6 Hindi Chapter 2 बचपन प्ष्णा सोबती

Chapter Notes and Summary
लेखिका बच्चों को अपने बचपन के बारे में कुछ बताना चाहती है। वह पिछली शताब्दी में पैदा हुई थी। तब से अब तक उसमें सयानापन आ गया है। बचपन में वह रंग-बिरंगे कपड़े पहनती थी पर अब वह हल्वेळ रंग के कपड़े पहनती है। उसे बचपन के फॅकों के विषय में अब भी याद है। उसे अपने मोजों के विषय में भी याद है, जिन्हें खुद धोना पड़ता था। रविवार को सुबह जूतों पर पॉलिश करनी होती थी। उसे अब भी अपना बूट पॉलिश करना अच्छा लगता है। नए जूते इतने आरामदेह नहीं होते। उनके काटने से घाव हो जाता था पैरों में छालों से बचने के लिए जूतों में रूई लगानी होती थी। हर शनिवार को कैस्टर ऑयल पीना पड़ता था।
उन दिनों आज की तरह रेडियो और टेलीविजन नहीं थे केवल घरों में ग्रामोफोन हुआ करते थे। तब की कुल्फी, आइसक्रीम, कचौड़ी-समोसा, पैटीज में तथा शरबत, कोल्ड ड्रिंक में बदल गए हैं। उसे शिमला के खठे-मीठे फल, चना जोर गरम और अनारदाने का चूर्ण खूब पसंद थे। लेखिका को छुटपन में शिमला रिज पर घोड़ों की सवारी में बहुत मजा आता था। शाम के रंगीन गुब्बारे, जाखू का पहाड़, चर्च की बजती घंटियाँ और इसका संगीत मनोहारी था। उसे सूर्योदय का दृश्य कितना सुहावना लगता था? उस समय इतनी तेज र“तार वाली रेलगाड़ियाँ भी नहीं थी। कभी-कभी हवार्ह जहाज देखने को मिल जाते थे। लगता था कोई भारी-भरकम पक्षी तेज गति से उड़ा जा रहा है।
लेखिका को शुरू-शुरू में चश्मा लगाना अटपटा लगता था। डॉक्टर कहते थे कि यह बाद में उतर जाएगा, पर अब तक तो उतरा नहीं।
पहली बार चश्मा लगाने पर उसके भाई उसे छेड़ते थे और कहते थे कि उसकी सूरत लंगूर जैसी लग रही है। अब वह चश्मा चेहरे का एक अंग बन गया है। लेखिका ने अनेक टोपियाँ इकठी कर रखी हैं, जिन्हें वह आज भी लगाना पसंद करती है।

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