Chapter Notes and Summary
राजा दशरथ राम का राज्याभिषेक करना चाहते थे। उन्होंने राम को राज-काज में शामिल करना शुरू कर दिया। राम बहुत ही विद्वत्ता, पराक्रम व विनम्रता से कार्य कर रहे थे।
राजा दशरथ ने दरबार में कहा-ह्रमैं वृद्ध हो चला हूँ, अत: राज्य का कार्यभार राम को सौंपना चाहता हूँह् सभा ने इस प्रस्ताव का स्वागत किया। भरत व शत्र्ुघ्न उस समय अपने नाना के यहाँ थे। राज्याभिषेक की तैयारियाँ रानी कैकेयी की दासी मंथरा ने भी देखी। यह सुनकर कि राम का राज्याभिषेक होने जा रहा है उसने जाकर कैकेयी से कहा कि कल राम का राज्याभिषेक होने वाला है, अब राम युवराज होंगे।
कैकेयी ने कहा-ह्रअच्छी बात है राम इस पद के लिए योग्य है।ह् मंथरा ने कहा-अगर राम को राज मिल गया तो वे भरत को देश निकाला दे देंगे और दंड भी देंगे। कोई ऐसा उपाय करो कि राजगद्दी भरत को मिले और राम को जंगल भेज दिया जाए। उसकी बातों का कैकेयी पर असर पड़ा। मंथरा ने वैळकेयी को उसके दो वरदान याद दिलाए जो दशरथ ने कभी देने का वादा किया था। उसने रानी कैकेयी को दशरथ से उन्हें माँगने को भेजा। पहला भरत को राजगद्दी तथा दूसरा राम को चौदह वर्ष का वनवास। रानी कैकेयी कोपभवन में चली गई।
दशरथ कोपभवन में जाकर कैकेयी की दशा देखकर व्यथित हो गए और पूछा-ह्रतुम्हें क्या दु:ख है?ह्, ह्रकैकेयी रोती हुई बोलीह्, ह्रमैं जो माँगू उसे पूरा करोगे?ह् दशरथ ने कहा, ह्रतुम मेरी सबसे प्रिय रानी हो, मैं तुम्हारी हर इच्छा पूरी करूँगा।ह् आपने दो वचन मुझे देने का संकल्प वर्षों पहले रणभूमि में लिया था। दशरथ ने हामी भरी। कैकेयी ने कहा ह्रसुबह राज्याभिषेक भरत का हो, राम का नहीं तथा राम को चौदह वर्ष का वनवास हो।ह् दशरथ अवाक् रह गए। वे मू£च्छत होकर गिर पड़े। कुछ समय बाद दशरथ ने नेत्र् खोले तो कैकेयी उनसे बोली ह्रअपने वचन से पीछे हटना रघुकुल का अनादर है। आप चाहें तो ऐसा कर सकते हैं। पर आप दुनिया में मुँह दिखाने योग्य न रहेंगे। आप वरदान नहीं देंगे तो मैं विष पीकर अपनी जान दे दूँगी और कलंक आपके माथे होगा।ह् राजा दशरथ कैकेयी को समझाते, गिड़गिड़ाते रहे पर कैकेयी टस से मस नहीं हुई। सारी रात इसी तरह बीत गई।