Chapter Notes and Summary
कवयित्री का परिचय
मीरा के पद मुक्तिकामी नारी की वेदना के स्वर हैं‚ जिनमें सामाजिक बंधनों का संताप झेलती नारी का चित्र बार-बार सामने आता है। कृष्णमय मीरा के पद उनकी भक्ति के अवयव हैं। उनके आराध्य कहीं निर्गुण ब्रह्मस्वरूप हैं‚ तो कहीं सगुण मूर्तिस्वरूप गोपीनाथ कृष्ण और कहीं निर्मोही जोगी। मीरा गिरिधर नागर‚ गोपाल की साधिका हैं‚ वह राधा हैं। उनका एकनिष्ठ प्रेम कविता को नि:शब्द बना देने की प्रक्रिया है।
मीरा ने अपने पद में उसी आराध्य को संबोधित किया है। वह उनसे मनुहार करती हैं‚ इजहार करती हैं और अवसर आने पर उलाहना देने से भी नहीं चूकतीं। कृष्ण की क्षमताओं का स्मरण करते हुए‚ उनका बखान करती हैं तथा कर्त्तव्य के प्रति सचेत भी करती हैं।
मीरा भक्तिकाल की प्रसिद्ध कवयित्री थीं। उनका जन्म जोधपुर के चोकड़ी गाँव में हुआ था। मेवाड़ के महाराणा संग्राम सिंह (राणा सांगा) के पुत्र की ब्याहता मीरा ने दुखों के बीच जीवन व्यतीत किया। भौतिक जीवन से निराश मीरा ने घर-परिवार त्याग कर वृंदावन में कृष्ण की आराधना और साधुओं की सत्संगति में अपना शेष जीवन ईश्वर को समर्पित कर दिया।
मीरा की कविता पर संत रैदास का प्रभाव है। उनके पदों में भक्ति और दैन्य के साथ माधुर्य भाव प्रधान है। मीरा के पदों में विभिन्न बोलियों के शब्द मिलते हैं।
राजस्थानी‚ ब्रजभाषा‚ गुजराती के साथ पंजाबी‚ खड़ी बोली तथा पूर्वी बोलियों के शब्द भी मीरा के पदों में मिल जाते हैं।
पाठ्य-पुस्तक में संकलित ‘मीरा के पद’ कल्याण सिंह शेखावत द्वारा संकलित ‘मीराँ ग्रंथावली-2’ से लिए गए हैं।
पदों का भावार्थ
हरि आप हरो जन ……………………… गिरधर‚ हरो म्हारी पीर।
भावार्थ भक्त मीरा और कवयित्री मीरा इस पद में एकाकार हो गई हैं। मीरा अपने आराध्य को संबोधित करती हुई‚ उनकी प्रार्थना में लीन हैं। वह पुकार रही हैं-अपने ईश्वर को। इस पुकार के साथ अपने श्रीकृष्ण की क्षमताओं का वर्णन भी करती जाती हैं। श्रीकृष्ण की लीला को स्पष्ट करती हुई मीरा उन्हें अपना दुख (पीड़ा) दूर करने के लिए पुकार रही हैं। मीरा कहती हैं कि वह सबकी पुकार सुनता है। द्रौपदी की पुकार सुनकर उसकी लज्जा की रक्षा करने पहुँच गए।
भक्त प्रह्लाद की विनती पर नरसिंह रूप धारण कर हिरण्यकश्यपु का वध किया।
उसी ‘हरि’ (कृष्ण) ने गज (हाथी) की विनती पर ग्राह (घड़ियाल) से उसकी रक्षा की। मीरा को विश्वास है कि गिरिधर नागर अवश्य ही उनकी प्रार्थना को सुनकर‚ उनके दुखों का नाश करने आएँगे‚ क्योंकि वे अपने भक्तों की पीड़ा को दूर करने के लिए सदैव सचेत रहते हैं।
काव्यगत विशेषताएँ
• ‘मीराँ’ मीरा का राजस्थानी रूप है।
• ‘काटी कुंजर’ में अनुप्रास अलंकार है।
स्याम म्हाने चाकर राखो जी ……………… नित उठ दरसण पास्यूँ।
भावार्थ मीरा की भक्ति दास्य भाव से प्रारंभ होकर कांत भाव तक पहुँच जाती हैं। इस पद में मीरा अपने आराध्य श्रीकृष्ण को संबोधित करती हुई कहती हैं कि आप अपनी सुविधा के लिए मुझे अपनी सेविका रख लीजिए; चाकरी करते हुए मीरा महल में बाग लगाने की बात भी करती हैं। वह कहती हैं कि मैं आपके महल के बाग को हरा-भरा कर दूँगी। नित्य उठकर आपके दर्शन का लाभ भी मुझे मिल जाया करेगा।
मीरा गिरिधर नागर की अनन्य भक्त हैं‚ वह हर पल अपने आराध्य की निकटता चाहती हैं। वह मानती हैं कि उनका सान्निध्य पाने के लिए चाकरी सबसे सुलभ प्रक्रिया होगी। मीरा का निर्मल ईश्वरीय प्रेम उन्हें वेदना और दास्य भाव से पूर्ण कर देता है।
काव्यगत विशेषताएँ
• यह पद दास्य भाव को वेदना के साथ सामने रखता है।
• यह पद राजस्थानी भाषा में है। ‘यूँ’ की आवृत्ति पद को गीतात्मकता प्रदान करती है।
बिंदरावन री कुंज गली में ……………………. गल वैजयंती माला।
भावार्थ मीरा अपने आराध्य से वृंदावन की गलियों में उनके ‘लीला-गान’ की स्वीकृति चाहती हैं। उनका मानना है कि चाकरी में नित्य प्रति दर्शन की अभिलाषा पूरी हो जाएगी। चाकरी के बदले दैनिक खर्चे के रूप में ‘सुमिरन’ का लाभ चाहती हैं। मीरा भाव-भक्ति की जागीर चाहती हैं। इस प्रकार मीरा अपने आराध्य श्रीकृष्ण के दर्शन‚ सुमिरन और भाव-भक्ति को चाकरी के माध्यम से पाना चाहती हैं।
अंत में मीरा भगवान श्रीकृष्ण के सौंदर्य का वर्णन करती हुई कहती हैं कि वह मोर मुकुटधारी‚ पीला वस्त्र धारण करने वाले तथा गले में वैजयंती फूलों की माला धारण किए हुए अत्यंत शोभायमान हैं।
काव्यगत विशेषता
• मीरा के पदों में लयात्मकता को बनाए रखने का प्रयास हुआ है। खड़ी बोली तथा ब्रजभाषा के शब्द भी मिलते हैं।
बिंदरावन में धेनु चरावे ……………………. हिवड़ो घणो अधीराँ॥
भावार्थ इस पद में मीरा ने श्रीकृष्ण के रूप-सौंदर्य तथा उनके दर्शन के लिए अपने हृदय की व्यथित पीड़ा को सामने रखा है। वे कहती हैं कि कृष्ण वंृदावन में गाय चराते हैं। उनका गाय चराना और मुरली की तान यानि संगीत ने मीरा को प्रभावित किया है। वह कृष्ण को ‘मुरलीवाला’ कहती हैं। ऊँचे-ऊँचे महलों के बीच मैं सुंदर फूलों से सजी फुलवारी यानि बाग बनाऊँगी।
मीरा भगवान कृष्ण के दर्शन को व्याकुल हैं। वह फूलों के रंग वाली (कुसुंबी) साड़ी पहन कर अपने आराध्य साँवरिया (साँवले) कृष्ण को आधी रात यमुना किनारे दर्शन की आकांक्षा से पुकारती हैं। मीरा कहती हैं कि उनके आराध्य गिरिधर नागर हैं‚ जिनके एक दर्शन के लिए वह बहुत अधिक अधीर हैं‚ व्याकुल हैं।
पद
काव्यगत विशेषता
• ‘मोहन मुरलीवाला’ में अनुप्रास अलंकार है।