10 Hindi Chapter 4 शिवप्रसाद मिश्र ‘रळद्र’ एही ठैयॉं झुलनी हेरानी हो रामा!

Chapter Notes and Summary
‘एही ठैयाँ झुलनी हेरानी हो रामा!’ (हे राम‚ इसी स्थान पर मेरी नाक की लोंग खो गई है) काशी की अक्खड़ बोली में शिवप्रसाद मिश्र ‘रुद्र’ द्वारा रचित मर्मस्पर्शी कहानी है। इसमें यथार्थ तथा आदर्श‚ दंतकथा तथा इतिहास‚ मानव मन की कमजोरियों तथा उदात्तता की अभिव्यक्ति हुई है। यह कहानी एक अलग तरह की प्रेम कहानी को अंजाम देती है। यह कथा स्वतंत्रता पूर्व के कालखंड पर आधारित है। यह समाज के मुख्य वर्ग से उपेक्षित एवं बहिष्कृत समझे जाने वाले वर्ग के मन में व्याप्त देश-प्रेम एवं विदेशी शासन के प्रति क्षोभ तथा उसके द्वारा समाज को दिए जाने वाले योगदान को रेखांकित करती है। बनारस में चार-पाँच लोगों के समूह में गाने वालों की परंपरा रही है—‘गोनहारिन परंपरा’! दुलारीबाई भी उसी परंपरा की एक कड़ी है। दुलारी कसरत किया करती थी। वह कसरत करके‚ भीगे हुए चने खा रही थी कि किसी ने दरवाजा खटखटाया‚ दरवाजे पर टुन्नू था। दुलारी बोली‚ ‘‘तुम फिर यहाँ टुन्नू। मैंने तुम्हें यहाँ आने के लिए मना किया था न?’’ टुन्नू की मुस्कुराहट समाप्त हो गई। टुन्नू ने एक लिफाफा‚ जिसमें खास गाँधी आश्रम की बनी साड़ी थी‚ दुलारी को देते हुए कहा कि होली के त्यौहार पर यह साड़ी उसके लिए लाया है। दुलारी क्रोधित स्वर में पूछती है कि ’’तुम मेरे मालिक हो‚ बेटे हो‚ भाई हो‚ कौन हो? अपनी खैरियत चाहते हो तो अपना यह कफन लेकर यहाँ से सीधे चले जाओ।’’
टुन्नू आँखों में आँसू लिए‚ सिर झुकाए‚ आर्द्र कंठ से कहता है‚ ‘‘मैं तुमसे कुछ माँगता तो नहीं हूँ। पत्थर की देवी तक अपने भक्त द्वारा दी गई भेंट को नहीं ठुकराती‚ तुम तो हाड़-मांस की बनी हो।’’ टुन्नू उम्र में दुलारी से बहुत छोटा है। वह खूब समझाती है कि जिस गली में वह आया है‚ उसे नहीं आना चाहिए। टुन्नू ने केवल इतना ही कहा—‘‘मन पर किसी का बस नहीं‚ वह रूप या उम्र का कायल नहीं होता।’’ यह कहता हुआ वह कोठरी से बाहर निकल धीरे-धीरे सीढ़ियाँ उतरने लगा। उसके जाते ही दुलारी ने नीचे गिरी साड़ी उठाई और वह उस पर गिरे टुन्नू के काजल सने आँसुओं के धब्बे पड़े निशान चूमने लगी। उसके मन में टुन्नू के लिए कोमलता के भाव जागृत हो गए। छह माह पहले भादों की तीज के अवसर पर दुलारी टुन्नू से मिली थी। दुलारी पद्य में ही जवाब-सवाल करने की अपनी अद्भुत क्षमता के लिए जानी जाती थी। कजली गाने वाले प्रसिद्ध शायर भी उससे दबते थे। आयोजकों ने दुलारी को कजली-दंगल में उतारकर अपनी जीत निश्चित मान ली थी। साधारण गाना समाप्त होने पर सवाल-जवाब के लिए दुक्कड़ पर चोट पड़ी‚ तो विपक्ष की ओर से सोलह-सत्रह वर्षीय टुन्नू ने आगे आकर दुलारी को ललकारा। लोग हैरान थे। दुलारी अपने स्वभाव के प्रतिकूल खड़ी-खड़ी मुस्कुरा रही थी। टुन्नू का सार्वजनिक रूप से गाने का यह तीसरा या चौथा अवसर था और वह दुलारी जैसी कुशल गायिका से टक्कर ले रहा था। टुन्नू के पिता पुरोहित थे। वे सत्यनारायण की कथा‚ विवाह‚ श्राद्ध आदि कराकर कठिनाई से गृहस्थी चला रहे थे। बेटे की इस शायरी पर वे दुखी थे लेकिन बजरडीहा टोले वालों को उसकी प्रतिभा पर मान था। टुन्नू ने दुलारी के पके रंग की ओर इशारा करते हुए गीत पढ़ा‚ जिसका भाव था तुम तो कोयल हो‚ कोयल को कौए की मादा पालती है। तुम्हारा पोषण भी दूसरों के द्वारा हुआ है। कोयल की आँखें लाल होती हैं। यह कमी भी पूरी हो रही है‚ मेरा गीत सुनकर तुम्हारे नेत्र लाल होते जा रहे हैं। टुन्नू का आक्षेप सुनकर दुलारी हँसी और टुन्नू के पतले चेहरे को देखकर गीत पढ़ने लगी कि लोग व्यर्थ तुम्हें आदमी समझते हैं‚ तुम तो बगुला हो। बगुले के पर जैसा ही शरीर का अंग है। उसी की तरह तुझे भी हंस की चाल चलने का हौसला हुआ है। कभी किसी दिन तेरे गले में मछली का कांटा फँसेगा‚ तो तेरी कलई खुल जाएगी। इसका जवाब टुन्नू ने गाकर इस प्रकार दिया कि चाहे जितनी गालियाँ गाकर मन की तपन बुझा लो‚ लेकिन हम तो डंके की चोट पर अपने मन की पीड़ा सुनाएँगे। इस पर फेंकू सरदार लाठी लेकर टुन्नू को मारने दौड़ा। दुलारी ने बीच में आकर टुन्नू की रक्षा की। यही दोनों का प्रथम परिचय था। इसके बाद लोगों के बहुत कहने पर भी किसी ने गाना स्वीकार नहीं किया। आज टुन्नू के चले जाने पर दुलारी का मन चंचल हो उठा। अपने प्रति टुन्नू के हृदय की दुर्बलता का अनुभव उसने पहली बार कर लिया था। टुन्नू कई बार दुलारी के पास आया परंतु कोई विशेष बात नहीं हुई। मगर दुलारी इतना समझ गई थी कि टुन्नू के मन में उसके लिए केवल आत्मिक स्नेह है‚ तब उसे लगा कि उसके हृदय के एक कोने में भी टुन्नू अवश्य है। परंतु इतना जानते हुए भी वह सच का सामना नहीं करना चाहती थी क्योंकि उसकी उम्र शायद टुन्नू की माँ से ज्यादा ही थी। इसी उधेड़-बुन में वह चूल्हा जलाकर रसोई की व्यवस्था करने लगी। तभी फेंकू सरदार ने प्रवेश किया। वह धोतियों का बंडल लाया था पर दुलारी ने उसे याद दिलाया कि उसने तो होली पर बढ़िया साड़ी दिलाने का वादा किया था। फेंकू ने वह वादा तीज पर पूरा करने का आश्वासन दिया। उसने बताया कि धंधा मंदा चल रहा है। फिर जुए के गैर-कानूनी धंधे में पुलिस को भी चढ़ावा चढ़ाना पड़ता है। इतने में विदेशी वस्त्रों की होली जलाने के लिए संग्रह करता हुआ देश के दीवानों का दल भैरवनाथ की संकरी गली में घुसा और ’भारतजननी तेरी जय हो’ गीत की ध्वनि सभी इमारतों में गूँजने लगी। एक बड़ी-सी चादर फैलाकर चार व्यक्तियों ने उसके चारों कोनों को मजबूती से पकड़ रखा था। उसी पर खिड़कियों से विदेशी वस्त्रों की वर्षा हो रही थी। दुलारी ने भी खिड़की खोली और मैनचेस्टर और लंकाशायर के मिलों में बनी कोरी धोतियों का बंडल नीचे चादर पर फेंक दिया। नीचे खड़े सभी लोगों की निगाहें ऊपर उठीं। जुलूस में खुफिया पुलिस रिपोर्टर अली सगीर ने यह दृश्य देखकर मकान का नंबर नोट कर लिया। अली सगीर दुलारी को पहचान गया था। उसने पुलिस के मुखबिर फेंकू सरदार की उड़ती झलक भी देख ली थी। सहसा दुलारी फेंकू सरदार की पीठ पर झाड़ू मारती हुई उसे सीढ़ी से नीचे उतारते हुए चिल्लाई—‘‘निकल‚ निकल! आज के बाद फिर मेरे घर आया‚ तो तेरी नाक काट लूँगी।’’ पुलिस रिपोर्टर को देखकर फेंकू उसकी ओर चला गया। दुलारी क्रोधित होकर आँगन में लौट आई। क्रोध में उसने पैर की ठोकर से चूल्हे पर पक रही दाल की बटलोही उलट दी‚ जिससे आग बुझ गई परंतु उसके मन की आग नहीं बुझी। तब पड़ोसिनों ने मीठे वचनों से उसे शांत किया। फिर वह बोली ‘‘तुम्हीं लोग बताओ‚ कभी टुन्नू को यहाँ आते देखा है।’’ जब पड़ोसिनों को पता चला कि दुलारी के क्रोध का कारण फेंकू का टुन्नू के प्रति द्वेष था तो वे दुलारी का समर्थन करने लगीं। इतने में नौ वर्षीय बालक झींगुर ने आकर ताजा समाचार सुनाया कि टुन्नू को गोरे सिपाहियों ने मार डाला और लाश भी उठा ले गए। यह सुनकर दुलारी स्तब्ध हो गई। पड़ोसिनें कर्कशा दुलारी के हृदय की कोमलता देखकर दंग रह गई। दुलारी उठी‚ उसने संदूक में से टुन्नू की दी गई आँसुओं के धब्बों से भरी खद्दर की धोती निकालकर पहन ली। झींगुर से पूछे जाने पर टाउन हॉल जाने के लिए निकली तो थाने के मुंशी ने आकर कहा कि दुलारी को थाने जाना होगा और आज अमन सभा द्वारा आयोजित समारोह में गाना होगा। इधर अखबार के दफ्तर में प्रधान संवाददाता शर्मा जी पर झल्ला रहे थे कि क्या अलिफ-लैला की कहानी लिख लाये हो। यह कहाँ छपेगी और इसे कौन छापेगा? जो भी आपने लिखा है—उसका गवाह आपके सिवा कौन है? आज छाप दें तो अखबार बंद हो जाए और संपादक जी जेल पहुँचा दिए जाएँ। अब संपादक जी भी सजग हुए। पूछने पर प्रधान संवाददाता ने शर्मा जी की लिखी रिपोर्ट आगे कर दी। संपादक के आदेश पर शर्मा जी रिपोर्ट पढ़ने लगे‚ जिसका शीर्षक उन्होंने दिया था—‘‘एही ठैयाँ झुलनी हेरानी हो रामा!’’ रिपोर्ट इस प्रकार थी—कल नगर भर में पूर्ण हड़ताल थी। यहाँ तक कि खोमचे वालों ने भी फेरी नहीं लगाई। लोगों ने जगह-जगह जुलूस निकालकर जलाने के लिए विदेशी वस्त्रों को संग्रह किया। ऐसे ही एक जुलूस के साथ प्रसिद्ध कजली-गायक टुन्नू भी था। जुलूस टाउन हॉल पहुँचकर विघटित हो गया‚ तो पुलिस जमादार अली सगीर ने टुन्नू को पकड़ कर गालियाँ दीं। प्रतिवाद करने पर उसने टुन्नू को बूट की ठोकर मारी। चोट पसली में लगी। टुन्नू गिर पड़ा और उसके मुँह से खून आने लगा। गोरे सैनिकों ने उसे उठाया और कहा कि अस्पताल ले जा रहे हैं। संवाददाता ने गाड़ी का पीछा करके पता लगाया कि टुन्नू मर गया है और रात आठ बजे उसका शव वरुणा में प्रवाहित करते हुए संवाददाता ने देखा है। उल्लेखनीय है कि टुन्नू का दुलारी नामक गौनहारिन से भी संबंध था। शाम को टाउन हॉल में अमन सभा द्वारा आयोजित समारोह‚ जिसमें जनता का एक भी प्रतिनिधि शामिल नहीं था‚ दुलारी को नचाया-गवाया गया। उसे टुन्नू की मृत्यु का समाचार मिल चुका था। वह बड़ी उदास थी और उसने खद्दर की एक साधारण-सी धोती पहन रखी थी। पुलिस उसे जबरदस्ती लाई थी। वह वहाँ गाना नहीं चाहती थी‚ जहाँ कुछ घंटे पहले उसके प्रेमी की हत्या की गई थी। लेकिन वह विवश थी। जमादार सगीर अली की फरमाइश पर उसने दर्द भरे गले से गाया—‘‘ऐही ठैयाँ झुलनी हेरानी हो रामा! कासों मैं पूछूँ?’’ उसकी दृष्टि उसी स्थान पर थी‚ जहाँ बूट की ठोकर खाकर टुन्नू गिरा था। उसने गीत का दूसरा चरण गाया ‘‘सास से पूछूँ‚ ननदियाँ से पूछूँ‚ देवरा से पूछत लजानी हो रामा?’’—ऐसा कहते हुए जमादार अली सगीर की ओर देखकर वह लजाई। उसकी आँखों में आँसू की बूँदें छलक उठीं या यों कहिए कि वे पानी की कुछ बूँदें जो वरुणा में टुन्नू की लाश को फेंकने में छिटकी थीं और अब दुलारी की आँखों में प्रकट हुई। ‘‘सत्य है‚ किंतु छप नहीं सकता।’’ —संपादक ने कहा।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *