Chapter Notes and Summary
‘डायरी का एक पन्ना’ हिंदी साहित्य की एक महत्त्वपूर्ण गद्य विधा ‘डायरी’ का उदाहरण है। ‘डायरी-लेखन’ में दैनिक जीवन में होने वाली घटनाओं व अनुभवों को वा णत किया जाता है। प्रस्तुत पाठ ‘डायरी का एक पन्ना’ में लेखक सीताराम सेकसरिया ने 26 जनवरी‚ 1931 के पूरे दिन की उस घटना का लेखा-जोखा पेश किया है‚ जो भारतीय स्वतंत्रता संघर्ष में एक प्रेरणा-बिंदु के रूप में सामने आया। इसने बंगाल‚ खासकर कलकत्ता (कोलकाता) में स्वतंत्रता के प्रति नवीन जागृति को उभार दिया।
भारत ब्रिटिश सत्ता की लंबी दासता को झेल रहा था। महात्मा गाँधी के सत्याग्रह आंदोलन ने आम नागरिकों की अहिंसक स्वतंत्रता संघर्ष में भागीदारी को सुनिश्चित किया। इस आंदोलन ने जनता में आजादी की चेतना को फैलाया।
सन् 1929 में अखिल भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस का अधिवेशन लाहौर में आयोजित किया गया। इस अधिवेशन में ‘पूर्ण स्वतंत्रता’ का प्रस्ताव पारित करते हुए‚
26 जनवरी‚ 1930 को ‘स्वतंत्रता दिवस’ के रूप में मनाने की बात कही गई।
26 जनवरी‚ 1930 को पूरे देश में तिरंगा ध्वज फहराया गया। इसके बाद 1950 तक प्रत्येक वर्ष 26 जनवरी को जुलूस‚ प्रदर्शन‚ धरना तथा झंडोत्तोलन किया जाने लगा। 26 जनवरी‚ 1950 को भारत का संविधान लागू हुआ और यह दिन ‘गणतंत्र दिवस’ के रूप में भारत के स्वा णम भविष्य का अंग बन गया। 15 अगस्त‚ 1947 को भारत आजाद हुआ तथा 15 अगस्त ‘स्वतंत्रता दिवस’ बन गया।
‘डायरी का एक पन्ना’ पाठ में लेखक ने 26 जनवरी‚ 1931 के पूरे दिन का वर्णन किया है। कलकत्ता (कोलकाता) के लोगों के दूसरे स्वतंत्रता दिवस को मनाने में दिखाए उत्साह तथा प्रशासन की निरंकुशता के कारण हुए जुल्म की चर्चा भी इसमें हुई है। यह पाठ हमारे क्रांतिकारियों की कुर्बानियों का स्मरण कराता है। साथ ही इससे हमें संगठित समाज निा मत करने की प्रेरणा भी मिलती है।
26 जनवरी‚ 1931 को कलकता (कोलकाता) के सभी भागों को राष्ट्रीय झण्डों से सजाया गया था। ऐसा लगता था‚ जैसे स्वतंत्रता मिल गई हो। लोगों में उत्साह और नवीनता का संचार हुआ था। मोनुमेंट के नीचे सभा का आयोजन किया जाना था। शाम छह बजे होने वाली इस सभा को होने से रोकने के लिए पुलिस बल को तैनात किया गया था। विभिन्न पार्कों तथा मैदानों में राष्ट्रीय झंडा फहराने का कार्यक्रम था। कई पार्कों में आसानी से झंडा फहरा लिया गया किंतु कई जगहों पर नेताओं को पुलिस से जूझना पड़ा। शाम चार बजे मोनुमेंट के पास सुभाष चंद्र बोस जुलूस के साथ आये। यहाँ स्वतंत्रता की प्रतिज्ञा पढ़ने का कार्यक्रम था। सुभाष बाबू के जुलूस को ‘चौरंगी’ के पास रोक दिया गया। भीड़ पर लाठी-चार्ज भी किया गया। सुभाष बाबू को भी लाठियाँ लगीं। स्त्रियों को भी नहीं छोड़ा गया तथा उन्हें भी लाठियाँ खानी पड़ीं। सुभाष चंद्र बोस को पकड़कर लाल बाजार पुलिस स्टेशन के लॉकअप में बंद कर दिया गया। पुलिस की निरंकुशता के कारण सैकड़ों लोग घायल हुए।
बंगाल या कलकत्ता (कोलकाता) के बारे में यह धारणा बन गई थी कि लोग सक्रिय रूप से स्वतंत्रता संघर्ष में भाग नहीं लेते‚ लेकिन 26 जनवरी‚ 1931 की इस घटना से लेखक के अनुसार वह कलंक‚ बहुत अंश तक धुल गया था। लोग सोचने लगे कि यहाँ भी बहुत काम हो सकता है।
‘डायरी का एक पन्ना’ इतिहास की उस घटना का वर्णन है‚ जिसमें आम जनता की सहभागिता से स्वतंत्रता के उत्साह को उत्प्रेरित करने का प्रयास हुआ।
यह पाठ हमारे हृदय में देश के लिए अपने को कुर्बान करने की चेतना रखने वाले अपने पूर्वजों के प्रति सम्मान एवं श्रद्धा की भावना भर देता है।