कुछ लोगों के शासक बनने के प्रक्रिया
विश्व के विभिन्न भागों में शासकों का चुनाव मतदान के द्वारा किया जाता है, किंतु बहुत पहले शासक के चुनाव की प्रक्रिया का अभाव था।
3000 साल पहले राजा बनने की प्रक्रिया में परिवर्तन आया। कुछ लोग बड़े-बड़े यज्ञों का आयोजन करके राजा के रूप में प्रतिष्ठित हुए। अश्वमेध यज्ञ एक ऐसा ही आयोजन था।
अश्वमेध यज्ञ
इसमें एक घोड़े को राजा के लोगों की देख-रेख में स्वतंत्र विचरण के लिए छोड़ दिया जाता था। यदि इस घोड़े को किसी दूसरे राजा ने रोका तो उसे अश्वमेध यज्ञ करने वाले राजा से लड़ाई करनी पड़ती थी। अगर उन्होंने घोड़े को जाने दिया तो इसका मतलब होता था कि अश्वमेध यज्ञ करने वाला राजा उनसे ज्यादा शक्तिशाली था। इस यज्ञ की कुछ मुख्य बातें निम्न हैं:
• यह यज्ञ विशिष्ट पुरोहितों द्वारा संपन्न किया जाता था।
• इन सभी आयोजनों में राजा का मुख्य स्थान होता था।
• जिन्हे पुरोहित शूद्र मानते थे उन्हें किसी अनुष्ठान में शामिल नहीं किया जाता था। वेद: इस समय उत्तर भारत में विशेशकर गंगा-जमुना क्षेत्र में कई ग्रंथ रचे गये। ऋग्वेद के बाद रचे होने के कारण ये उत्तर-वैदिक ग्रंथ कहे जाते हैं। इसके अंतर्गत सामवेद, यजुर्वेद, अथर्ववेद तथा अन्य ग्रंथ शामिल हैं। पुरोहितों द्वारा रचित इन ग्रंथों में विभिन्न प्रकार के अनुष्ठान और उनके संपादन की विधियाँ बतायी गयी हैं। इनमें सामाजिक नियमों के बार में भी बताया गया है।
वर्ण
• पुरोहितों ने लोगों को चार वर्गों में विभाजित किया, जिन्हें वर्ण कहते हैं। उनके अनुसार प्रत्येक वर्ण के अलग-अलग कार्य निर्धारित थे।
• पहला वर्ण ब्राह्मणों का था। उनका काम वेदों का अध्ययन- अध्यापन और यज्ञ करना था। जिनके लिए उन्हें उपहार मिलता था।
• दूसरा स्थान शासकों का था जिन्हें क्षत्रिय कहा जाता था। उनका काम युद्ध करना और लोगों की रक्षा करना था।
• तीसरे स्थान पर विश् या वैश्य थे। इनमें कृषक पशुपालक और व्यापारी आते थे। क्षत्रिय और वैश्य दोनों को ही यज्ञ करने का अधिकार प्राप्त था।
• वर्णों में अंतिम स्थान शूद्रों का था। इनका काम अन्य तीनों वर्णों की सेवा करना था। इन्हें कोई अनुष्ठान करने का अधिकार नहीं था।
• प्राय: स्त्रियों को भी शूद्रों के सामान माना गया।
• महिलाओं और शूद्रों को वेदों के अध्ययन का अधिकार नहीं था।
जनपद
• जनपद का शाब्दिक अर्थ है – जन्म के बसने की जगह। महायज्ञों के आयोजक शासक अब जन के शासक न होकर जनपदों के राजा माने जाने लगे।
• पुरातत्वविदों ने जिन जनपदों की बस्तियों की खुदाई की है। उनमें प्रमुख हैं – दिल्ली में पुराना किला, उत्तर प्रदेश में मेरठ के पास हस्तिनापुर और एटा के पास अंतरजीखेड़ा।
• इन जनपदों के लोग झोपड़ियों में रहते थे और मवेशियों तथा अन्य जानवरों को पालते थे। वे मुख्यत: चावल, गेहूँ, धान, जौ, दाले, गन्ना, तिल तथा सरसों की खेती करते थे।
• यहाँ लोग मिट्टी के बर्तन बनाते थे। पुरातत्विदों की खुदाई से कुछ विशेष प्रकार के बर्तन मिले हैं जिन्हें चित्रित घूसर पात्र कहा गया। जैसा कि नाम से स्पष्ट इन बर्तनों पर चित्रकारी की गयी है।
महाजनपद
प्राचीन भारत में राज्य या प्रशासनिक ईकाइयों को ‘महाजनपद’ कहते थे। करीब 2500 वर्श पहले कुछ जनपद अधिक महत्वपूर्ण हो गये। इन्हें महाजनपद कहा जाने लगा। इनमें से अधिकतर महाजनपदों की एक राजधानी होती थी। इन राजधानियों की किलेबंदी की गयी थी। ईसा पूर्व छठी सदी में वैयाकरण पाणिनि ने 22 महाजनपदों का उल्लेख किया है। इनमें से तीन मगध, कोसल तथा वत्स को महत्वपूर्ण बताया गया है। आरंभिक बौद्ध तथा जैन ग्रंथों में इनके बारे में अधिक जानकारी मिलती है। यद्यपि कुल 16 महाजनपदों का नाम मिलता है। बौद्ध ग्रंथ अंगुत्तर निकाय महावस्तु में 16 महाजनपदों का उल्लेख है।
छठी शताब्दी ईसा पूर्व के सोलह महाजनपद
ईसा पूर्व छठी सदी में जिन चार महत्वपूर्ण राज्यों नें प्रसिद्धि प्राप्त की उनके नाम हैं – मगध के हर्यंक, कोशल के इक्ष्वाकु, वत्स के पौरव और अवंती के प्रद्योत। संयोग से महाभारत में वर्णित प्रसिद्ध राज्य कुरु-पांचाल, काशी और मत्स्य इस काल में भी थे।
महाजनपद कर व्यवस्था
मनुष्य जाति के इतिहास में बहुत बाद में चलकर शासन ने राजस्व वृद्धि के लिए करों का आश्रय लिया था। महाजनपदों के राजा विशाल किले बनाने के साथ-साथ बड़ी सेना भी रखते थे। अत: उन्हें प्रचुर संसाधनो की आवश्यकता होती थी। इसलिए महाजनपदों के राजा लोगों द्वारा समय-समय पर लाये गये उपहारों पर निर्भर रहने की बजाय नियमित कर वसूलने लगे। चूँकि अधिकांश लोग कृशक ही थे, अत: फसलों पर लगाये गये कर सबसे महत्वपूर्ण थे। प्राय: उपज का 1/6 वां हिस्सा कर के रूप में वसूला जाता था। कारीगरों पर लगाये गये कर श्रम के रूप में चुकाये जाते थे। पशु पालकों को जानवरों या उसके उत्पादन के रूप में कर देना पड़ता था। व्यापारियों के सामान खरीद-बिक्री पर कर देना पड़ता था।
कृषि में परिवर्तन
इस युग में कृषि के क्षेत्र में मुख्यत: दो बड़े परिवर्तन आये। पहला हल के फाल लोहे के बनने लगे। अब कठोर जमीन को भी आसानी से जोता जा सकता था। दूसरा, लोगों ने धान के पौधों का रोपण शुरू किया। इसमें खेतों में बीज छिड़ककर धान उपजाने की बजाय धान की पौध तैयार कर खेती की जाने लगी।
मगध
मगध प्राचीन भारत के सोलह महाजनपदों में से एक था। आधुनिक पटना तथा गया जिला इसमें शामिल था। भगवान बुद्ध के पूर्व बृहद्रथ तथा जरासंध यहाँ के प्रतिश्ठित राजा थे। मगध में दो बहुत ही शक्तिशाली शासक बिंबिसार और अजातशत्रु थे। महापद्मनंद एक महत्वपूर्ण शासक थे। उन्होंने अपने नियंत्रण का क्षेत्र इस उपमहाद्वीप के उत्तर-पश्चिम भाग तक फैला लिया था। बिहार में राजगृह (आधुनिक बिहार का राजगीर) कई सालों तक मगध की राजधानी बनी रही। बाद में पाटलिपुत्र (पटना) को राजधानी बनाया गया।
वज्जि
वज्जि या वृजि की उत्पत्ति कई छोटे राज्यों को मिलाकर हुई थी। इसकी राजधानी वैशाली थी। वैशाली के गणराज्य बनने के बाद इसका राज्य संचालन अश्टकुल द्वारा होने लगा। उस समय वज्जि एवं लिच्छवी ’कुल’ सर्वाधिक महत्वपूर्ण हो गये। गण या संघ में कई राजा होते थे। यहाँ शासन लोगों के समूह द्वारा मिलकर किया जाता था। सभाओ में बैठकर आम सहमति द्वारा यह तय किया जाता था कि क्या करना है और किस तरह करना है। स्त्रियाँ, दास तथा कम्मकार इन सभाओं में हिस्सा नहीं ले सकते थे।