अध्याय 5. हमारा परिवेश

हमारे परिवेश के अन्तर्गत वे समस्त वातावरण पेड़−पौधे जीव जन्तु आदि शामिल किये जाते हैं‚ जो हमारे आस−पास उपलब्ध है।
हमारे दैनिक जीवन में उपयोग की जाने वाली वस्तुएँ‚ साधन आदि भी हमारे परिवेश का ही हिस्सा है।

परिवेशीय वस्तुएँ

सजीव वस्तुएँ−ऐसी वस्तुएँ जिनके अन्दर जीवन होता है‚ सजीव वस्तुएँ कहलाती हैं। जैसे−पेड़−पौधे‚ मनुष्य‚ जीव−जन्तु आदि।
निर्जीव वस्तुएँ− ऐसी वस्तुएँ जिनमें जीवन नहीं है‚ निर्जीव वस्तुएँ कहलाती हैं। जैसे− कुर्सी‚ मेज‚ किताब आदि।
पर्यावरण (Envoirnment)– हमारे परिवेश के चारों ओर जो कुछ उपलब्ध है‚ सब पर्यावरण के अंतर्गत आते हैं।

जीवमण्डल

जीव जन्तुओं व पेड़−पौधों के जीवन के अनुकूल परिवेश को जैवमण्डल या जीव मण्डल कहते हैं। जीवन की उपलब्धता के कारण इस मण्डल को जीवनदायी मण्डल भी कहा जाता है। इस मण्डल में जीवन होने का कारण ऑक्सीजन‚ तापमान नमी तथा वायुदाब की उचित मात्रा में उलब्धता है।
• हमारे परिवेश में विभिन्न प्रकार के पेड़−पौधे पाये जाते हैं। पेड़− पौधे हमें कई प्रकार से लाभ पहुँचाते हैं। इनसे हमें छाया मिलती है। इनकी लकड़ियाँ हमारे दैनिक जीवन में बहुत सारे कामों में प्रयोग होती है।
• पेड़−पौधे हमारे वातावरण को स्वच्छ बनाते हैं। ये वातावरण से कार्बन डाई ऑक्साइड लेकर हमें ऑक्सीजन देते हैं। जो हमारे जीवन के लिए आवश्यक है। इसका उपयोग हम साँस लेने में करते हैं।
• हमारे परिवेश में अनेक प्रकार के जीव−जन्तु पाए जाते हैं। ये जीव−जन्तु अलग−अलग जगह पर रहते हैं। कोई भी जीव उसी स्थान पर रहना पसंद करता है जहाँ उसे पर्याप्त सुरक्षा‚ भोजन तथा अनुकूल दशाएँ मिलती हैं। वास स्थान के आधार पर जीवों को चार भागों में बाँटा गया है।
थलचर (Terrestrial)– कुछ जन्तु स्थल पर पाए जाते हैं।
जैसे− कुत्ता‚ बिल्ली आदि। इन्हें थलचर कहते हैं।
जलचर (Aquatic)– कुछ जन्तु जल में पाए जाते हैं जैसे− मगरमच्छ‚ मछली आदि। इन्हें जलचर कहते हैं।
नभचर (Aerial)– कुछ जन्तु आकाश में उड़ते हैं‚ उन्हें नभचर कहते हैं जैसे− कौआ‚ गौरैया चील आदि।
उभयचर (Amphibian)– कुछ जन्तु जल एवं थल दोनों स्थानों पर वास करते हैं जैसे− कछुआ मेंढक आदि। ये उभयचर कहलाते हैं।
तरह−तरह के जन्तु विभिन्न वातावरण (परिवेश) में अपने को अनुकूलित रखते हैं−
जल में रहने वाले जन्तु− जल में रहने वाले जन्तु जलीय जन्तु कहलाते हैं‚ जैसे− मछली‚ ऑक्टोपस आदि।
मैदानी भाग में रहने वाले जन्तु− जैसे हिरन‚ शेर‚ कुत्ता आदि।
मरुस्थल में रहने वाले जन्तु− ऊँट‚ घोड़ा आदि। ऊँट को रेगिस्तान का जहाज कहा जाता है।
• हमारे परिवेश में विभिन्न प्रकार के जीव−जन्तु रहते हैं। ये जीव−जन्तु रंग‚ रूप‚ आकार स्वभाव में परस्पर भिन्न होते हैं। कुछ जानवर शाकाहारी होते हैं। तो कुछ जानवर मांसाहारी। कुछ जानवर दोनों प्रकार के भोजन को आहार के रूप में लेते हैं जो सर्वाहारी कहलाते हैं।
• कुछ जीव−जन्तु हमारे दैनिक जीवन में काफी उपयोगी होते हैं।
जैसे− गाय‚ बकरी‚ भैंस आदि से हमें दूध मिलता है। इसी प्रकार मुर्गी‚ बत्तख आदि से हमें भोज्य पदार्थ के रूप में अण्डा मिलता है। मधुमक्खी से हमें शहद प्राप्त होता है जो हमारे स्वास्थ्य के लिए लाभदायक होता है।
• भोज्य पदार्थ के अतिरिक्त जानवरों से हमें ऊन‚ रेशम तथा लाख भी मिलता है। रेशम तथा लाख हमें कीड़े से प्राप्त होता है। ऊन तथा रेशम का प्रयोग हम ऊनी तथा रेशमी वध्Eों के निर्माण में करते हैं।
• पशमीना शाले बहुत गर्म होती हैं। ये मोटी नहीं होती हैं। यह पशमीना पहाड़ी बकरियों की एक खास नस्ल से बनती है।
• केंचुआ भूमि के अन्दर रहता है तथा भूमि को उपजाऊ बनाने में मदद करता है। इसलिए इसे ‘किसानों का मित्र’ कहा जाता है।
• ऊँट के कूबड़ में भोजन चर्बी (वसा) के रूप में संचित रहता है।
ऊँट रेगिस्तान में कई दिनों तक बिना पानी के भी जीवित रह सकता है। यह अपने अमाशय में स्थित विशेष थैलियों में पानी संचित कर लेता है। रेगिस्तान में ऊँट पहुँचाने तथा यातायात के साधन के रूप में बहुत उपयोगी होते हैं। ऊँट के पैर लम्बे तथा गद्दीदार होते हैं। इसके पैरों के ये लक्षण उसे मरुस्थल की रेतीली भूमि पर मीलों चलने अथवा दौड़ने में सहायता करते हैं। इसलिए इसे रेगिस्तान का जहाज कहा जाता है।

पारिस्थितिकी तंत्र (Ecosystem)

प्रकृति में विभिन्न प्रकार के जीव किस तरह रहते हैं‚ किन परिस्थितियों में रहते हैं तथा एक दूसरे को प्रभावित करते हैं? इसका अध्ययन पारिस्थितिकी (इकोलॉजी) के अंतर्गत किया जाता है। इकोलॉजी शब्द का अर्थ है ‘परिवेश का अध्ययन’। इस प्रकार कौन सा जीव किस प्रकार के घर में रहता है‚ भोजन कैसे प्राप्त करता है‚ जीवित रहने के लिए किस पर निर्भर होता है एवं किस प्रकार का क्रियाकलाप करता है‚ इन परिस्थितियों का अध्ययन ही पारिस्थितिकी है। इसमें सजीव और निर्जीव घटक मिलकर एक तंत्र बनाते हैं जिसे ‘पारिस्थितिकी तंत्र’ (इकोसिस्टम) कहते हैं।
• पारिस्थितिकी (Ecology) शब्द का प्रयोग सर्वप्रथम अर्नेस्ट हैकल द्वारा किया गया। इसमें जीवधारियों के पर्यावरण पर तथा पर्यावरण का जीवधारियों पर पड़ने वाले पारस्परिक प्रभावों का अध्ययन किया जाता है।
• पारिस्थितिकी तंत्र शब्द का प्रयोग सर्वप्रथम ए.जी. टांसले द्वारा वर्ष 1935 में किया गया था।
पारिस्थितिकी तंत्र जलीय हो अथवा स्थली‚ उसकी संरचना दो घटकों से मिलकर बनती है− सजीव व निर्जीव घटक।
1. सजीव घटक (Living Component)– सजीव घटक के अंतर्गत पेड़−पौधे‚ पशु−पक्षी‚ मनुष्य तथा सूक्ष्म जीव आते हैं। ये घटक एक−दूसरे के लिए पोषण (आहार) का कार्य करते हैं। पोषण के आधार पर सजीव घटकों को तीन श्रेणियों में बाँटा जाता है−
उत्पादक− जो सजीव घटक अपना भोजन स्वयं बनाते हैं वे ‘स्वपोषी’ कहलाते हैं। इन्हें उत्पादक कहते हैं जैसे− हरे पेड़−पौधे प्रकाश संश्लेषण की क्रिया में सूर्य के प्रकाश की उपस्थिति में कॉर्बन−डाई−ऑक्साइड और जल लेकर क्लोरोफिल की सहायता से अपना भोजन स्वयं बनाते हैं।
उपभोक्ता− जो जीव भोजन के लिए प्रत्यक्ष अथवा अप्रत्यक्ष रूप से उत्पादक अर्थात्‌ हरे पौधों पर निर्भर होते है‚ उपभोक्ता कहलाते हैं। भोजन के लिए दूसरों पर निर्भर रहने के कारण इन्हें ‘परपोषी’ भी कहते हैं। उपभोक्ता को तीन भागों बाँट सकते हैं−
प्रथम चरण उपभोक्ता− जो शाकाहारी जन्तु भोजन के लिए सीधे उत्पादक अर्थात्‌ हरे पेड़−पौधों पर निर्भर रहते हैं‚ प्रथम चरण के उपभोक्ता कहलाते हैं‚ जैसे− मनुष्य‚ गाय‚ बकरी‚ हिरण‚ खरगोश आदि पेड़−पौधों पर निर्भर रहते हैं।
द्वितीय चरण उपभोक्ता− जो जानवर जन्तुओं को भोजन के रूप में प्रयोग करते हैं। द्वितीय चरण उपभोक्ता कहलाते हैं जैसे शेर‚ चीता‚ भेड़िया आदि बकरी‚ हिरण‚ खरगोश का शिकार करते हैं।
तृतीय चरण उपभोक्ता− इसी प्रकार द्वितीय चरण के उपभोक्ता अर्थात्‌ शेर‚ चीता‚ आदि को मृत अवस्था में भोजन के रूप में ग्रहण करने वाले जीव ‘तृतीय चरण के उपभोक्ता’ कहलाते हैं‚ जैसे−गिद्ध‚ बाज‚ चील तथा कौआ मृत जानवरों का माँस खाते हैं।
अपघटक− प्रकृति में कुछ जीव ऐसे होते हैं जो मृत जीवधारियों एवं सड़ी−गली वस्तुओं को खाकर इनसे पोषण प्राप्त करते हैं जैसे− बैक्टीरिया‚ कवक आदि। मृत शरीर से पोषण लेने के कारण इन्हें ‘मृतपोषी’ भी कहा जाता है।
2. निर्जीव घटक (Non-Living Component)-पर्यावरण के निर्जीव घटक के अन्तर्गत स्थल मण्डल‚ जल मण्डल तथा वायु मण्डल आते हैं। ये सभी हमें प्रकृति से प्राप्त होते हैं। निर्जीव घटक के कारण ही सजीवों का विकास बेहतर ढंग से सम्भव है। किसी भी निर्जीव घटक के अधिक या कम होने से पारिस्थितिकी तंत्र असंतुलित हो जाता है। इस प्रकार समस्त सजीव और निर्जीव घटक मिलकर एक संतुलित पारिस्थितिकी तंत्र बनाते हैं। उसी पारिस्थितिकी तंत्र के कारण ही हम सभी सजीव एवं निर्जीव अपनी−अपनी आवश्यकताएँ पूरी करते रहते हैं।
आहार शृंखला (Food Chain)– किसी भी पारिस्थितिकी तंत्र में जीव−जन्तुओं के भोजन से सम्बन्धित कड़ी या शृंखला को ‘आहार शृंखला’ कहते हैं। आहार शृंखला के एक सिरे पर उत्पादक एवं दूसरे सिरे पर सर्वोच्च उपभोक्ता होता है।
एक तालाब में पारिस्थितिक तंत्र में खाद्य शृंखला के जीवधारियों का क्रम
• घास स्थलीय परिस्थितिक तंत्र में खाद्य शृंखला के जीवधारियों का क्रम घास →टिड्डे →मेढ़क →साँप →गिद्ध
आहार जाल (Food Web)– प्रत्येक पारिस्थितिकी तंत्र में अनेक ‘‘आहार शृंखलाएँ’’ होती हैं। कई स्थानों पर एक−दूसरे से जुड़ी रहती हैं। आहार शृंखलाओं के कई स्थानों पर जुड़े होने के कारण पोषण सम्बन्ध एक रेखा में न होकर जाल की तरह उलझ जाते हैं। इसे आहार जाल कहते हैं। दिए कए चित्र में पेड़−पौधे‚ हिरण‚ शेर‚ सियार‚ अपघटक तथा पुन: पेड़−पौधे एक खाद्य− शृंखला के रूप में है। इस प्रकार कई खाद्य−शृंखला मिलकर खाद्य−जाल बना रही हैं।
ऊर्जा का प्रवाह− किसी भी पारिस्थितिकी
तंत्र के लिए निरन्तर ऊर्जा की आवश्यकता होती है। प्रकृति में ऊर्जा का प्रमुख दोत ‘‘सूर्य’’ है। सूर्य से प्राप्त प्रकाश ऊर्जा को पौधे ग्रहण करके खाद्य पदार्थ का निर्माण करते हैं। इन्हीं खाद्य पदार्थ को जीव भोजन के रूप में लेते हैं जिससे उनको ऊर्जा प्राप्त होती है। पेड़−पौधों से लेकर जीव−जन्तुओं तक ऊर्जा का प्रवाह होता है। इस प्रकार क्रमश: सभी जीव−जन्तु एक दूसरे को ऊर्जा प्रदान करते हैं।
दस प्रतिशत नियम (Ten Percent Law)
1942 में लिंडेमान ने इस नियम को प्रतिपादित किया। इस नियम के अनुसार जब हम एक पोषण स्तर से दूसरे पोषण स्तर की ओर बढ़ते हैं तो ऊर्जा की मात्रा में धीरे−धीरे कमी होती जाती है। वास्तव में एक पोषण स्तर से दूसरे पोषण स्तर में मात्र 10 प्रतिशत ही ऊर्जा स्थानान्तरित होती है। इसी कारण ऊर्जा का प्रवाह एकदिशीय होता है।
• सौर ऊर्जा की बहुत कम मात्रा ही पृथ्वी के पारिस्थितिकी तंत्र को प्राप्त हो रही है। इसका मुख्य कारण यह है कि सूर्य से प्राप्त होने वाली ऊर्जा की अधिकांश मात्रा पृथ्वी पर पहुँचने से पूर्व ही विकिरण आदि के रूप में नष्ट हो जाती है। यह पृथ्वी पर हो रहे प्रदूषण का दुष्परिणाम है।
• प्रकाश ऊर्जा का मात्र एक से पाँच प्रतिशत भाग ही हरे पौधों द्वारा संचित रासायनिक ऊर्जा में परिवर्तित हो पाता है। यह वृक्षों की लगातार घटती संख्या का परिणाम है।
• उत्पादक तथा उपभोक्ता स्तर पर ऊर्जा की मात्रा निरंतर कम हो रही है। यह वृक्षों तथा कुछ जीव−जन्तुओं की कम होती संख्या के कारण है।
• मौसम से अनुकूलन बनाए रखने के लिए पक्षी हिमालय के बर्फीले क्षेत्रों‚ साइबेरिया‚ आस्ट्रेलिया से हजारों किमी. की यात्रा करके हमारे देश में आते हैं। इन पक्षियों को प्रवासी पक्षी कहते हैं।
पारिस्थितिकी संतुलन को बनाए रखने के लिए हमें निम्नवत्‌ कार्य करना चाहिए−
हम अपने घर‚ विद्यालय‚ सड़क के किनारे या आस−पास अधिक से अधिक वृक्ष लगाएँ। यदि कोई व्यक्ति अनावश्यक रूप से पेड़ों को काट रहा हो तो उसकी शिकायत वन अधिकारी से करें। उस व्यक्ति को समझाएँ कि वह वृक्ष न काटें।
• जल के दोतों जैसे तालाब‚ नदी‚ झील‚ समुद्र आदि को प्रदूषित न करें। अपने गाँव− मोहल्ले के लोग को भी जागरूक करें ताकि वे नदी‚ तालाब में प्रदूषण न फैलाएँ।
• वन्य प्राणियों का संरक्षण हम सबका दायित्व है। अगर कोई व्यक्ति वन्य−प्राणियों का शिकार कर रहा हो तो तुरन्त अपने माता−पिता‚ ग्राम प्रधान को सूचना दें। लोगों में इस बात का प्रचार−प्रसार करें कि वन्य प्राणियों का शिकार करना कानूनन अपराध है। किसी को ऐसा करने की छूट नहीं है।
• वायु‚ जल और भूमि बहुमूल्य प्राकृतिक संसाधन हैं। इन संसाधनों को प्रदूषित न होने दें। अगर कोई प्रदूषण फैला रहा है तो उसे सचेत करें। ग्राम−प्रधान‚ ब्लॉक प्रमुख‚ उपजिलाधिकारी से प्रदूषणकर्ता की शिकायत उचित माध्यमों से करें व करवाएँ।
• खेती में जैविक खाद के प्रयोग को बढ़ावा दें।
• तालाबों में पाए जाने वाले जीव−जन्तुओं जैसे मछली‚ मेढ़क‚ कछुआ आदि का अत्यधिक मात्रा में कोई भी शिकार न करें।
इसके लिए जागरूकता फैलाएँ।
पारिस्थितिक तन्त्र प्राथमिक उत्पादक जलीय पारिस्थितिक तन्त्र (Aquatic Ecosystem) विभिन्न प्रकार के शैवाल वन-पारिस्थितिक तन्त्र (Forest Ecosystem) बड़े-बड़े वृक्ष‚ झाड़ियाँ तथा शाकीय पौधे घास-स्थल (Grass Land) विभिन्न प्रकार की घासें एवं जंगली छोटे शाकीय पौधे फसल स्थल (Crop Land) उपस्थित फसल के पौधे
प्राकृतिक पारिस्थितिकी तंत्र− इस तंत्र को प्रकृति के द्वारा निर्मित किया गया है। उदाहरण− वन पारितंत्र‚ तालाब का पारितंत्र‚ झील का पारितंत्र।
मानव निर्मित पारिस्थितिकी तंत्र− इस तंत्र का निर्माण मानव (कृत्रिम विधि) द्वारा किया जाता है।
1. धान के खेत का पारितंत्र
2. एक्वेरियम का पारितंत्र (घरों में साज−सज्जा के लिए लगाये गये फूल पत्ती)
पारिस्थितिकी तंत्र के घटक−
1. जैविक घटक
•उत्पादक− हरे पौधे एवं शैवाल
•उपभोक्ता− जीव−जन्तु
•अपघटक− जीवाणु‚ कवक
2. अजैविक घटक
•पर्वत‚ पठार‚ मैदान‚ मिट्टी‚ झील‚ नदी‚ डेल्टा‚ द्वीप‚ घाटी‚ ग्लेशियर‚ समुद्र‚ महासागर
•कार्बनिक एवं अकार्बनिक− कार्बोहाइड्रेड‚ वसा‚ प्रोटीन‚ खनिज‚ विटामिन‚ तत्त्व

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