Chapter Notes and Summary
विभीषण चाहते थे कि राम कुछ दिन वहीं लंका में रुक जाएँ। राम ने लंका नगरी में कदम नहीं रखा था। विभीषण के राज तिलक के समय भी राम उस नगरी से दूर रहे थे। विभीषण ने प्रस्ताव रखा कि वे राम के राज्याभिषेक में उपस्थित होना चाहते हैं। राम ने उनका आग्रह स्वीकार कर लिया। विभीषण, सुग्रीव व हनुमान सभी राम के साथ अयोधया के लिए पुष्पक विमान में बैठकर रवाना हो गए। रणभूमि, नल-नील द्वारा बनाया गया सेतुबंधा, किष्ंिकधा (सुग्रीव की राजधानी) ऋष्यमूक पर्वत, पंपा सरोवर, गोदावरी नदी, पंचवटी आदि सभी स्थानों से राम ने सीता का परिचय करवाया।
गंगा-यमुना के संगम पर ऋषि भारद्वाज के आश्रम में विमान उतरा। वहीं से राम ने हनुमान को अयोधया में भरत को उनके आगमन की पूर्व सूचना देने के लिए भेजा। उन्हें संशय था कि इन 14 वर्ष में भरत को सत्ता का मोह तो नहीं हो गया। तभी उन्होंने हनुमान को भेजते समय कहा कि धयान से देखना राम के आने का समाचार सुनकर भरत के चेहरे पर वैळसे भाव आते हैं। जैसे ही हनुमान ने राम के आने की सूचना भरत को दी, भरत की प्रसन्नता का ठिकाना न रहा। राम का विमान नंदीग्राम में उतरा। उनका भव्य स्वागत हुआ। राम ने भरत को गले लगाया।
माताओं को प्रणाम किया। भरत ने खड़ाऊँ उठाकर राम को अपने हाथों से पहनाई। राम-लक्ष्मण ने नंदीग्राम में तपस्वी के वस्त्र् उतारकर राजसी वस्त्र् पहने। राम ने पुष्पक विमान कुबेर के पास भेज दिया। राजमहल पहुँचते ही मुनि वशिष्ठ ने कहा,ह्रकल सुबह राम का राज्याभिषेक होगा।ह् इसकी तैयारी शत्र्ुघ्न ने पहले ही कर दी थी। पूरा नगर सजाया गया।
अगले दिन मुनि वशिष्ठ ने राम का राज्याभिषेक किया। राम व सीता सोने के रत्नजड़ित सिंहासन पर बैठे। लक्ष्मण, भरत व शत्र्ुघ्न उनके पास खड़े थे। हनुमान नीचे बैठे थे। माताओं ने उनकी आरती उतारी। राम ने सीता को एक बहुमूल्य हार दिया।
सीता ने अपने गले का हार उतारकर हनुमान को दे दिया। उनकी भक्ति व परिश्रम के लिए। कुछ दिनों में एक-एक करके सभी अतिथि चले गए। विभीषण लंका लौट गए। हनुमान राम दरबार में ही रहे।
राम ने लम्बे समय तक अयोधया पर राज किया। उनके राज में किसी को कष्ट नहीं था। सभी सुखी थे। उनका राज्य रामराज्य था। आज तक रामराज्य स्मृतियों में है।