Chapter Notes and Summary
भरत अयोधया लौट चुके थे। चित्र्कूट की शांति लौट आई थी। राम चित्र्कूट से जाना चाहते थे, अत: उन्होंने मुनि अत्रि से विदा लेकर चित्र्कूट छोड़ दिया। तीनों वनवासी स्थान और आश्रम बदलते हुए शरभंग मुनि के आश्रम में पहुँचे। मुनि ने उन्हें हडि्डयों का ढेर दिखाया, जिन्हें राक्षसों ने मार डाला था। मुनियों ने राम को गोदावरी के तट पर जाने को कहा। उस स्थान का नाम पंचवटी था। वहीं उन्हें विशालकाय गिद्ध जटायु मिला। जटायु ने बताया वह राजा दशरथ का मित्र् है। वन में वह उनकी रक्षा करेगा। वन में रहने वाली राक्षसी शूर्पणखा ने मायावी शक्ति से सुन्दर स्त्री का रूप बना लिया। वह शादी का प्रस्ताव लेकर राम के पास गई, परन्तु राम के मना करने पर लक्ष्मण के पास गई।
शूर्पणखा दोनों भाइयों के बीच भागती रही। क्रोधा में आकर उसने सीता पर झपट्टा मारा। लक्ष्मण ने तत्काल शूर्पणखा के नाक-कान काट लिए।
खून से लथपथ शूर्पणखा रोती हुई अपने भाई खर और दूषण के पास पहुँची और उन्होंने राम पर आक्रमण कर दिया, परन्तु दोनों युद्ध में मारे गये। शूर्पणखा रोती हुई लंका पहुँची और कहा-रावण तेरे महाबली होने का क्या लाभ? तेरे होते हुए मेरी यह दुर्गति? शूर्पणखा ने राम-लक्ष्मण के बल की तथा सीता की सुन्दरता की प्रशंसा करते हुए कहा कि सीता को लंका के राजमहल में होना चाहिए। अकंपन ने कहा, राम कुशल योद्धा हैं। उन्हें कोई मार नहीं सकता इसका एक ही उपाय है कि सीता का अपहरण किया जाए। इससे उनके प्राण स्वयं ही निकल जाएँगे। अत: रावण सीता-हरण के लिए तैयार हो गया।
रथ पर रावण और मारीच पंचवटी पहुँचे। राम की कुटी के निकट मारीच ने सोने के हिरण का रूप धारण कर लिया। रावण ने तपस्वी का रूप धारण कर लिया। सीता हिरण पर मोहित हो गई। राम को हिरण पर संदेह था परन्तु सीता की प्रसन्नता के लिए हिरण को पकड़ने के लिए उसके पीछे चल दिए। कुटी से निकलते समय राम ने लक्ष्मण को कहा, मेरे लौटने तक सीता को अकेले मत छोड़ना। लक्ष्मण धानुष लेकर बाहर खड़े हो गए।