अध्याय 5 इतिहास प्रथम शहर

हड़प्पा
लगभग 150 वर्श पहले (1856 ई.) जब पंजाब में पहली बार रेलवे लाइनें बिछायी जा रही थीं तो इंजीनियरों को हड़प्पा पुरास्थल मिला जो आधुनिक पाकिस्तान में है। इसके बाद लगभग 80 वर्श पहले (1921 ई.) पुरातत्वविदों ने इस स्थल की महत्ता को समझा। फिर पता चला कि यह खंडहर भारतीय उपमहाद्वीप के सबसे पुराने शहरों में से एक है। हड़प्पा की खोज सबसे पहले हुई। अत: बाद में मिलने वाले इस तरह के सभी पुरास्थलों को हड़प्पा सभ्यता की इमारतें कहा गया। इनका निर्माण लगभग 4700 वर्श पहले प्रारंभ हुआ था। 1922 ई. में मोहनजोदड़ो की खुदाई हुई। 1924 ई. में भारतीय पुरास्थल के महानिदेशक जॉन मार्शल ने हड़प्पा सभ्यता की घोषणा की।

हड़प्पा सभ्यता के कुछ महत्वपूर्ण स्थल

हड़प्पा: यह पाकिस्तान के पंजाब प्रांत के मांटेगोमरी जिले में स्थित प्रमुख नगर था। इसकी खोज सन् 1921 में हुई थी। मोहनजोदड़ो: यह पाकिस्तान के सिंध प्रांत में सिंधु नदी के किनारे स्थित लरकाना जिले में अवस्थित प्रमुख नगर था। इसकी खोज सन् 1922 में हुई थी। लोथल: यह पुरास्थल वर्तमान गुजरात राज्य के अहमदाबाद जिले में अवस्थित है। यहाँ की सबसे महत्वपूर्ण उपलब्धि हड़प्पाकालीन बंदरगाह की खोज है। यहाँ के निवासी 1800 ई.पू. भी चावल उगाते थे।

कालीबंगा: यह स्थल वर्तमान राजस्थान में स्थित है। यहाँ पर हड़प्पा से भी पूर्व की संस्कृति का अवशेष मिले हैं।

बनवाली: यह हरियाणा के हिसार जिले में अवस्थित है। यहाँ हड़प्पा पूर्व और हड़प्पाकालीन दोनों सांस्कृतिक अवस्था के प्रमाण मिले हैं।
यहाँ पर अच्छे किस्म के जौ की खेती होती थी।

चन्हुदड़ो: यह पाकिस्तान के सिंध प्रांत में मोहनजोदड़ो के दक्षिण में अवस्थित है। यहाँ पर मुहर, गुड़िया और हड्डियों से निर्मित विभिन्न वस्तुओं का निर्माण किया जाता था।

हड़प्पा सभ्यता के नगरों की विशेषताएँ
चूँकि हड़प्पा एक नगरीय संस्कृति थी। अत: इसकी नगर योजना और भवन निर्माण प्रणाली विशिष्ट थी। यहाँ के नगरों का निर्माण सुनियोजित ढंग से किया गया था।

नगर योजना
• इस नगरों के ज्यादातर दो हिस्से थे।
• पश्चिमी भाग छोटा था लेकिन ऊँचाई पर बना था।
• पूर्वी भाग बड़ा था लेकिन यह निचले इलाके में था।
• ऊँचाई वाले छोटे भाग को पुरातत्वविदों ने नगर दुर्ग कहा है और निचले इलाके को निचला नगर कहा है।
• नगर दुर्ग और निचला नगर दोनों इलाकों की चारदीवारियाँ पकी ईंटों से बनायी गयी थी। ये ईंटें इतनी अच्छी पकी थी कि हजारों वर्श बाद भी उनकी दीवारें खड़ी रहीं।
• यह नगर आधुनिक व्यावसायिक शैली पर निर्मित थे।
• इनकी सड़कें लंबी-चौड़ी तथा एक दूसरे को समकोण पर कटाती थीं।
• सड़कों के किनारे कूड़ा डालने हेतु मिट्टी से निर्मित पात्र रखे रहते थे।
• गंदे पानी के निकास हेतु नगर में छोटी-बड़ी और गहरी नालियों को जाल बिछा हुआ था।

भवन निर्माण
कुछ नगरों में दुर्ग खास इमारतें बनायी गयी थीं। इस तरह मोहनजोदड़ो में खास तालाब बनाया गया था जिसे पुरातत्वविदों ने ‘महान स्नानगार’ कहा है। सड़कों के दोनों और भवनों का पंक्तिबद्ध निर्माण कच्ची तथा पक्की ईंटों के द्वारा किया जाता था। भवन छोटे-बड़े एक मंजिले या दों मंजिले होते थे। इनके द्वार राजमार्गों की ओर न खुलकर गली में पीछे की ओर खुलते थे। कालीबंगा और लोथल जैसे अन्य नगरों में अग्निकुंड मिले हैं जहां संभवत: यज्ञ किये जाते होंगे। हड़प्पा, मोहनजोदड़ो और लोथल जैसे कुछ नगरों में बड़े-बड़े भंडार गृह मिले हैं।

नगरीय जीवन
हड़प्पा के नगरों में बड़ी हलचल रहा करती होगी। यहाँ पर ऐसे लोग अवश्य रहते होंगे जो नगर की खास इमारतें बनाने की योजना में जुटे रहते थे। ये सभवत: यहाँ के शासक थे। इन नगरों में लिपिक भी होते थे जो मुहरों पर तो लिखते ही थे और शायद अन्य चीजों पर भी लिखते होंगे जो बच नहीं पायी हैं। इसके अलावा नगरों में शिल्पकार स्त्री-पुरुष भी रहते थे जो अपने घरों या किसी उद्योग स्थल पर तरह-तरह की चीजें बनाते होंगे। हड़प्पा के मोहर के ऊपर के चिह्न एक खास लिपि में लिखे जाते थे। विद्वानों ने इसे पढ़ने की कोशिश की है लेकिन अभी तक यह पता नहीं चल पाया है कि इसका अर्थ क्या है। सिंधु सभ्यता मूलत: मातृ प्रधान था। नगरों के मग्नावशेषों से स्पष्ट पता चलता है कि शहरों के लोग विलासितापूर्ण जीवन जीते थे। समाज कई वर्गों में बंटा था। इनमें व्यापारी वर्ग सबसे प्रभावशाली था। हड़प्पा की श्रमिक बस्तियों के अवशेष यहां दास प्रथा के संकेत देते हैं। सिंधु कालीन समाज कुल 4 वर्गों में विभाजित था- विद्वान, योद्धा, व्यवसायी तथा श्रमजीवी। इनका भोजन शाकाहारी और मांसाहारी दोनों प्रकार का था। भोजन में गेहूं, चावल, फल, सब्जियाँ, तरबूज, नींबू, दूध-दही से निर्मित वस्तु, मछली वे भेड़ का मांस प्रचलन में था। सिंधुवासी शतरंज, संगीत, नृत्य, जुआ आदि से मनोरंजन करते थे।
शव को दफनाया जाता था। साथ ही लाश को जलाकर उसकी राख को जमीन में गाड़ने की विधि भी प्रचलन में थी। खेती में लकड़ी के हलों तथा कटाई के लिए पत्थर की दराँतियों का प्रयोग किया जाता था।
कृषि के पश्चात् पशुपालन सिंधुवासियों का प्रमुख पेशा था। सिंधुवासियों के विदेशों से व्यापारिक संबंध थे। जैसे उनके मेसोपोटामिया, अफगानिस्तान एवं मध्य एशिया क्षेत्र के साथ व्यापारिक संबंध थे। नापतौल के लिए सीपी के टुकडों तथा बाटों का प्रयोग किया जाता था। सिंधुवासी स्त्री की मातृ देवी के रूप में उपासना करते थे।

नगर और नये शिल्प
हड़प्पा के नगरों से बरामद चीजें अधिकतर पत्थर, शंख, तांबे, काँसे, सोने और चांदी जैसे धातुओ से बनायी जाती थीं। सोने और चांदी से गहने और बर्तन बनाये जाते थे। यहाँ मिली कुछ आकर्षक वस्तुएँ हैं- मनके, बाट और फलक। हड़प्पा सभ्यता के लोग पत्थर की मुहरे बनाते थे जिन पर सामान्यत: जानवरों के चित्र मिलते हैं। संभवत: 7000
साल पहले मेहरगढ़ में कपास की खेती होती थी। पत्थरों को काट और तराशकर मनके बनाये जाते थे। इनके बीच छेद किये गये थे ताकि धागा डालकर माला बनायी जा सके। पकी मिट्टी तथा फेयॅन्स से बनी तकलियाँ सूत कताई का संकेत देता है।

फेयॅन्स
फेयॅन्स को कृत्रिम रूप से तैयार किया जाता है। बालू या स्फटिक पत्थरों के चूर्ण को गोंद मे मिलाकर उनसे वस्तुएँ बनायी जाती थीं। तदोपरांत उन वस्तुओं पर एक चिकनी परत चढ़ाई जाती थी। इनके रंग प्राय: नीले या हल्के समुद्री हरे होते थे। फेयॅन्स से मनके, चूड़ियाँ और छोटे बर्तन बनाये जाते थे।

व्यापार
हड़प्पा में तांबा, लोहा, सोना, चांदी और बहुमूल्य पत्थरों को दूर-दूर से आयात किया जाता था। हड़प्पा के लोग तांबे का आयात संभवत: आज के राजस्थान से करते थे। टिन का आयात आधुनिक ईरान और अफगानिस्तान से किया जाता था। सोने का आयात आधुनिक कर्नाटक और बहुमूल्य पत्थर का आयात गुजरात, ईरान और अफगानिस्तान से किया जाता था। अस्त्र-शस्त्र, पात्र, वस्त्र, आभूषण तथा शिल्प संबंधी व्यवसाय प्रचलन में थे। सिंधुवासियों के विदेशों से व्यापारिक संबंध थे।

कृषि
गेहूं, जौ, कपास, राई, मटर, खजूर, अनार आदि की खेती की जाती थी। खेतों की सिंचाई तालाब, नदी, कुएँ तथा वर्षा के जल से की जाती थी। जमीन की जुताई के लिए हल का प्रयोग नयी बात थी। कृषि के साथ-साथ पशुपालन सिंधुवासियों का प्रमुख पेशा था। हड़प्पा के लोग गाय, भैंस, भेड़ और बकरियाँ पालते थे। वे बेर जैसे फलों को इकट्ठा करते थे, मछलियाँ पकड़ते थे और हिरण जैसे जानवरों का शिकार भी करते थे। सभवत: ये लोग घोड़ों को भी पालते होंगे किंतु घोड़ों के विषय में विद्वान एकमत नहीं हैं।

धार्मिक जीवन
हड़प्पा के लोगों का धार्मिक जीवन हिंदू जीवन पद्धति से मिलता जुलता है। हड़प्पा संस्कृति के लोग मानव, पशु तथा वृक्ष तीनों रुपों में भगवान की उपासना करते थे। उत्खनन से प्राप्त मुहरों पर तीन सिर एवं दो सींग वाले देवता बने हुए हैं, जो एक बाघ, एक हाथी तथा एक गैंडें से घिरा हुआ है और जिसके सिंहासन के नीचे एक भैंस तथा पैरों के नीचे दो हिरण हैं। संभवत: शिव की उपासना पशुपति महादेव के रूप में की जाती थी। वृक्षों में पीपल, महुआ, तुलसी की पूजा की जाती थी। हड़प्पा सभ्यता से स्वास्तिक और चक्र के भी साक्ष्य मिले हैं जो सूर्य पूजा के प्रतीक हैं। हड़प्पा के लोग भूत प्रेत व जादू-टोनों में विश्वास करते थे।

गुजरात में हड़प्पाकालीन नगर
कच्छ के इलाके मे धोलावीरा नगर बसा था। जहाँ हड़प्पा सभ्यता के कई नगर दो भागों में विभाजित थे। वहीं धोलावीरा नगर को तीन भागों में बाँटा गया था। जिनके चारों ओर पत्थर की ऊँची-ऊँची दीवारें बनायी गयी थीं। इनके अंदर प्रवेश हेतु बड़े-बड़े द्वार थे। यहाँ के अवशशों में हड़प्पा लिपि के बड़े-बड़े अक्षरों को पत्थरों में खुदा पाया गया है। गुजरात में लोथल नगर ऐसे स्थान पर बसा था जहाँ कीमती पत्थर जैसा कच्चा माल आसानी से मिलता है। यह साबरमती की एक उप नदी के तट पर खंभात की खाड़ी में बसा था। यह पत्थरों, शंखों और धातुओं से बनायी गयी चीजों का एक महत्वपूर्ण केंद्र था। इस नगर में एक भंडार गृह भी था जहाँ से कई मुहरें और मुद्रांकन या मुहरबंदी मिले हैं। लोथल के बंदरगाह पर समुद्र के रास्ते आने वाली नावें रुकती थीं। संभवत: यहाँ पर माल चढ़ाया-उतारा जाता था।

सिंधु सभ्यता का पतन
लगभग 3900 वर्ष पहले अचानक लोगों ने इन नगरों को छोड़ दिया। दूर-दूर से कच्चे माल का आयात कम हो गया। लोगों के जीवन में बड़ा बदलाव आया। इस महान सभ्यता के अंत के अनुमानित कारण हैं, जो निम्न हैं:
• अत्यधिक बाढ़ अथवा नदियों के मार्ग में परिवर्तन।
• जंगलों का विनाश एवं कम वर्षा होना।
• चारागाह और घास वाले मैदानों की समाप्ति।
• लोगों के रहन-सहन के स्तर पर गिरावट होना।
• विदेशी शक्तियों द्वारा आक्रमण।

कुछ महत्वपूर्ण तिथियाँ
मेहरगढ़ में कपास की खेती – लगभग 7000 वर्श पहले नगरों का आरंभ – लगभग 4700 वर्श पहले हड़प्पा के नगरों के अंत की शुरुआत – लगभग 3900 वर्श पहले अन्य नगरों का विकास – लगभग 2500 साल पहले

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *