मगध: एक साम्राज्य
मगध प्राचीन भारत के 16 महाजनपदों में सर्वाधिक शक्तिशाली था। मगध साम्राज्य की स्थापना 2300 वर्ष पूर्व चंद्रगुप्त मौर्य ने की थी। मौर्य वंश के 3 शक्तिशाली राजा हुए: चंद्रगुप्त, बिंदुसार और अशोक। मगध साम्राज्य में पाटलिपुत्र, उज्जैन और तक्षशिला जैसे प्रमुख नगर थे। भगवान बुद्ध के पूर्व वृहद्रथ तथा जरासंध यहाँ के प्रतिष्ठित राजा थे। चंद्रगुप्त मौर्य ने कौटिल्य की मदद से नंद वंश के सम्राट घनानंद को पराजित किया। मौर्य साम्राज्य के विस्तार एवं उसे शक्तिशाली बनाने का श्रेय सम्राट अशोक को जाता है। इस साम्राज्य की राजधानी पाटलिपुत्र थी।
मगध का प्रशासन
मौर्य समाज का मुख्य प्रशासनिक केंद्र पाटलिपुत्र था। इसके अतिरिक्त साम्राज्य को प्रशासन के लिए चार प्रांतों में बाँटा गया था। उत्तरी भाग की राजधानी तौसाली थी, दक्षिणी भाग की सुवर्णगिरि। इसी प्रकार उत्तरी भाग की राजधानी तक्षशिला थी तथा पश्चिमी भाग की उज्जैन। पाटलिपुत्र और उसके आस-पास के इलाकों पर सम्राट का सीधा नियंत्रण था। राज्य के प्रतिपाल कुमार होते थे जो स्थानीय प्रांतों के शासक थे। कुमार की मदद के लिए हर प्रांत में मंत्रिपरिषद् और महामात्य होते थे। प्रांत जिलों में बँटा था और जिले गाँवों में बँटे थे।
‘प्रादेशिक’ जिला प्रशासन का प्रधान होता था। रज्जुक जमीन को मापने का काम करता था। सबसे छोटी इकाई गाँव थी, जिसका प्रधान ‘ग्रामिक’ कहलाता था।
अशोक (ई.पू 304 से ई.पू 232): एक अनोखा सम्राट
अशोक मौर्य राजवंश के महान सम्राट थे। वे बिंदुसार के पुत्र और चंद्रगुप्त के पोते थे। अशोक ने अखंड भारत पर राज किया। इस समय मौर्य साम्राज्य उत्तर में हिंदुकुश की श्रेणियों से लेकर दक्षिण के गोदावरी नदी तक तथा पूर्व में बांग्लादेश से पश्चिम अफगानिस्तान-ईरान तक फैला था। सम्राट अशोक को अपने विस्तृत साम्राज्य से बेहतर कुशल प्रशासन तथा बौद्ध धर्म के प्रचार के लिए भी जाना जाता है।
अशोक का कलिंग युद्ध
अशोक ने अपने राज्याभिषेक के 8वें वर्ष (261 ई.पू.) में कलिंग पर आक्रमण किया था। कलिंग तटवर्ती ओडिशा का प्राचीन नाम है। तेहरवें शिलालेख के अनुसार कलिंग युद्ध में 1 लाख 50 हजार व्यक्ति बन्दी बनाकर निर्वासित कर दिये गये। 1 लाख लोगों की हत्या कर दी गयी। युद्ध जनित हिंसा और खूब-खराबा देखकर अशोक को युद्ध से वितृष्णा होने लगी। उन्होंने निर्णय लिया कि वे कभी युद्ध नहीं करेंगे।
अशोक के शिलालेख
अशोक द्वारा निर्मित कुल 33 अभिलेख प्राप्त हुए हैं जिन्हें अशोक ने स्तंभों, चट्टानों और गुफाओं की दीवारों में खुदवाए थे। इन शिलालेखों के माध्यम से आम जन तक संदेश पहुंचाया जाता था। इन शिलालेखों के अनुसार अशोक के बौद्ध धर्म फैलाने के प्रयास भूमध्य सागर क्षेत्र तक सक्रिय थे। पूर्वी क्षेत्र में इनके आदेश प्राचीन मागधी भाषा में ब्राह्मी लिपि के प्रयोग से लिखे गये थे। पश्चिमी क्षेत्र के शिलालेखों में भाषा संस्कृत से मिलती जुलती है और खरोष्ठी लिपि का प्रयोग हुआ है।
अशोक का धम्म क्या था?
कलिंग युद्ध में हुई क्षति तथा नरसंहार से उसका मन युद्ध से ऊब गया और वह अपने कृत्य को लेकर व्यथित हो उठा। युद्ध से वितृष्णा के बाद अशोक ने धम्म को अपनाया। धम्म संस्कृत के ‘धर्म’ शब्द का प्राकृत रूप है। अशोक का धम्म देवता की पूजा अथवा कर्मकांड की बजाय व्यावहारिक ज्ञान और शिक्षा पर बल देता था। उन्होंने ‘धम्म महामात्त’ नाम के अधिकारियों की नियुक्ति की जो जगह-जगह जाकर धम्म की शिक्षा देते थे। अशोक ने बुद्ध के उपदेशों को आत्मसात् किया और अंतत: बौद्ध धर्म स्वीकार कर लिया।
मौर्य साम्राज्य का पतन
मौर्य साम्राज्य के अंतिम शासक वृहद्रथ की हत्या उसके सेनापति पुष्यपुत्र शुंग द्वारा कर दी गयी। इससे मौर्य साम्राज्य का पतन हुआ और शुंग वंश की स्थापना हुई। मौर्य साम्राज्य के पतन के निम्नलिखित कारण हो सकते हैं:
• अयोग्य उत्तराधिकारी
• प्रशासन का अत्यधिक केंद्रीयकरण
• राष्ट्रीय चेतना का अभाव
• करों की अधिकता
• ब्राह्मण विरोधी नीति की अधिकता
• आर्थिक संकट इत्यादि