अध्याय 7 सामाजिक अध्ययन का अधिगम परियोजना कार्य

परियोजना कार्य की अवधारणा
• किसी विशेष लक्ष्य की प्राप्ति हेतु जो विशेष कार्य योजना बनाई और क्रियान्वित की जाती है, उसे परियोजना
(Project) कहते हैं।
• शिक्षा संबंधी सिद्धांत तथा अभ्यास के लिए योजना विधि वर्तमान युग की एक नवीन देन है। इसके अन्तर्गत किसी कार्य को छोटे-छोटे कार्यों में विभक्त करके उसे निश्पादित करने का समयबद्ध क्रम प्रस्तुत किया जाता है।
• परियोजना कार्य की अवधारणा की उत्पत्ति जॉन डीवी के शिक्षा संबंधी मत तथा समस्या विधि के स्वाभाविक विकास से हुआ था।
• इस विधि के प्रवर्तन का श्रेय प्रोफेसर विलियम एच. फिलपैत्रिक को जाता है। उनके अनुसार, ”परियोजना वह अभिप्राययुक्त क्रिया है जो संपूर्ण संलग्नता के साथ सामाजिक पर्यावरण में क्रियान्वित होती है।
• यह सामाजिक वातावरण में लक्ष्य प्राप्त करने के उद्देश्य से की जाने वाली क्रिया है।
• परियोजना विधि विद्यार्थियों द्वारा वास्तविक कार्य या क्रिया पर अधिक बल देती है।
• विद्यार्थी पर अध्यापक द्वारा बलपूर्वक कोई कार्य नहीं थोपा जाता है। अध्यापक, कार्य योजना को पूर्ण करने में केवल मार्गदर्शक तथा सहायक होता है।
• परियोजना किसी समस्या के निदान या किसी विषय के तथ्यों को प्रकाशित करने के लिए तैयार की गयी एक पूर्ण योजना होती है।
• यह ‘कर के सीखने’ (Learning by doing) की अपेक्षा ‘जी कर सीखने’ पर बल देती है।
• ‘स्टीर्वेन्सून’ के अनुसार, ”परियोजना वह समस्यायुक्त कार्य है जो स्वाभाविक प्राकृतिक वातावरण में पूरा किया जाता है।“
• विनिंग के अनुसार, ”वास्तविक जीवन जैसी परिस्थितियों में पूरा किया जाने वाला बालकों द्वारा आयोजित उद्देश्य युक्त कार्य परियोजना कहलाता है।“

परियोजना कार्य के प्रकार
• परियोजना कार्य मुख्य रूप से तीन प्रकार के होते हैं। प्रयोगशाला कार्य, क्षेत्र कार्य एवं पुस्तक आधारित कार्य।
• प्रयोगशाला कार्य में नियंत्रित स्थितियों में विभिन्न क्रियाकलापों एवं प्रयोगों द्वारा विद्यार्थियों में कौशल विकसित किया जाता है।
• परियोजना क्षेत्र कार्य जीवन की वास्तविक स्थितियों से जुड़ा होता है। इसके अन्तर्गत सामाजिक परियोजनाएँ भी आती हैं।
• पुस्तक आधारित परियोजना कार्य में विद्यार्थियों को विभिन्न पुस्तकों से प्राप्त अध्ययन के आधार पर रिपोर्ट तैयार करना होता है।

परियोजना कार्य के चरण
परियोजना विधि के क्रियात्मक स्वरूप में निम्न चरण होते हैं:
परिस्थिति उत्पन्न करना: अध्यापक का कार्य ऐसी परिस्थिति प्रदान करना होता है जो विद्यार्थियों की रुचि तथा क्षमता के अनुकूल हो। इससे परियोजना को पूरा करने के लिए उनमें सहज लगन जागृत होती है।
परियोजना का चयन: समस्या-समाधान हेतु विद्यार्थी विभिन्न प्रकार की योजना प्रस्तुत करते ह।ैं इनम ें से केवल उन्ही ं योजनाओं का चुनाव किया जाना चाहिए, जिससे विद्यार्थियों की किसी वास्तविक समस्या का समाधान हो सके। योजना का चयन विद्यार्थियों की क्षमता तथा इसमें होने वाले खर्च के अनुरूप किया जाना चाहिए।
नियोजन: नियोजन द्वारा योजना-पूर्ति हेतु कार्यक्रम तैयार किया जाता है। इस कार्यक्रम को तैयार करने के लिए विद्यार्थियों द्वारा अध्यापक के निर्देशन में चर्चा की जाती है। प्रत्येक विद्यार्थी को चर्चा में भाग लेने तथा सुझाव देने के लिए प्रोत्साहित किया जाता है। साथ ही तुलनात्मक अध्ययन द्वारा उपयुक्त कार्यक्रम का चयन किया जाता है।
परियोजना का कार्यान्वयन: परियोजना के नियोजन के पश्चात् शिक्षक को चाहिए कि वह योजना पूर्ति हेतु इसे क्रियान्वित करने के लिए विद्यार्थियों को प्रोत्साहित करें। योजना को पूरा करने के लिए यह आवश्यक है कि विद्यार्थियों की रुचियों तथा क्षमताओं के अनुसार कार्य का विभाजन किया जाना चाहिए। इसमें शिक्षक आवश्यकतानुसार विद्यार्थियों की क्रियाओं का निरीक्षण एवं मार्गदर्शन करते हैं।
परियोजना की समीक्षा एवं मूल्यांकन: समीक्षा एवं मूल्यांकन एक प्रकार का आत्मालोचन है। इसमें विचार-विमर्श द्वारा यह ज्ञात किया जाता है कि लक्ष्यों की प्राप्ति हुई अथवा नहीं। इससे किए गए कार्य का पुनरीक्षण किया जाता है।
परियोजना का रिकॉर्ड रखना: मूल्यांकन के पश्चात् विद्यार्थी योजना पुस्तिका में उनका विवरण लिखते हैं। शिक्षक इन विवरणों के आधार पर यथोचित निर्देश देते हैं। इस नोट में भावी निर्देशन तथा प्रयोग के लिए महत्त्वपूर्ण बातें लिखी जाती है।

परियोजना कार्य की विशेषताएँ
• परियोजना में क्रियात्मक विधि पर बल दिया जाता है।इसमें विभिन्न क्रियाओं का समावेश होना चाहिए। विभिन्न विषयों के समन्वय से इसे निर्धारित समय पर पूरा करने में मदद मिलती है।
• परियोजना में प्रयुक्त सामग्री ऐसी होनी चाहिए, जो विद्यालय एवं उसके आसपास आसानी से उपलब्ध हो सके।
• परियोजना कार्य वैयक्तिक भेदों के अनुकूल सीखना का अनुभव प्रदान करता है।
• परियोजना द्वारा कम-से-कम खर्च में अधिकाधिक लाभ लेने का प्रयास किया जाता है।
• परियोजना द्वारा विद्यार्थियों को सामाजिक संपर्क का अनुभव प्राप्त होता है और रचनात्मक प्रवृत्ति का विकास होता है।
• परियोजना को व्यक्तिगत तथा सामाजिक रूप से उपयोगी होना चाहिए। साथ ही इसका कुछ-न-कुछ प्रयोगात्मक लक्ष्य भी होना चाहिए।

परियोजना कार्य पद्धति की सीमाएँ
खर्चीली विधि: परियोजना विधि द्वारा कार्य को पूर्ण करने के लिए पर्याप्त सामग्री और समय की आवश्यकता होती है। कई बार सामग्रियां स्थानीय रूप से उपलब्ध नहीं हो पाती हैं। सामान्यत: विद्यालयों के पास इतना धन नहीं होता कि वे इतना खर्च वहन कर सकें।
विषय सामग्री का अंशों में प्राप्त होना: परियोजना विधि में प्राय: विषय सामग्री अंशों में प्राप्त होती है। सामाजिक अध्ययन में विषय सामग्री को क्रमबद्धरूप से प्राप्त होना आवश्यक है।
अध्यापक पर ज्यादा बोझ: परियोजना विधि के अन्तर्गत अध्यापक का उत्तरदायित्व बहुत बढ़ जाता है और उसे अधिक सक्रिय रहना पड़ता है। चूंकि हर अध्यापक सभी विषयों में निपुण नहीं होता, अत: वह एक साथ सभी विषयों को पढ़ाने में में असमर्थ होता है। कई बार योजना विधि के अनुसार लिखी हुई उचित पुस्तकें भी उपलब्ध नहीं होती हैं।
स्कूली कार्य का अव्यवस्थित हो जाना: परियोजना विधि द्वारा शिक्षण कार्य के समय चक्र का अनुसरण कर पाना कठिन होता है। स्कूल के कार्यक्रम की निश्चितता के अभाव में विभिन्न विषयों का निर्धारित पाठ्यक्रम समय पर पूरा नहीं किया जा सकता।
वैयक्तिक भिन्नता के कारण असंतुलित शिक्षण: परियोजना कार्य में कुशल विद्यार्थी उत्तरदायित्वों को पूरा करने में आगे रहते हैं और उन्हीं के अनुसार परियोजना की समय सीमा निर्धारित की जाती है इससे औसत विद्यार्थी इस विधि में पिछड़ जाते हैं। परिणामस्वरूप सभी विद्यार्थियों का एक जैसा शिक्षण नहीं हो पाता है।

सामाजिक अध्ययन में परियोजना कार्य की जाँच
विषय संबधंी विभिन्न वैकल्पिक/लघु उत्तरीय प्रश्नों के माध्यम से सामाजिक अध्ययन में परियोजना कार्य की जांच की जाती है। यथा –
• क्या विद्यार्थी को परियोजना संबंधी विषय-वस्तु का ज्ञान है?
• क्या विद्यार्थी परियोजना की संकल्पना को समझ पा रहा है?
• क्या उसने परियोजना संबंधी कोई अनुसंधान कार्य किया है?
• क्या वह परियोजना कार्य करते समय विशेष पद्धति का प्रयोग करता है?
• क्या विद्यार्थी ने सहायक पुस्तक या इंटरनेट की मदद ली है?
• क्या उसने किन्हीं का साक्षात्कार लिया है?
• क्या उसने परियोजना कार्य में दृश्य-श्रव्य सामग्री का प्रयोग किया है?
• क्या वह परियोजना पूर्ति में मौलिक दृष्टिकोण अपना रहा है?

परियोजना विधि के लाभ
• परियोजना विधि सीखने के मनोवैज्ञानिक नियमों के अनुरूप है, यथा – तत्परता का नियम, अभ्यास का नियम और प्रभाव का नियम।
• परियोजना विधि में कम-से-कम समय में न्यूनतम धन तथा शक्ति के व्यय से अच्छे से अच्छा परिणाम प्राप्त होता है।
• परियोजना विधि में विद्यार्थी सामान्य लक्ष्य की प्राप्ति के लिए परस्पर सहयोगपूर्ण कार्य करता है। इससे उन्हें प्रजातंत्रात्मक जीवन-यापन का प्रशिक्षण मिलता है।
• परियोजना विधि से श्रम के महत्त्व को बढ़ावा मिलता है। इसमें विभिन्न विषयों का सह संबंध ज्ञान प्राप्त होता है। परियोजना कार्य में जीवन की वास्तविक परिस्थितियों के अनुसार शिक्षा प्रदान की जाती है। इस विधि द्वारा सीखी हुई बातें स्थायी होती हैं, क्योंकि विद्यार्थी स्वयं करके सीखते हैं।

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