17. पर्यावरण अध्ययन शिक्षण की समस्याएँ
ज्ञात से अज्ञात की ओर: बच्चों को जो बात पता है, उसी संदर्भ से शुरू करके नये-नये ज्ञान को देने का प्रयास करें, जिससे बच्चों को समझने में कठिनाइयों का सामना नहीं करना पड़ेगा।
विशिष्ट से सामान्य की ओर: अध्यापक को चाहिए कि सर्वप्रथम बच्चों को अनेक तथ्यों पर आधारित उदाहरणों से परिचित कराएँ तथा उन उदाहरणों की मदद से बच्चों से सामान्य सिद्धान्तों को निकालने का अभ्यास कराएं तथा उसके लिए यदि बच्चों को प्रेरित करें, तो बच्चों के अंदर रुचि उत्पन्न होगी।
मनोवैज्ञानिक से तर्कात्मक कर्म की ओर: तर्कात्मक ज्ञान का अर्थ है, विद्यार्थियों के ज्ञान को तर्कात्मक ढंग से विभिन्न खंडों में विभाजित करके प्रस्तुत करना। बच्चों की आयु, जिज्ञासा, रुचि तथा आवश्यकता एवं ग्रहणशक्ति के अनुसार उनमें तर्कात्मक क्षमता को बढ़ाना चाहिए।
शिक्षक परीक्षण
शिक्षकों को उचित प्रशिक्षण न मिल पाना ही पर्यावरण अध्ययन के शिक्षण में एक बाधा है। शिक्षकों को विषय संबंधी प्रशिक्षण पर ध्यान देने की आवश्यकता है। पर्यावरण अध्ययन के विभिन्न विषयों की शिक्षक पुस्तिका के प्रयोग को अनिवार्य किया जाना चाहिए। आत्मसम्मान की कमी पाठ्यक्रम का बोझ, रटने की प्रवृत्ति आदि को वही शिक्षक प्रभावशाली ढंग से संबोधित कर सकता है, जिसकी क्षमताओं का विकास शिक्षक प्रशिक्षण द्वारा हुआ हो। शैक्षिक स्तरों पर गहन और प्रभावी प्रशिक्षण द्वारा पर्यावरण शिक्षण से संबंधित अनुसंधानों के परिणामों को भी शिक्षक की अधिक संख्या के लिए आसान बनाया जा सकता है।
शिक्षक सशक्तिकरण
वर्तमान समय से शिक्षक को जिस प्रकार से तैयार किया जाता है, उससे विज्ञान के शिक्षकों का सबलीकरण नहीं के बराबर हुआ है। शिक्षक के सशक्तिकरण के बारे में लंबे समय से ही वाद-विवाद होता चला आ रहा है। शिक्षक सबलीकरण की अनेक योजनाओं व कार्यक्रमों को चलाया जा रहा है। विज्ञान पाठ्यचर्या के लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए इस मामले पर पुन: प्रयास करने को प्राथमिकता मिलनी चाहिए। शिक्षकों के प्रोत्साहन स्तर को ऊंचा उठाने के लिए व्यवस्थित सुधार, पेशे में भर्ती के लिए अपेक्षाकृत अच्छी योजनाएँ, वेतन में वृद्धि उचित सहायता तंत्र आदि सही साबित हो सकते हैं। शिक्षक प्रशिक्षण के लिए एक ऐसी पाठ्यचर्या की आवश्यकता है जो समय के साथ कदम से कदम मिलाकर चल सके। पर्यावरण अध्ययन शिक्षक-शिक्षा पाठ्यचर्या को आलोचनात्मक कौशल और उन योग्यताओं के मानदंड पर आधारित होना चाहिए, जिसकी उम्मीद शिक्षक से की जाती है।