Chapter Notes and Summary
‘संस्कृति’ पाठ हमें सभ्यता तथा संस्कृति से जुड़े कई जटिल प्रश्नों से टकराने की प्रेरणा देता है। इस निबंध में भदंत आनंद कौसल्यायन ने अनेक उदाहरण देकर यह स्पष्ट करने का प्रयास किया है कि सभ्यता तथा संस्कृति किसे कहते हैं? दोनों एक ही वस्तु हैं अथवा अलग-अलग। वे सभ्यता को संस्कृति का परिणाम मानते हुए कहते हैं कि मानव संस्कृति अविभाज्य वस्तु है। उन्हें संस्कृति का बँटवारा करने वाले लोगों पर आश्चर्य होता है और दुख भी। उनकी दृष्टि में जो मनुष्य के लिए कल्याणकारी नहीं है‚ वह न सभ्यता है और न संस्कृति। जो शब्द सबसे कम समझ में आता है और प्रयोग सबसे अधिक होता है‚ वे दो शब्द हैं—सभ्यता और संस्कृति। इन शब्दों के साथ विशेषण लगाने से ये थोड़े-बहुत समझ में आ जाते हैं। आखिर सभ्यता और संस्कृति है क्या? लेखक ने कई उदाहरण देकर इस बात की पुष्टि की है। लेखक का मानना है कि किसी आविष्कार को करना‚ उसका विचार उत्पन्न होना‚ संस्कृति कहलाती है और फिर अन्य लोगों द्वारा उसको आगे बढ़ाना सभ्यता है। जैसे जिस योग्यता‚ प्रवृत्ति अथवा प्रेरणा के बल पर आग का आविष्कार हुआ‚ वह व्यक्ति विशेष की संस्कृति है तथा उस संस्कृति का उपयोग करते हुए उसके द्वारा जो आविष्कार हुए वह सभ्यता कहलाती है। एक संस्कृति युक्त व्यक्ति किसी नई चीज की खोज करता है‚ वही चीज उसकी संतान को पूर्वजों से अनायास प्राप्त हो जाती है। वह अपने पूर्वजों की भाँति सभ्य भले ही हो जाए परंतु वह संस्कृति युक्त नहीं कहलाएँगे। सभी आविष्कारों के पीछे कोई-न-कोई प्रेरणा अवश्य कार्य करती है। आग के आविष्कार में पेट की ज्वाला प्रेरक रही होगी तथा सुई-धागे के आविष्कार में शीत और उष्ण से बचने
और शरीर को सजाने की प्रेरणा रही होगी। एक व्यक्ति जिसका पेट भरा हो‚ वह जब खुले आकाश को रात में देखता है‚ तो उसे उत्सुकतावश नींद नहीं आती कि आखिर यह मोती भरा थाल क्या है? पेट भरने और तन ढकने की इच्छा संस्कृति की जननी है परंतु भरा पेट और ढका तन होने पर भी जो व्यक्ति खाली नहीं बैठता‚ ऐसे ही व्यक्ति संस्कृति के वाहक होते हैं। जिनमें हमारी सभ्यता का एक अंश मिलता है। रात को तारों को देखकर न सो सकने वाले मनीषी आज हमारे ज्ञान के ऐसे ही पुरस्कर्ता हैं। भौतिक प्रेरणा तथा ज्ञान की इच्छा ही संस्कृति के माता-पिता हैं‚ जो दूसरे के मुँह में कौर डालने के लिए अपने मुँह का कौर छोड़ देता है। यह प्रेरणा उसे कहाँ से मिलती है? यही हमारी संस्कृति है। सभ्यता संस्कृति का परिणाम है। हमारे खाने-पीने‚ रहन-सहन के तरीके हमारी सभ्यता को दर्शाते हैं। संस्कृति में सदा कल्याण की भावना निहित रहती है। अनेक बार सभ्यता और संस्कृति के खतरे में पड़ने की बात की जाती है। कुछ लोग हिंदू संस्कृति‚ मुसलमानों की संस्कृति‚ प्राचीन संस्कृति‚ नवीन संस्कृति की बात करते हैं। वास्तव में संस्कृति ऐसी चीज नहीं है‚ जिसको बाँटा जा सके। जो ऐसी बातें करते हैं‚ वे नहीं जानते कि संस्कृति क्या है?