Chapter Notes and Summary
‘ऐसे-ऐसे’ श्री विष्णु प्रभाकर द्वारा रचित एकांकी है। एक अंक वाले नाटक को एकांकी कहा जाता है। मोहन आठ नौ साल का बालक है। मोहन कमरे में लेटा बार-बार पेट पकड़कर कराह रहा है। उसकी माँ गरम पानी की बोतल से पेट सेंक रही हैं। पिताजी ने बताया इसने एक केला और एक संतरा खाया था। द“तर से अड्डे तक ठीक-ठीक आया पर अड्डे पर कहने लगा ‘ऐसे-ऐसे’ हो रहा है। माँ ने मोहन को हींग, चूरन, पिपरमेंट, फिटकरी दे दी। इसी बीच वैद्यजी आते हैं और नाड़ी देखकर वात का प्रकोप व कब्ज बताकर दवाइयाँ देने की बात करते हैं।
तभी डॉक्टर आ जाता है और जीभ देखकर बदहजमी की बात कहता है और दवा भेजने की बात कहता है। इसी बीच पड़ोसन आकर नई-नई बीमारियों की चर्चा करती है।
तभी मोहन के मास्टर जी आते हैं। वे कहते हैं कि कल तो तुम्हें स्कूल आना है। माँ, मास्टर जी को ‘ऐसे-ऐसे’ वाली बीमारी की बात बताती है। मास्टर जी समझ जाते हैं कि मोहन ने छुटियों का काम नहीं किया है। इसी कारण यह सब बहानेबाजी कर रहा है। मास्टर जी मोहन को दो दिन की छुटी और देकर काम पूरा करके स्कूल आने की बात करते हैं। यह बात सुनकर माँ ठगी-सी रह जाती है। इसी बीच पिताजी दवा की शीशी लेकर आते हैं। सारी बात सुनते ही दवा की शीशी उनके हाथ से गिरकर फूट जाती है और सब हँसने लगते हैं।