6 Hindi Chapter 4 राम का वन गमन

Chapter Notes and Summary
कोपभवन के घटनाक्रम की जानकारी बाहर किसी को नहीं थी। कैकेयी अपनी जिद पर अड़ी थी। हर व्यक्ति शुभ घड़ी की प्रतीक्षा में था।
मंत्री सुमंत्र् ने देखा महाराज पलंग पर बीमार अवस्था में पड़े हैं। दशरथ ने क्षीण स्वर में राम से मिलने की इच्छा जाहिर की। सुमंत्र् ने राम से जाकर कहा-ह्रराजकुमार, महाराज ने आपको बुलाया है। आप मेरे साथ चलें।ह् राम ने पिता से पूछा-ह्रपिताजी मुझसे कोई अपराधा हुआ है? कोई कुछ बोलता क्यों नहीं। आप बताइए, मातेह्? कैकेयी बोली-ह्रमहाराज दशरथ ने मुझे दो वरदान दिए थे। मैंने कल रात्रि दोनों वर माँगे। जिससे यह पीछे हट रहे हैं। मैं चाहती हूँ कि राज्याभिषेक भरत का ही हो और तुम चौदह वर्ष के लिए वन में रहो।
राम ने संयत रहकर दृढ़ता से कहा-ह्रपिता का वचन अवश्य पूरा होगा। भरत को राजगद्दी दी जाए। मैं आज ही चला जाऊँगा। कैकेयी के महल से निकलकर राम सीधो अपनी माता कौशल्या के पास गए। उन्होंने माता कौशल्या को कैकेयी के भवन का विवरण दिया और अपना निर्णय सुनाया। कौशल्या ने अपने पुत्र् को दसों दिशाओं को जीतने का आशीर्वाद दिया।
राम की पत्नी सीता ने कहा मैं छाया की तरह हमेशा आपके साथ रहूँगी। दशरथ ने कहा पुत्र् मैं वचनबद्ध हूँ परन्तु तुम्हारे ऊपर कोई बंधान नहीं है। तुम मुझे बंदी बनाकर राज संभालो। महामंत्री सुमंत्र् ने शाम तक राम, लक्ष्मण व सीता को शृंगवेरपुर में पहुँचा दिया। निषादराज गुह ने उसका स्वागत किया। सुमंत्र् के अयोधया लौटते ही सभी लोगों ने तथा महाराज ने प्रश्न पूछने शुरू किए। वन-गमन के छठे दिन दशरथ ने प्राण त्याग दिए। राम का वियोग उनसे सहा नहीं गया। दूसरे दिन महर्षि वशिष्ठ ने मंत्र्पिरिषद् से चर्चा की कि राजगद्दी खाली नहीं रहनी चाहिए। तय हुआ कि भरत को तत्काल अयोधया बुलाया जाए। घुड़सवार दूत भरत को अयोधया आने का संदेश देने हेतु रवाना किए गए।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *