Chapter Notes and Summary
पर्वत शिखर पर खड़े हनुमान ने विराट समुद्र की ओर देखा। हनुमान ने पूर्व दिशा की ओर मुँह करके पिता को प्रणाम किया। फिर अगले ही पल वह आकाश में थे। उनकी परछाईं समुद्र में विराट नाव की तरह दिखती थी। समुद्र के अंदर एक पर्वत था मैनाक। मैनाक चाहता था कि हनुमान कुछ देर विश्राम कर लें, परन्तु हनुमान नहीं रुके।
रास्ते में राक्षसी सुरसा मिली, वह हनुमान को खाना चाहती थी हनुमान उसके मुँह में घुसकर निकल आए। आगे राक्षसी ¥सहिका मिली उसने जल में हनुमान की परछाईं पकड़ ली। लंका नगरी को ठीक से देखने के लिए हनुमान एक पहाड़ी पर चढ़ गए।
उनके सामने पहला प्रश्न सीता का पता लगाना था। वे बचते-बचते महल में घुसने लगे। सीता जैसी कोई स्त्री उन्हें नहीं दिखाई पड़ी।
तभी उनका धयान वाटिका की ओर गया। वहाँ से उन्हें अटाहास सुनाई पड़ा। राक्षसियों के बीच एक स्त्री बैठी थी। यह सीता माँ है। उन्होंने मन में सोचा। पेड़ पर बैठे-बैठे उन्होंने राम की दी हुई अँगूठी नीचे गिरा दी तथा राम कथा प्रारम्भ कर दी। सीता ने पूछा, ह्रकौन हो तुम?ह् हनुमान ने कहा, ह्रहे माता! मैं श्रीराम का दास हनुमान हूँ। सीता ने राम का कुशल-क्षेम पूछा। कई प्रश्न किए। चलते समय सीता ने अपना एक आभूषण उन्हें दे दिया। हनुमान ने कहा, ह्रनिराश न हो, माते! श्रीराम दो माह में यहाँ अवश्य पहुँच जाएँगे।ह् हनुमान ने अशोक वाटिका उजाड़ दी। रावण को इसकी सूचना दी गई। रावण ने कहा, ह्र उस वानर को मेरे सामने उपस्थित करो। उसने जघन्य अपराधा किया है।ह् पहले रावण का पुत्र् अक्षय कुमार राक्षसों की सेना लेकर आया। हनुमान ने अक्षय कुमार का वधा कर दिया तब प्रबल पराक्रमी मेघनाद रावण ने भेजा। उसने हनुमान को नागपाश में बाँधाकर राजसभा में पेश किया। राक्षस उन्हें ख°चते हुए रावण के दरबार में ले आए। सेनापति ने पूछा, ह्रकौन हो तुम? किसने तुम्हें यहाँ भेजा है?ह् हनुमान बोले, ह्रमैं श्रीराम का दास हूँ। मेरा नाम हनुमान है। मैं सीता माता की खोज में यहाँ आया था। रावण ने हनुमान की पूँछ में आग लगा देने की आज्ञा दी। इसी बीच हनुमान ने बंधान तोड़ दिए तथा एक भवन पर चढ़कर उसमें आग लगा दी। एक से दूसरी अटारी पर कूदते हुए लंका के सभी भवन जला दिए और फिर समुद्र में कूदकर अपनी जलती पूँछ की आग बुझा ली।
दूसरे तट पर सभी हनुमान की प्रतीक्षा कर रहे थे। हनुमान ने सबको संक्षेप में लंका का हाल सुनाया। हनुमान ने राम को सीता द्वारा दिया, गया आभूषण दिया और कहा वे व्याकुल हैं। हर समय राक्षसियों से घिरी रहती हैं। आपकी प्रतीक्षा कर रही हैं। लक्ष्य स्पष्ट था-लंका पर आक्रमण। सुग्रीव ने लक्ष्मण के साथ बैठकर युद्ध की योजना पर विचार किया। हनुमान, अंगद, जामवंत, नल और नील को आगे रखा गया।
देर रात तक चर्चा चलती रही।