अध्याय 2 भूगोल ग्रह सौरमंडल में पृथ्वी

खगोलशास्त्र
खगोलशास्त्र अध्ययन का ऐसा क्षेत्र है जिसके अंतर्गत पृथ्वी और उसके वायुमंडल के बाहर होने वाली घटनाओं का अवलोकन, विश्लेषण तथा व्याख्या की जाती है। यह घटित प्रक्रिया का शृंखलाबद्ध अध्ययन, आधार, उत्पत्ति विकास एवं वैज्ञानिक तथ्यों को सामने लाता है।
यहाँ गौर की जाने वाली बात यह है कि खगोलशास्त्र और ज्योतिषशास्त्र दोनों अलग हैं। दोनों की कार्य पद्धति खगोलीय पिंडों के चाल पर निर्भर है। लेकिन खगोलशास्त्री जहाँ वैज्ञानिक पद्धति का उपयोग करते हैं, वहीं ज्योतिषी केवल अनुमान आधारित गणनाओं का सहारा लेते हैं। आर्यभट्ट प्राचीन भारत के प्रसिद्ध खगोलशास्त्री थे।

खगोलीय पिंड
खगोलीय पिंड से हमारा तात्पर्य अंतरिक्ष में पाये जाने वाली प्रत्येक वस्तु जैसे सूर्य ,चंद्रमा, ग्रह, उल्का आदि से है। खगोलीय पिंडों के आकार, बनावट एवं प्रकृति में भिन्नता पायी जाती है। कुछ खगोलीय पिंड आकार में बड़े तो कुछ तुलनात्मक रूप से काफी छोटे भी होते हैं। यह गैस से बने होते हैं। ये गर्म भी होते हैं।
खगोलीय पिंडों में तारे गैसों से बने होते हैं। उनके पास अपनी ऊष्मा तथा प्रकाश होता है, जिसे वे बहुत बड़ी मात्रा में उत्सर्जित करते हैं। सूर्य भी एक तारा है।

आकाशगंगा
संस्कृत और कई अन्य हिंद आर्य भाषाओं में हमारी गैलेक्सी को ‘आकाशगंगा’ कहते हैं। गैलेक्सी शब्द का मूल यूनानी भाषा का ‘गाला’ (γάλα) शब्द है, जिसका अर्थ भी दूध होता है। अंग्रेजी में आकाशगंगा को ‘मिल्की वे’ (milky way) कहा जाता है। आकाशगंगा आकृति में एक सर्पिल (स्पाइरल) गैलेक्सी होती है, जिसका एक बड़ा केंद्र होता है और उससे निकली हुई कई वक्र भुजाएँ। हमारा सौर मंडल इसकी शिकारी हंस भुजा (ओरायन सिग्नस आर्म) पर स्थित है। आकाशगंगा में 100 अरब से 400 अरब के बीच तारे हैं और अनुमान लगाया जाता है कि लगभग 50 अरब ग्रह होंगे; जिनमें से 50 करोड़ अपने तारों से जीवन योग्य तापमान रखने की दूरी पर हैं। आकाशगंगा की सही आकृति का आंकलन अब तक नहीं हो पाया है। अनुमानत: माना जाता है कि आकाश गंगा की चार मुख्य भुजाएँ हैं और कम से कम दो छोटी भुजाएँ हैं जिनमें से एक शिकारी हंस या ओरायन सिग्नस भुजा है जिस पर हमारा सौर मंडल स्थित है। ये भुजाएँ निम्न हैं:
• परसीयस भुजा
• नोरमा भुजा और बाहरी भुजा
• स्कूटम सॅन्टॉरस भुजा
• कैरीना सेजिटेरियस भुजा छोटी भुजा का नाम ओरायन सिग्नस भुजा है, जिसमें सूर्य और सौरमंडल मौजूद हैं। 2 गैलेक्सियाँ या जिन्हें ‘बड़ा’ और ‘छोटा’ मेजलेनिक क्लाउड कहा जाता है, आकाशगंगा की परिक्रमा कर रही हैं। आकाशगंगा के और भी उपग्रहीय गैलेक्सियाँ हैं।

सौर मंडल
सूर्य के चारों ओर चक्कर लगाने वाले विभिन्न ग्रहों, क्षुद्रग्रहों, धूमकेतुओं, उल्काओं तथा अन्य आकाशीय पिंडों के समूह को सौर मंडल कहते हैं। सौर मंडल में सूर्य अपनी स्थिति एवं द्रव्यमान के कारण केंद्र में है। सौर मंडल निकाय के द्रव्य का लगभग 99.999
द्रव्य सूर्य में निहित है। सौर मंडल की समस्त ऊर्जा का स्रोत भी सूर्य ही है। सौर मंडल के तारों की संख्या का वास्तविक अनुमान अभी भी नहीं लगाया जा सका है तथा ये सौरमंडल में काफी विस्तारित क्षेत्रों में स्थित हैं। जिस कारण हम इन्हें देख भी नहीं पाते हैं या ये काफी छोटे-छोटे दिखाई पड़ते हैं। अधिक दूरी के कारण हम लोग उनकी ऊश्मा या प्रकाश महसूस नहीं करते हैं। सूर्य का प्रकाश पृथ्वी तक पहुँचने में 8 मिनट 16.6 सेकेंड में पहुँचता है।

नक्षत्र मंडल
रात्रि में आकाश में टिमटिमाते तारे अलग-अलग तरह की आकृतियों का निर्माण करते हैं, जिसे नक्षत्र मंडल कहते हैं।

उदाहरण: उर्शा मेजर या बिग बियर या सप्तऋशि या स्मॉल बियर सात तारों का समूह है जो कि एक बड़े नक्षत्र मंडल उर्शा मेजर का भाग है। प्राचीन काल में लोग रात्रि में दिशा निर्धारण इन्हीं तारों की मदद से करते थे। उत्तरी तारा उत्तर दिशा को बताता है। इसे ही ध्रुवतारा भी कहा जाता है। आसमान में इसकी स्थिति हमेशा समान रहती है।

सूर्य
सूर्य सौर मंडल का प्रधान है। यह हमारी मंदाकिनी या दुग्ध मेखला
(milky way) के केंद्र से लगभग 30000 प्रकाश वर्ष की दूरी पर एक कोने में स्थित है।
यह दुग्ध मेखला या मंदाकिनी के केंद्र के चारों ओर 250
किलोमीटर/से. की गति से परिक्रमा कर रहा है। इसका परिक्रमण काल (दुग्धमेखला के केंद्र के चारों ओर एक बार घूमने में लगा समय) 25 करोड वर्ष है, जिसे ब्रह्मांड वर्ष (cosmos year) कहते हैं। सूर्य एक गैसीय गोला है, जिसमें हाइड्रोजन 71%, हीलियम 26.5% एवं अन्य तत्व 2.5% होते हैं। सूर्य का केंद्रीय भाग क्रोड़ (core) कहलाता है। जिसका ताप 1.5107 C होता है तथा सयूर् के बाहरी सतह का तापमान 6000 C होता है। सूर्य के केंद्र पर नाभिकीय संलयन होता है जो सूर्य की ऊर्जा का स्रोत है। सूर्य की दीप्तिमान सतह को प्रकाश मंडल (photo-sphere) कहते हैं। सूर्य ग्रहण के समय सूर्य के दिखाई देने वाले भाग को सूर्य किरीट (corona) कहते हैं। सूर्य किरीट एक्स-रे उत्सर्जित करता है। सूर्य की उम्र 5 बिलियन वर्ष है। सौर ज्वाला को उत्तर ध्रुव पर औरोरा बोरियलिस और दक्षिणी ध्रुव पर औरोरा ऑस्ट्रेलिस कहते हैं। भविष्य में सयूर् द्वारा ऊर्जा प्रदान करते रहने का अनुमान 1011 प्रकाश वर्ष है। सूर्य का व्यास 13 लाख 92 किमी है, जो पृथ्वी के व्यास का लगभग 110 गुना है। सूर्य हमारी पृथ्वी से 13 लाख गुना बड़ा है और पृथ्वी को सूर्य ताप का 2 अरबवाँ भाग मिलता है।

ग्रह
अंतर्राष्ट्रीय खगोलशास्त्रीय संघ (IAU) ने प्राग सम्मेलन 2006 में ग्रहों की श्रेणी एवं उनकी विशिष्ट अवस्था के बारे में विचार किया। इसी सम्मेलन में प्लूटो को ग्रह की श्रेणी से निकाल कर बौने ग्रह की श्रेणी में डाल दिया था। इस सम्मेलन में ग्रह की परिभाषा निम्न शर्तों को पूरा करने वाले ग्रहों को दी गयी –
• ‘ग्रह’ सूर्य के चारों ओर परिक्रमा करता हो।
• उसमें पर्याप्त गुरुत्वाकर्षण बल हो जिसके फलस्वरूप उसकी आकृति गोलाकार हो।
• तथा ग्रह के चारों ओर या आस-पास का क्षेत्र साफ हो यानी अन्य खगोलीय पिंडों की भीड़-भाड़ न हो। इन शर्तों को पूरा करने वाले खगोलीय पिंड ही ‘ग्रह’ की श्रेणी में रखे गये। सभी आठ ग्रह परंपरागत ग्रह कहलाते हैं। सूर्य से दूरी के अनुसार इनका क्रम है: बुध, शुक्र, पृथ्वी, मंगल, ब्रहस्पति, शनि, यूरेनस, नेपच्यून। इन 8 ग्रहों में से केवल पाँच को नंगी आँखों से देखा जा सकता है। ये ग्रह हैं: बुध, शुक्र, शनि, बृहस्पति एवं मंगल। आकार के अनुसार ग्रहों का क्रम (घटते क्रम) है: बृहस्पति, शनि, यूरेनस (अरुण), नेपच्यून (वरुण), पृथ्वी, शुक्र, मंगल, बुध। बुध, शुक्र, पृथ्वी एवं मंगल को पार्थिव या आंतरिक ग्रह कहा जाता है क्योंकि ये पृथ्वी के सदृश दिखते हैं। बृहस्पति, शनि, यूरेनस, नेपच्यून को बाह्य ग्रह कहते हैं।
शुक्र और यूरेनस को छोड़कर अन्य सभी ग्रहों की धूर्णन एवं परिक्रमण की दिशा एक ही है। सौर मंडल के सभी ग्रह जिस निश्चित पथ पर सूर्य का चक्कर लगाते हैं, वह दीर्घ वृत्ताकार रास्ता कक्षा कहलाता है। वहीं, शुक्र को सांझ का तारा या भोर का तारा कहा जाता है। इसे पृथ्वी की बहन भी कहा जाता है। मंगल को लाल ग्रह तथा पृथ्वी को नीला ग्रह कहा जाता है। शनि ग्रह के चारों ओर वलय है और इसके उपग्रहों की संख्या सर्वाधिक (30) है।

पृथ्वी
अब तक ज्ञात जानकारी के अनुसार पृथ्वी ही एकमात्र ग्रह है जिस पर जीवन है। वैज्ञानिक खोज में लगे हैं कि ब्रह्मांड में किसी अन्य ग्रह पर भी जीवन हो। पृथ्वी सूर्य से दूरी के हिसाब से तीसरा और आकार में पाँचवाँ सबसे बड़ा ग्रह है।

आकार: अतीत में पृथ्वी के आकार को लेकर अलग-अलग मान्यताएँ थी मगर अब यह सिद्ध हो चुका है कि पृथ्वी पूर्णतया गोल भी नहीं है। यह ध्रुवों के पास थोड़ी चपटी है। यही कारण है कि इसके आकार को भू-आभ कहा जाता है। ‘भू-आभ’ का अर्थ है: भू यानी पृथ्वी और आभ आभास के लिए प्रयुक्त है अर्थात् पृथ्वी के समान आकार।
धु्रवों पर चपटा होने के कारण पृथ्वी के विषुवतीय व्यास (12756 किलोमीटर) और ध्रुवीय व्यास (12,714 किमी) में अंतर है। पृथ्वी के घूर्णन के क्रम में अपकेंद्री बल उत्पन्न होता है। जिसके कारण पृथ्वी विशुवत रेखा पर कुछ उभरी हुई तथा ध्रुवो पर कुछ चपटी है। जॉन हर्शेल ने पृथ्वी के आकार को पृथ्व्याकार (Geoid) कहा हैं। पृथ्वी अपने कक्ष पर पश्चिम से पूर्व दिशा में 1610 किमी/घंटा की चाल से 23 घंटे 56 मिनट 4 सेकेंड में एक चक्कर लगाती है। पृथ्वी की इस गति को धूर्णन या दैनिक गति कहते हैं। इस गति से दिन-रात होते हैं। पृथ्वी को सूर्य की एक परिक्रमा में अण्डाकार मार्ग (94.14 मिलियन किमी) पर पूरी करने पर 365 दिन 5 घंटे 48 मिनट 46 सेकेंड
(लगभग 365 दिन 6 घंटे) का समय लगता है। सूर्य के चारों ओर की इस परिक्रमा को परिक्रमण कहते हैं। पृथ्वी को सूर्य की एक परिक्रमा करने में लगे समय को ‘सौर वर्ष’ कहा जाता है। प्रत्येक सौर वर्ष कैलेंडर वर्ष से लगभग 6 घंटा बढ़ जाता है, जो 4
वर्षों में समायोजित होकर 1 दिन हो जाता है। इस तरह हर चौथे वर्ष को लीप वर्ष के तौर पर मनाया जाता है जिसमें फरवरी 29 दिनों का होता है। पृथ्वी पर ऋतु परिवर्तन वार्षिक गति के कारण होता है। अंतरिक्ष से देखने पर पृथ्वी नीले रंग की दिखाई पड़ती है क्योंकि इसकी दो तिहाई सतह पानी से ढकी हुई है। इसलिए इसे नीला ग्रह भी कहा जाता है। पृथ्वी अपने अक्ष सें 66.5 का कोण बनाती है। सूर्य के बाद पृथ्वी का सबसे निकटतम तारा ‘प्रॉक्सिमा सेंचुरी’ है जो अल्फा सेंचुरी समूह का तारा है। पृथ्वी का एकमात्र उपग्रह ‘चंद्रमा’ है।

सूर्योच्च एवं अपसौर
पृथ्वी की परिक्रमण गति के दौरान 4 जुलाई को जब पृथ्वी अपनी कक्षा में सूर्य से अधिकतम दूरी (15.2 करोड़ किमी) पर होती है, तो इस स्थिति को सूर्योच्च कहते हैं। 3 जनवरी को पृथ्वी सूर्य के निकटतम दूरी (14.73 करोड़ किमी) पर होती है, इस स्थिति को अपसौर कहते हैं।

ग्रहण (Eclipse)
जब किसी विक्षेप के कारण सूर्य अथवा चंद्रमा के प्रकाशमय भाग का कुछ भाग या संपूर्ण भाग थोड़ी देर के लिए अंधकारमय हो जाता है उसे ग्रहण कहते हैं।

सूर्य ग्रहण (Solar Eclipse)
जब अपने अक्ष पर परिक्रमण के क्रम में चंद्रमा, पृथ्वी और सूर्य के मध्य आ जाता है तो चंद्रमा की छाया पृथ्वी पर पड़ती है, जिसके कारण पृथ्वी के कुछ भाग से या पूरे भाग से सूर्य नहीं दिखाई देता। इसे ही सूर्य ग्रहण कहते हैं। यह अमावस्या के दिन ही होता है। यहाँ ध्यान देने की बात है कि हर अमावस्या को सूर्य ग्रहण नहीं होता है।

चंद्र ग्रहण (Lunar Eclipse)
जब पृथ्वी परिक्रमण के दौरान सूर्य और चंद्रमा के मध्य आ जाती है तो उसकी छाया चंद्रमा पर पड़ती है और चंद्रमा धूमिल हो जाता है। इसे चंद्र ग्रहण कहते हैं। यह पूर्णिमा के दिन ही होता है।

पूर्णिमा: चंद्रमा प्रतिदिन अलग-अलग स्वरूप में दिखाई पड़ता है। माह में सिर्फ 1 दिन यह पूर्ण गोलाकार स्वरूप में दिखता है तथा उसका उग्र भाग चमकता दिखाई पड़ता है। इसी दिन को पूर्णिमा कहते हैं।

अमावस्या: पूर्णिमा दिन के बाद शेष 14 दिनों में चंद्रमा का एक भाग कटता जाता है। ऐसा पृथ्वी की छाया के कारण होता है। 14वें दिन पृथ्वी की छाया इसे पूरी तरह ढक लेती है जिससे यह बिल्कुल नहीं दिखाई पड़ता है। इसी दिन को अमावस्या कहते हैं।

चंद्रमा
चंद्रमा पृथ्वी का एकमात्र उपग्रह है। इसे जीवाश्म ग्रह भी कहा जाता है। चंद्रमा का अपना कोई प्रकाश नहीं है। यह सूर्य के प्रकाश से प्रकाशित होता है। जिस तरह पृथ्वी सूर्य का चक्कर लगाती है, उसी तरह चंद्रमा भी पृथ्वी का चक्कर लगाता है। इसका पथ अंडाकार है। उसका व्यास पृथ्वी के व्यास का 1/4 अर्थात् 3475 किमी है। पृथ्वी से चंद्रमा की दूरी 384, 365 किमी है। इसका गुरुत्वाकर्षण पृथ्वी का 1/6 भाग है। चंद्रमा पर दिन का तापमान 100 सेल्सियस और रात्रि का न्यूनतम तापक्रम 180 सेल्सियस, घनत्व (पानी के सापेक्ष) 3.34 तथा घनत्व पृथ्वी के सापेक्ष -0.6058 होता है। चंद्रमा को पृथ्वी की परिक्रमा करने में 27 दिन 7 घंटे 43 मिनट और 11.47
सेकेंड लग जाते हैं। चंद्रमा के प्रकाश को पृथ्वी तक पहुँचने में केवल 1.3 सेकेंड लगते हैं। चंद्रमा पर कई धूल के मैदान स्थित हैं, जिन्हें शांति सागर कहा जाता है। चंद्रमा का उच्चतम पर्वत लीबनिट्ज पर्वत है जो 35000 फुट (10668 मी) ऊंँचा है। यह चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव पर स्थित है। चंद्रमा पर उपस्थित प्रमुख तत्व सिलिकन, लोहा, मैग्नीशियम है। रात्रि में दिखने वाली चन्द्र किरणें वास्तव में सूर्य की परावर्तित किरणें हुआ होती हैं। ज्वार उठने के लिए अपेक्षित स्वर एवं चंद्रमा की शक्तियों का अनुपात 11 : 5 है। चंद्रमा का अक्ष तल पृथ्वी के अक्ष के साथ 58.48 का अक्ष कोण बनाता है। चंद्रमा पृथ्वी के अक्ष के लगभग समांतर है। चंद्रमा का विशेष रुप से अध्ययन करने वाले विज्ञान को सेलेनोलौजी कहते हैं। नील आर्मस्ट्राँग चंद्रमा पर पहुँचने वाले पहले व्यक्ति थे। 29 जुलाई 1969 को इन्होंने चंद्रमा की सतह पर कदम रखा।

क्षुद्र ग्रह (Asteroids)
तारों, ग्रहों एवं उपग्रहों के अतिरिक्त असंख्य छोटे पिंड भी सूर्य के चारों ओर चक्कर लगाते हैं। इन पिंडों को क्षुद्र ग्रह कहते हैं। ये मंगल और बृहस्पति की कक्षाओं के बीच पाये जाते हैं। वैज्ञानिकों के अनुसार क्षुद्र ग्रह, ग्रह के ही भाग होते हैं जो बहुत वर्ष पहले विस्फोट के बाद ग्रहों से टूटकर अलग हो गये।

उल्का पिंड (Meteroite)
सूर्य के चारों ओर चक्कर लगाने वाले पत्थरों के छोटे-छोटे टुकड़ों को उल्का पिंड कहते हैं। उल्का पिंड कई बार पृथ्वी के करीब गिरने की स्थिति में आ जाते हैं। इस प्रक्रिया में वायु के साथ घर्षण होने के कारण यह गरम होकर जल जाते हैं। फलस्वरूप, चमकदार प्रकाश उत्पन्न होता है। कुछ पिंड वायुमंडल के घर्षण से पूर्णत: प्रज्वलित नहीं हो पाते हैं। अत: पृथ्वी तल पर जब वे गिरते हैं तो धरातल पर बड़े-बड़े गड्ढे़ बन जाते हैं।

मानव निर्मित उपग्रह
यह एक कृत्रिम पिंड होता है। यह वैज्ञानिकों द्वारा ब्रह्मांड के बारे में जानकारी प्राप्त करने एवं पृथ्वी पर संचार माध्यम के लिए बनाया गया होता है। इसे रॉकेट द्वारा अंतरिक्ष में भेजा जाता है एवं पृथ्वी की कक्षा में स्थापित कर दिया जाता है। अंतरिक्ष में उपस्थित कुछ भारतीय उपग्रह इनसेट, आई.आर.एस., एडुसैट इत्यादि हैं।

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