6 Hindi Chapter 1 अवधापुरी में राम

Chapter Notes and Summary
अवधा में सरयू नदी के किनारे एक सुन्दर नगर अयोधया था। अयोधया में केवल राजमहल ही भव्य नहीं था, बल्कि वहाँ की इमारतें, सड़कें, बाग-बगीचे, सरोवर, खेत फसलें आदि भी सुन्दर थीं।
महाराज अज के पुत्र् दशरथ-रघुकुल के उत्तराधिाकारी न्यायप्रिय, सदाचारी मर्यादाओं का पालन करने वाले शासक थे। उनके पास सब राजसुख था। दु:ख था तो यह कि तीन रानियों के होते हुए भी उनके कोई सन्तान नहीं थी।
बहुत सोच-विचारकर राजा दशरथ ने इस सम्बन्धा में वशिष्ठ मुनि से चर्चा की। उन्होने राजा दशरथ को पुत्र्ेष्टि यज्ञ करने की सलाह दी। यज्ञ तपस्वी ऋषिश्रंगी की देखरेख में हुआ। अग्नि देवता ने महाराज दशरथ को आशीर्वाद दिया। तीनों रानियाँ पुत्र्वती हुईं। बड़ी रानी (कौशल्या) ने चैत्र् नवमी के दिन राम को, मंझली रानी (सुमित्र) ने दो पुत्रें लक्ष्मण तथा शत्र्ुघ्न को तथा छोटी रानी (कैकेयी) ने भरत को जन्म दिया। राजमहल में खुशी छा गई। बधाइयाँ बजने लगीं, मंगल गीत गाए गए। चारों राजकुमार धीरे-धीरे बड़े हुए। चारों अत्यन्त सुन्दर थे तथा चारों में बहुत प्रेम था। उन्होंने कुशल और अपनी विद्या में दक्षा गुरूजनों से ज्ञान अर्जित किया तथा शस्त्र् विद्या सीखी।
ज्येष्ठ पुत्र् राम शालीन व न्यायप्रिय होने के कारण राजा दशरथ को सबसे अधिाक प्रिय थे। राजकुमार भी विवाह योग्य हो गया। दशरथ भी अपनी संतानों के लिए सुयोग्य बहुएँ चाहते थे।
एक दिन अचानक महर्षि विश्वामित्र् अयोधया में पधारे। दशरथ ने उन्हें ऊँचा आसन दिया। दशरथ ने पूछा-ेमहर्षि, मैं आपकी क्या सेवा कर सकता हूँ? महर्षि बोले!ह् राजन मैं जो माँगने जा रहा हूँ उसे देना आपके लिए कठिन होगा।ह् मैं सििट के लिए एक यज्ञ कर रहा हूँ।
लेकिन दो राक्षस उसमें बाधा डाल रहे हैं उन राक्षसों को केवल आपका ज्येष्ठ पुत्र् ‘राम’ ही मार सकता है। आप अपने ज्येष्ठ पुत्र् को मुझे दे दें ताकि यज्ञ पूरा हो सके। पुत्र्-वियोग की आशंका से काँपकर दशरथ दो बार बेहोश हो गए। विश्वामित्र् ने कहा-ेमैं राम को केवल कुछ दिनों के लिए ही माँग रहा हूँ।ह् राजा दशरथ ने कहा मेरा राम तो अभी सोलह वर्ष का ही है वह राक्षसों से कैसे लड़ेगा? मैं स्वयं आपके साथ चलने के लिए तैयार हूँ।
ऋषि ने कहा-ेआप रघुकुल की रीति तोड़ रहे हैं। वचन देकर पीछे हट रहे हैं। यह कुल के विनाश का सूचक है।ह् बात बिगड़ती देखकर मुनि वशिष्ठ आगे आए। उन्होंने कहा महर्षि विश्वामित्र् स्टि पुरुष हैं। अनेक गुप्त विद्याओं के जानकार हैं। राम उनसे अनेक विद्याएँ सीख सकेंगे।
दशरथ ने दु:खी मन से बात स्वीकार कर ली लेकिन राम के साथ लक्ष्मण को भी ले जाने का आग्रह किया। विश्वामित्र् मान गए।
दशरथ ने राम-लक्ष्मण को दरबार में बुलाकर अपने निर्णय की सूचना दी। दोनों भाइयों ने आदर सहित सिर झुका दिया।
दोनो राजकुमार बिना विलम्ब किए महर्षि के साथ बीहड़ जंगलों की ओर चल पड़े विश्वामित्र् आगे-आगे राम उनके पीछे थे और लक्ष्मण धानुष संभाले हुए पीठ पर तूणीर बाँधो, कमर में तलवार लटकाए राम से दो कदम पीछे थे।

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