Chapter Notes and Summary
भरत कैकेयी राज्य में थे। अयोधया की घटनाओं से सर्वथा अनभिज्ञ। भरत ने सपने में देखा कि समुद्र सूख गया। चन्द्रमा धारती पर गिर पड़ा है। वृक्ष सूख गये हैं। एक राक्षसी उसके पिता को ख°चकर ले जा रही है। वे रथ पर बैठे हैं। रथ गधो ख°च रहे हैं।
भरत को जब अयोधया के सम्बन्धा में समाचार मिला तो वे तुरन्त वापस लौट आए। वापस लौटने पर भरत को उनकी माता ने बताया कि उनके पिता महाराज दशरथ का देहान्त हो गया है। इस पर भरत ने दु:खी मन से माता से पूछा कि उनके पिता ने उनके लिए कोई संदेश छोड़ा? वैळकेयी ने कहा तुम्हारे लिए कुछ संदेश नहीं छोड़ा।
वरदान की कथा सुनाते हुए कैकेयी ने कहा-ह्रउठो पुत्र्! राजगद्दी संभालो। अयोधया का निष्कंटक राज्य अब तुम्हारा है। भरत चीख पडे़, ह्रयह तुमने क्या किया, माते! ऐसा अनर्थ! घोर अपराधा! अपराधिानी हो तुम। मेरे लिए यह राज्य अर्थहीन है। मैं राम के पास जाऊँगा। उन्हें मनाकर लाऊँगा। प्रार्थना करूँगा कि वे गद्दी सँभालें मैं दास बन के रहूँगा।
भरत कौशल्या के महल की ओर चल पडे़। रानी कौशल्या ने उन्हें क्षमा कर दिया। अगले दिन तक शत्र्ुघ्न को पता चल गया था कि वैळकेयी के कान किसने भरे थे। मुनि वशिष्ठ ने भरत से कहा, ह्रवत्स, तुम राजकाज संभाल लो।ह् भरत ने महर्षि का आग्रह अस्वीकार कर दिया।
अगली सुबह भरत सभी मंत्र्यिों और सभासदों के साथ वन जाने के लिए तत्पर हो गए। राम और सीता पर्णकुटी में थे। लक्ष्मण पहरा दे रहे थे। कोलाहल सभी ने सुना।
लक्ष्मण ने देखा अयोधया की विराट सेना चली आ रही है। लक्ष्मण ने पेड़ पर चढ़कर देखते ही कहा-ह्रभैया, भरत सेना के साथ इधार आ रहे हैं। लगता है कि वे हमें मार डालना चाहते हैं ताकि एकछत्र् राज्य कर सकें।ह् राम ने लक्ष्मण को समझाया कि भरत उन पर हमला नही कर सकता। राम ने कहा-ह्रभेंट के लिए आ रहा होगा।ह् लक्ष्मण ने कहा-ह्रभेंट के लिए सेना के साथ आने की क्या आवश्यकता है?ह् राम ने कहा-ेवीर पुरुष धौर्य का साथ कभी नहीं छोड़ते हैं। कुछ समय प्रतीक्षा करो। इस प्रकार उतावलापन उचित नहीं है।ह् शत्र्ुघ्न, भरत, राम के चरणों की वन्दना करने के लिए गिर पड़े। राम ने दोनों को सीने से लगा लिया। सबकी आँखों में आँसू थे। राम को पता चला कि उनसे मिलने उनके गुरुजन, माता कौशल्या तथा वैळकेयी आई हैं।
अगले दिन भरत ने राम से राजग्रहण करते हुए अयोधया चलने का आग्रह किया। राम के मना करने पर भरत ने कहा कि मैं आपके खड़ाऊँ अपने साथ लेकर जाऊँगा और चौदह वर्ष उसी की आज्ञा से राजकाज चलाऊँगा। भरत अयोधया में कभी नहीं रुके। उन्होंने तपस्वी वस्त्र् पहने और नंदीग्राम चले गए।