि वे उसका अंतिम संस्कार करें।
राम को आश्रम में देखकर शबरी बहुत प्रसन्न हुई और उन्हें खाने को मीठे बेर दिये। शबरी ने राम को कहा वह सुग्रीव से मित्र्ता करें, वह अवश्य ही सीता की खोज में सहायता करेंगे। शबरी ने राम को आश्वस्त किया।