Chapter Notes and Summary
‘तताँरा-वामीरो कथा’ अंदमान-निकोबार द्वीपसमूह की एक प्रचलित लोक कथा है। इस द्वीपसमूह के एक छोटे-से द्वीप में जड़ें जमा चुके विद्वेष को जड़-मूल से उखाड़ने के लिए एक युगल को आत्म-बलिदान देना पड़ा था‚ यह पाठ उसी बलिदान की कथा है। प्रेम जोड़ने की प्रक्रिया है जबकि घृणा दो दिलों के बीच दूरी बढ़ाती है। समाज के लिए अपने प्रेम‚ अपने जीवन तक का बलिदान करना बहुत महत्त्व रखता है। ऐसे लोगों को समाज याद रखता है और उनका बलिदान व्यर्थ नहीं जाता। तताँरा और वामीरो का बलिदान ऐसा ही था‚ जिसे उस द्वीप के निवासी गर्व और श्रद्धा से आज भी याद करते हैं।
अंदमान द्वीपसमूह का अंतिम द्वीप ‘लिटिल अंदमान’ है। ‘लिटिल अंदमान’ के बाद निकोबार द्वीपसमूह की शृंखला आरंभ होती है। निकोबार द्वीपसमूह का सबसे पहला द्वीप कार-निकोबार है। एक समय कार-निकोबार और लिटिल अंदमान एक-दूसरे से जुड़े थे। उसी समय वहाँ एक सुंदर गाँव लपाती था। लपाती के निकट ही पासा नामक गाँव था।
तताँरा एक सुंदर तथा साहसी युवक था। उसके पास एक तलवार थी। लोग उसकी तलवार को रहस्यपूर्ण मानते थे। तताँरा लोगों की सहायता के लिए हमेशा तत्पर रहता था‚ इसलिए लोग उसे प्यार करते थे। वह पासा गाँव का रहने वाला था। अन्य गाँवों तक भी उसकी चर्चा थी। वामीरो ‘लपाती’ गाँव की युवती थी।
उसका गायन अत्यधिक प्रभावशाली था।
एक दिन तताँरा जब समुद्र तट पर बैठा लहरों पर पड़ती सूर्य-किरणों को निहार रहा था‚ उसी समय वामीरो के कंठ-स्वर की कूक ने उसे आका षत किया और वह वामीरो के निकट पहुँच गया। वामीरो उसके सुंदर शरीर और आकर्षक व्यक्तित्व से प्रभावित हुई तथा दोनों एक-दूसरे से प्रेम करने लगे। इंतजार‚ मिलन और मूक प्रेम का दौर चलता रहा।
लपाती ग्राम के रीति-रिवाज के अनुसार युवक और युवती का उस ग्राम का होने पर ही वैवाहिक संबंध स्थापित हो सकता था। दोनों रोज निर्धारित स्थल पर पहुँचते और मूा तवत् एक-दूसरे को अनिमेष देखते रहते। लपाती के कुछ युवकों ने तो इस मूक प्रेम को भाँप कर चर्चा शुरू कर दी थी। तताँरा तथा वामीरो को समझाने-बुझाने के कई प्रयास विफल रहे। दोनों ही अडिग थे।
पासा गाँव में आयोजित ‘पशु पर्व’ के दौरान तताँरा तथा वामीरो के मिलन को वामीरो की माँ तथा गाँव वालों ने देखा और उसका विरोध करने लगे।
वामीरो लगातार रोए जा रही थी। तताँरा का क्रोध असहनीय था। वह विवाह की निषिद्ध परंपरा तथा समाज के व्यवहार से क्षुब्ध था। उसे कुछ भी सूझ नहीं रहा था। क्रोध लगातार बढ़ता गया और तताँरा ने अपनी तलवार निकाल कर शक्ति भर उसे धरती में घोंप दिया। तलवार को शक्ति के साथ निकालते हुए‚ वह उसे दूर तक खींचता चला गया। धरती पर पड़ी लकीर गहराती गई और गड़गड़ाहट की तेज आवाज के साथ धरती का सिरा धीरे-धीरे दूर जाने लगा। दूर जाती धरती पर तताँरा की चीख वामीरो ……. वामीरो की ध्वनि के साथ लहरों में समाती चली गई। वामीरो तताँरा की याद में पागल हो गई और अपने परिवार से विलग हो गई। वामीरों का भी बाद में पता नहीं चला।
तताँरा-वामीरो की प्रेम-कथा लिटिल अंदमान और कार-निकोबार के विभाजन का कारण बनी। एक धरती दो टुकड़ों में बँट गई। निकोबारी इस घटना के बाद से दूसरे गाँवों में परस्पर वैवाहिक संबंध स्थापित करने लगे। तताँरा-वामीरो की त्यागपूर्ण मृत्यु से समाज के मनोभाव में सुखद परिवर्तन आया।
‘तताँरा-वामीरो कथा’ लीलाधर मंडलोई की रचना है। लीलाधर मंडलोई मूल रूप से कवि हैं किंतु लोककथा‚ यात्रावृतांत‚ लोकगीत इत्यादि की ओर भी इनकी प्रवृत्ति विकसित होती रही है।