आरंभिक मानव
आज हम उन लोगों के बारे में जानते हैं, जो इस उपमहाद्वीप में बीस लाख साल पहले रहा करते थे। आमतौर पर वे जंगली जानवर का शिकार करते थे। साथ ही भोजन का संग्रह भी करते थे। यही वजह है कि उन्हें आखेटक या खाद्य संग्राहक के नाम से जाना जाता है। पेड़-पौधों से मिलने वाले खाद्य पदार्थ भोजन के सबसे महत्वपूर्ण साधन थे। भोजन की तलाश में वे एक जगह से दूसरी जगह घूमते रहते थे।
आंरभिक मानव के बारें में जानकारी कैसे मिलती है?
आंरभिक मावन द्वारा प्रयुक्त चीजों के आधार पर पुरातत्वविदों को आंरभिक मानव के बारें में जानकारी मिलती है। आखेटक- खाद्य-सग्राहंक द्वारा काम में लाये गये पत्थरों, लकड़ियों और हड्डियों के औजारों से उनकी जीवन-शैली का पता चलता है। इन औजारों का उपयोग पेड़ों की छाल और जानवरों की खाल उतारने के लिए करते थे। साथ ही हड्डियों या लकड़ियों के मुट्ठे लगाकर भाले और बाण जैसे हथियार बनाये जाते थे। साथ ही लकड़ियाँ काटने के लिए भी औजारों का इस्तेमाल किया जाता था। भीमबेटका, हुँस्गी, कुरनूल गुफाएँ, वे पुरास्थल है जहाँ पर आखेटक खाद्य संग्राहक के होने के प्रमाण पुरातत्वविदों को मिलें है। पुरास्थल उस स्थान को कहते हैं जहाँ औजार, बर्तन और इमारतों जैसी वस्तुओं के अवशेश मिलें हैं। ऐसी वस्तुओं का निर्माण लोगों ने अपने काम के लिए किया था और बाद में वे उन्हें वहीं छोड़ गये थे।
ये जमीन के ऊपर, अन्दर और कभी-कभी समुद्र और नदी के तल में भी पाये जाते हैं। औजार बनाने के लिए पत्थर के उपकरण बहुत महत्वपूर्ण थे, इसलिए तात्कालिक लोगों ने ऐसी जगह ढूँढ़ी जहाँ बढ़िया पत्थर मिलते थे। इन्हीं पत्थरों से औजार बनाने वाले स्थल को उद्योग-स्थल कहते हैं। भीमबेटका आधुनिक मध्यप्रदेश में स्थित एक महत्वपूर्ण पुरास्थल है।
यहाँ स्थित प्राकृतिक गुफाओं की तरह ही विन्ध्य और दक्कन के पर्वतीय इलाकों में ऐसी अनेक प्राकृतिक गुफाएँ मिली हैं।
पाषाण औजारों का निर्माण
पाशाण औजारों को बनाने की प्राय: दो विधि प्रचलित थी:
(1) पत्थर से पत्थर को टकराना: इसमें एक पत्थर को हाथ से पकड़कर दूसरे पत्थर को हथौड़ी की तरह प्रयोग किया जाता था। वांछित आकार वाले उपकरण बनाने हेतु लगातार प्रहार कर शल्क निकाले जाते थे।
(2) ’दबाव शल्क तकनीक’ का प्रयोग: इस प्रक्रिया में क्रोड को एक निश्चित सतह पर टिकाकर, उस क्रोड पर हड्डी या पत्थर रखकर, हथौड़ीनुमा पत्थर से शल्क निकाले जाते थे। ये पत्थर के औजार साधारण और खुरदुरे थे।
पाषाण युग में औजार
पुरापाशाण युग हाथ की कुल्हाड़ी और केकड़ों के औजार का उपयोग किया जाता था।
आंरभिक पुरापाशाण युग औजार बनाने के लिए कांचमणि सबसे लोकप्रिय वस्तु थी।
मध्य पुरापाशाण युग इस युग में पत्थर के औजार पत्थर की परतों या पत्थरों के टुकड़ों से बनाये जाते थे।
उत्तर पुरापाशाण युग औजार चकमक के बनाये जाते थे।
मध्यपाशाण युग बाण और मत्स्य भालों जैसे औजारों का प्रयोग किया जाता था।
इस काल के पाशाण औजार आमतौर पर बहुत छोटे थे।
आग की खोज
अधिकांश विद्वानों का यह मत है कि मनुश्य ने सर्वप्रथम कड़े पत्थरों को एक-दूसरे पर मारकर अग्नि उत्पन्न की होगी। कुरनूल गुफाओं (वर्तमान आन्ध्र प्रदेश) में राख के अवशेश मिले हैं। आग का इस्तेमाल, प्रकाश के लिए, मांस पकाने के लिए, खतरनाक जानवरों को दूर भगाने के लिए आदि कई कारणों से किया जाता रहा होगा। ज्ञात हो कि मानव को आग की जानकारी निम्न पुरापाशाण काल में हो गयी थी जबकि आग का विधिवत प्रयोग नवपाशाणकाल से शुरू हुआ।
बदलती जलवायु
लगभग 12000 साल पहले दुनिया की जलवायु बदली। कई बड़े बदलाव आए, जैसे गर्मी बढ़ने लगी इसका परिणाम यह हुआ कि घास वाले मैदानों का निर्माण हुआ। घास खाकर जिन्दा रहने वाले जानवर जैसे – हिरण, बारहसिंगा, भेड़, बकरी और गाय आदि की संख्या बढ़ी। आखेटक इनके पीछे आए और इनके बारें में विस्तृत जानकारी हासिल करने लगे। साथ ही इन जानवरों को पालतू बना कर रखने का तरीका अपनाया गया। इसी दौरान उपमहाद्वीप के भिन्न-भिन्न इलाकों में गेहूँ, जौ और धान जैसे अनाज प्राकृतिक रूप से उगने लगे थे।
शैल चित्रकला
जिन गुफाओं में आंरभिक मानव रहते थे, उनमें से कुछ गुफाओं की दीवारों पर शैल चित्र मिले हैं।
यह उल्लेखनीय है कि मिरजापुर व सोनमद् में अब तक लगभग 250
से अधिक शैल चित्र युक्त शैलाश्रय प्रकाश में आ चुके हैं। इनमें जंगली जानवरों का बड़ी कुशलता से सजीव चित्रण किया गया है।
नाम और तिथियाँ
पुरातत्वविदों ने पाशाणकाल के आरंभिक काल (वर्शों) को पुरापाशाण काल कहा है। ’पुरा’ यानी ’प्राचीन’ और पाशाण यानी ’पत्थर’ के संयोग से ’पुरापाशाण’ संज्ञा बनी है। यह पुरास्थलों से प्राप्त पत्थरों के औजारों के महत्व को बताता है। इस काल को तीन भागों में विभाजित किया गया है – ’आरंभिक’ ’मध्य’ एवं ’उत्तर’ पुरापाशाण काल। मानव इतिहास की लगभग 99 प्रतिशत कहानी इसी काल में घटित हुई।
’मेसालिथ’ यानी मध्य पाशाण युग में हमें बड़े पर्यावरणीय बदलाव दिखाई पड़ते हैं। इस काल के औजारों में हड्डियाँ या लकड़ियों के मुट्ठे लगे हँसिया और आरी जैसे औजार मिलते थे। नवपाशाण युग में आंरभिक मानव ने खेती की शुरुआत की ओर भोजन उत्पादक बना।
पुरापाशाण काल 20 लाख साल पहले से 12000 साल पहले तक
मध्यपाशाण काल 12000 साल पहले से 10,000 साल पहले तक
नवपाशाण काल 10,000 साल पहले से 3000 ई.पू. तक