ब्रह्माण्ड में पृथ्वी ही एक मात्र ऐसा ग्रह है‚ जहाँ पर्याप्त मात्रा में जल है। पृथ्वी का तीन चौथाई (3/4) भाग (71%) जल से ढँका हुआ है। इस भाग को जलमंडल कहते हैं। यह पृथ्वी पर महासागरों‚ झीलों‚ नदियों‚ हिमनद तथा जलाशयों के रूप में पाया जाता है।
पृथ्वी पर उपस्थित कुल जल का 97% भाग खारे समुद्री जल के रूप में है। समुद्र में घुले विभिन्न लवणों के कारण इसका स्वाद खारा या नमकीन होता है। इसलिए यह पीने योग्य नहीं होता है। शेष 2.4
प्रतिशत जल हिमनद और ध्रुवीय बर्फ चोटियों में तथा 0.6 प्रतिशत जल अन्य दोतों जैसे नदियों‚ झीलों और तालाबों में पाया जाता है।
प्राकृतिक रूप से जल वर्षा द्वारा प्राप्त होता है। वर्षा का यह जल नदियों‚ नालों आदि से होता हुआ समुद्र में मिल जाता है।
पृथ्वी पर जल के निम्नलिखित दोत हैं−
1. धरातलीय दोत
2. भूमिगत दोत
3. हिमनद
धरातलीय दोत− पृथ्वी की सतह से प्राप्त होने वाला जल धरातलीय दोत के अन्तर्गत आता है। जैसे− समुद्र‚ झीले‚ तालाब आदि।
समुद्र− पृथ्वी पर उपलब्ध जल का अधिकांश भाग महासागरों तथा सागरों में है। समुद्र का जल खारा होने के कारण योग्य नहीं है।
समुद्र में विभिन्न प्रकार के जीव−जन्तु पाये जाते हैं तथा ये जीव समुद्र जल में रहने के लिए अनुकूलित होते हैं। समुद्र के जल से नमक बनाया जाता है। मानव द्वारा निरन्तर दूषित पानी एवं अपशिष्ट पदार्थों के समुद्र में डालने के कारण समुद्र का जल प्रदूषित हो रहा है जो कि समुद्री जीव−जन्तुओं के लिए हानिकारक है।
नदी तालाब एवं झील− नदी‚ तालाब एवं झील मीठे जल का दोत है। झीले खारे पानी की भी होती हैं। नदियाँ मानव जीवन के लिए महत्त्वपूर्ण है। नदियों के जल का दोत प्राय: हिमनद‚ झरना या वर्षा का जल है। अधिकांश नदियों का जल दिन−प्रतिदिन मानव द्वारा गन्दा किया जा रहा है। हमें इन नदियों को स्वच्छ रखने हेतु मिलकर प्रयास करना चाहिए।
भूमिगत दोत− धरातल पर पाए जाने वाले जल का कुछ भाग रिस−रिस कर भूमि के नीचे एकत्रित हो जाता है। इसे ही भूमिगत जल कहते हैं। यह जल अधिक शुद्ध होता है। इस जल को कुओं‚ हैण्डपम्पों‚ नलकूपों आदि द्वारा प्राप्त किया जाता है।
‘भूमिगत जल’ का मानव द्वारा अत्यधिक दोहन से जल स्तर नीचे होता जा रहा है। वर्षा के जल को तालाबों‚ झीलों‚ बाँधों एवं खेतों में रोककर भू−जल स्तर को बढ़ाया जा सकता है। वर्षा के जल को इस प्रकार रोकना जल पुनर्भरण (रिजार्च) कहलाता है।
हिमनद− पृथ्वी की सतह पर पर्वतीय तथा ध्रुवीय क्षेत्र बर्फ से ढके हैं। ये बर्फ पिघलकर पर्वतीय ढालों से हिमनद के रूप में नीचे की ओर बहती है और नदियों में मिल जाती है। यह पृथ्वी की धरातलीय सतह पर पानी का सबसे बड़ा भण्डारण है। यह जल प्राय: स्वच्छ एवं मीठा होता है।
जल (Water)
• जल एक रासायनिक यौगिक है‚ जिसका अणुसूत्र (H2O)
है। इसके अणुसूत्र से स्पष्ट है कि जल का एक अणु हाइड्रोजन के दो परमाणु और ऑक्सीजन के एक परमाणु के संयोजन से बना है।
• हमारे शरीर का 2/3 भाग पानी होता है। पानी हमारे शरीर का मुख्य पोषक तत्त्व है। यह हमारे शरीर की सभी कोशिकाओं तथा अंगों के तन्तुओं में पाया जाता है। पानी की सहायता से पोषक तत्त्व पाचन‚ अवशोषण तथा संवहन की क्रिया द्वारा शरीर में पहुँचते हैं।
पानी के द्वारा शरीर के अनावश्यक तत्त्वों का मूत्र के रूप में निष्कासन होता है तथा पसीने के निष्कासन से शरीर का तापमान संतुति बना रहता है।
जल का वितरण− पृथ्वी का तीन चौथाई (71%) जल से ढँका हुआ है परन्तु फिर भी इस की कमी है क्योंकि जल का वितरण असमान है और इसका ज्यादातर भाग हमारे लिए उपयोगी नहीं है।
जल का वितरण निम्नलिखित है−
नोट−
• अलवण जल के मुख्य दोत नदी‚ ताल‚ सोते एवं हिमनद हैं।
महासागरों एवं समुद्रों का जल‚ लवणीय होता है। इसमें अधिकांश नमक (सोडियम क्लोराइड NaCl) होता है‚ जिसके कारण इसका स्वाद नमकीन होता है तथा पीने योग्य नहीं होता है।
• एक लीटर समुद्र के जल में लगभग 35 ग्राम खनिज लवण घुले हाते हैं जबकि एक लीटर नदी के जल में लगभग 2.3 ग्राम ही लवण घुले होते हैं। समुद्र में लवणों की अधिक मात्रा घुली होने के कारण समुद्री जल खारा होता है।
• महासागरों/समुद्रों में (लवणीय‚ अनुपयोगी) : 97.0%
• बर्फ के रूप में (अलवणीय अनुपयोगी) : 2.0%
• भूमिगत‚ नदियाँ‚ झीलें आदि (अलवणीय‚ उपयोगी) : 1%
• महासागर : 97.3%
• बर्फ छत्रक : 02.0%
• भूमिगत जल : 00.68%
• झीलों का अलवण जल : .0.009%
• स्थलीय समुद्र एवं नमकीन झीलें :0.009%
• वायुमण्डल : 0.0019%
• नदियाँ : 0.0001%
जल के गुण
• रंग एवं गंध जल एक रंगहीन−गंधहीन पदार्थ है।
• स्वाद शुद्ध जल स्वादहीन होता है।
• अवस्था जल तीन अवस्थाओं − ठोस‚ द्रव एवं गैस में पाया जाता है।
• हिमांक एवं गलनांक जल का हिमांक 0oC तथा क्वथनांक 100oC होता है अर्थात् जल 0oC पर बर्फ में बदलता है तथा 100oC पर उबलता है।
• कुचालकता शुद्ध जल विद्युत का कुचालक होता है।
• विलेयता जल में अधिकांश पदार्थ घुल जाते हैं।
इसलिए इसे सार्वत्रिक विलायक कहते हैं।
• जो उपयोगी जल (1%) हमारे उपयोग के लिए उपलब्ध है उसका हम सिर्फ 0.006% ही उपयोग करते हैं।
• ‘लवणता’ 1000 ग्राम जल में मौजूद नमक की मात्रा होती है। महासागर की औसत लवणता 35 ग्राम प्रति हजार है।
• इजराइल के मृत सागर में 340 ग्राम प्रति लीटर लवणता होती है। तैराक इसमें तैर सकते हैं‚ क्योंकि नमक की अधिकता इसे सघन बना देती है।
कठोर एवं मृदु जल (Hard water and soft water)
– वह जल जो साबुन के साथ आसानी से झाग उत्पन्न नहीं करता है‚ कठोर जल कहलाता है। वह जल जो साबुन के साथ आसानी से झाग उत्पन्न करता है‚ मृदु जल कहलाता है।
जल की कठोरता का कारण−
• जल में कैल्शियम बाइकार्बोनेट‚ कैल्शियम क्लोराइड‚ कैल्शियम सल्फेट‚ मैग्नीशियम बाइकार्बोनेट‚ मैग्नीशियम क्लोराइड तथा मैग्नीशियम सल्फेट के घुलने पर जल कठोर हो जाता है। जल में दो प्रकार की कठोरता पायी जाती है− स्थायी कठोरता और अस्थाई कठोरता।
• अस्थायी कठोरता− जल में उपस्थित कैल्शियम एवं मैग्नीशियम के बाइकार्बोनेट के कारण जल में अस्थायी कठोरता होती है तथा जल को उबालने पर कठोरता दूर की जा सकती है। जल में बुझा हुआ चूना Ca(OH)2 मिलने पर भी अस्थाई कठोरता दूर हो जाती है।
• स्थायी कठोरता− कैल्शियम व मैग्नीशियम के सल्फेट व क्लोराइड की उपस्थिति के कारण जल में स्थायी कठोरता होती है जो उबालने से दूर नहीं होती है। स्थायी कठोरता दूर करने की मुख्य विधि परम्यूटिट विधि है। जल में सोडियम कार्बोनेट (Na2CO3) मिलाकर उबालने पर भी स्थायी तथा अस्थायी कठोरता दूर की जा सकती है।
• परम्यूटिट विधि या जियोलाइट विधि− यह विधि आयन विनिमय सिद्धांत पर आधारित है। जियोलाइट या परम्यूटिट का पूरा नाम सोडियम एल्युमिनियम सिलिकेट है जिसका सूत्र Na2Al2Si2O8.xH2O है जिसे Na2Z से भी प्रदर्शित करते है जहाँ Z = Al2Si2O8.xH2O जल में कठोरता उत्पन्न करने वाले Ca2+ व मैग्नीशियम Mg2+ आयनों का जियोलाइट में उपस्थित सोडियम Na+ आयन से विनिमय हो जाता है। जिससे जल में विलेय सोडियम के लवण बन जाते हैं और जल की कठोरता उत्पन्न नहीं करते हैं इस प्रकार मृदु जल प्राप्त होती है। इस विधि द्वारा जल की स्थायी और अस्थायी कठोरता दूर की जा सकती है।
जल संरक्षण
− जल एक बहुमूल्य वस्तु है। जल के बिना जीवन संभव नहीं है। हम जानते हैं पूरे पृथ्वी पर 1% जल ही हमारे लिए उपयोगी है। इसलिए जल का संरक्षण आवश्यक है। वर्षा ही जल का मुख्य दोत है। वर्षा का जल सबसे शुद्ध होता है। वर्षा का जल रिस-रिस कर धरती के नीचे गहराई में चला जाता है। जल का इस प्रकार अपने आप भूमि के अन्दर जाना जल का प्राकृतिक पुनर्भरण कहलाता है। यह पुनर्भरण वर्षा जल‚ तालाबों‚ झीलों बाँधों खेतों की सिंचाई आदि से अपने आप होता रहता है।
हम घरों में अपनी आवश्यकता पूर्ति के लिए जल को घड़ों‚ बाल्टी‚ टंकी आदि में संचित करके रखते हैं। इसी प्रकार तालाब‚ पोखर‚ बाँध आदि बनाकर जब वर्षा के जल को हम रोककर रखते हैं तो उसे वर्षा जल संचयन कहते हैं। वर्षा का जल व्यर्थ न जाने पाए इसलिए इसको हम कृत्रिम पुनर्भरण द्वारा भू−जल के रूप में भी संचित कर सकते हैं। भू-जल पुनर्भरण का तात्पर्य भूमिगत जल के स्तर को बढ़ाना है।
वर्षा जल संचयन की आवश्यकता−
• भू−जल भण्डारण में वृद्धि तथा जल स्तर में गिरावट पर नियंत्रण के लिए।
• जल की उपलब्धता को बढ़ाने के लिए
• भू−जल प्रदूषण को कम करने के लिए
• भू−जल की गुणवत्ता बढ़ाने के लिए
• सूखाग्रस्त क्षेत्रों में जलापूर्ति में सुधार करने के लिए
• पुराने कुओं‚ तालाबों‚ झीलों आदि को साफ करके पुनर्भरण संरचनाओं के रूप में प्रयोग करने के लिए वर्षा के जल को हम निम्नलिखित तरीकों से संग्रहण कर सकते हैं−
• छत के ऊपर वर्षा जल का संग्रहण
• इस विधि से हम छत के ऊपर इकट्ठे हुए वर्षा के जल को पाइपों के मदद से जमीन में बने गड्ढे या टैंक मं इकट्ठा करते हैं।
• इकट्ठे किए गए पानी को हम बाद में उपयोग कर सकते हैं।
• दूसरे विधि में हम सड़कों पर हुई बारिश के पानी को सड़कों के किनारे बनाये गए नालियों‚ गड्ढों के द्वारा जमीन में जाने देते हैं जिससे जमीन के नीचे पानी का स्तर बढ़ जाए।
वर्षा जल संचयन की आवश्यकता
• भूजल भण्डारण में वृद्धि तथा जल स्तर में गिरावट पर नियंत्रण के लिए।
• जल की उपलब्धता बढ़ाने के लिए।
• भूजल की गुणवत्ता बढ़ाने के लिए।
• पुराने कुओं‚ तालाबों‚ झीलों आदि को साफ करके पुनर्भरण संरचनाओं के रूप में प्रयोग करने के लिए।
• पानी की सतही बहाव कम करने के लिए।
वर्षा जल संग्रहण की विधियाँ
• गड्ढे या गर्तिका बनाना
• खाइया बनाना
• कुओं का उपयोग
• हैण्डपम्प का उपयोग करना।
• वर्षा जल संग्रहण जल की उपलब्धता को बढ़ाता है और भूमिगत जल स्तर को नीचे जाने से रोकता है। यह फ्लोराइड और नाइट्रेट जैसे प्रदूषकों को कम करके भूमिगत जल की गुणवत्ता बढ़ाकर मृदा अपरदन और बाढ़ को आने से रोकता है।
• तमिलनाडु एक ऐसा राज्य है‚ जहाँ पूरे राज्य में प्रत्येक घर में छत वर्षा जल संग्रहण ढाँचों का बनाना अनिवार्य कर दिया गया है।
पानी पंचायत
पानी पंचायत जल संरक्षण से सम्बन्धित एक आंदोलन है जिसे महाराष्ट्र के पुणे जिले के माहुर गांव में शुरूआत किया गया।
यह आंदोलन विलासराव सालुंखे नामक व्यक्ति ने शुरू किया था।
जल संरक्षण के लिए क्या करें/क्या न करें− हम अपने दैनिक जीवन में छोटे−छोटे उपायों से भी जल का संरक्षण कर सकते हैं। इसके लिए हमें अपनी दिनचर्या और जीवन शैली में परिवर्तन लाने होंगे‚ जो निम्नलिखित है−
• हम नदियों‚ झीलों‚ कुओं तालाबों आदि का जल स्वच्छ रखें और दूषित न करें।
• अपने आस−पास घरों‚ स्कूलों‚ सार्वजनिक स्थलों पर पानी की बर्बादी न करें।
• टपकते एवं रिसते नल की तुरन्त मरम्मत करवाएँ।
• पानी की आवश्यकता न होने पर नल बन्द कर दें।
• सिंचाई में कम पानी खर्च करने वाले साधनों फौव्वारा या बूंदबूंद सिंचाई आदि विधियों का प्रयोग करें।
• परम्परागत कुओं तालाबों पोखरों का जीर्णोद्धार एवं मरम्मत करें।
जल का उपयोग
− मनुष्य के जीवन की विभिन्न गतिविधियों के लिए जल आवश्यक है। जल का उपयोग कृषि‚ उद्योग‚ घरेलू कार्यों‚ पर्यावरण‚ मनोरंजन आदि में किया जाता है।
नोट−
• 4oC तापमान पर जल का अधिकतम घनत्व होता है।
• जल एक अच्छा विलायक है और किसी अन्य द्रव की अपेक्षा अधिक पदार्थों को घुलाने की दक्षता रखता है‚ इसी कारण से इसे सार्वभौमिक विलायक भी कहा जाता है। पानी की सुविलेयता का कारण इसका ध्रुवीय गुण है।
• जल के अणु में हाइड्रोजन के स्थान पर ड्यूटीरियम होने पर जल को भारी जल कहते हैं। इसे D2O से दर्शाते हैं। भारी जल की खोज 1932 में यूरे (Urey) ने की थी। इसका उपयोग नाभिकीय रिएक्टरों में मंदक रूप में करते हैं।
• जल का pH मान 7 होता है।
• मनुष्य भोजन किए बिना कई सप्ताह तक जीवित रह सकता है परन्तु जल के बिना यह केवल 6 दिन तक जीवित रह सकता है।
• मनुष्य के भार का 70 प्रतिशत भाग जल है। यदि इसमें से एक प्रतिशत की कमी हो जाए तो प्यास महसूस होने लगती है। यदि पाँच प्रतिशत की कमी हो जाए तो त्वचा सिकुड़ने लगती है। मुँह व जीभ सूखने लगती है। शरीर में पन्द्रह प्रतिशत जल की कमी होने पर निर्जलीकरण के कारण मृत्यु हो सकती है।
स्वस्थ्य जल‚ स्वस्थ्य जीवन
जो पानी हमारे स्वास्थ्य के लिए हानिकारक नहीं होता है‚ जिसे हम पीते हैं‚ वह पीने योग्य पानी कहलाता है।
जल को पीने योग्य बनाने के लिए निम्न तरीके अपनाते हैं।
उबालकर− जल को पीने योग्य बनाने का सबसे आसान उपाय उबालना है। उबालने से सभी कीटाणु नष्ट हो जाते है। उबाले गए पानी को ठण्डा करके साफ कपड़े से छानकर पीना चाहिए।
छानकर− पानी को स्वच्छ करने का अन्य तरीका छानना है।
इस प्रक्रिया में पानी को अलग बर्तन में एक साफ कपड़े से छानकर इकट्ठा कर लिया जाता है‚ परन्तु पानी को कीटाणु रहित बनाने के लिए उबालना आवश्यक है।
क्लोरीन द्वारा− क्लोरीन का उपयोग भी पानी को शुद्ध करने के लिए किया जाता है। इस प्रकार कुओं के पानी में लाल दवा (पोटैशियम परमैग्नेट) डालकर पीने योग्य बनाया जाता है। इसके अलावा ब्लीचिंग पाउडर (CaOCl2) का उपयोग जल में उपस्थित कीटाणुओं को नष्ट करने में किया जाता है।
पेयजल (Drinking Water)
• वह जल जो स्वास्थ्य के लिए लाभदायक तथा उत्तम होता है‚ पेयजल कहलाता है।
• पेयजल शुद्ध‚ पारदर्शी रंगहीन व गंधहीन होना चाहिए। इसमें अल्प मात्रा में ऑक्सीजन‚ कार्बनडाई ऑक्साइड व स्वास्थ्य के लिए आवश्यक कुछ खनिज लवण K, Na, Mg, Ca, S, Cl आदि के लवण घुले होने चाहिए।
• इसमें सूक्ष्म जीव‚ कीटाणु‚ रोगाणु आदि नहीं होने चाहिए।
• वर्षा का जल अधिक शुद्ध होता है। परन्तु पीने के लिए योग्य नहीं माना जाता है क्योंकि उसमें आवश्यक खनिज लवण नहीं होने के कारण शरीर के लिए स्वास्थ्यप्रद नहीं होता है।
• विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) के अनुसार पेयजल का pH मान 7 से 8.5 के मध्य होना चाहिए।
जल चक्र−
• जल वाष्पीकरण‚ वर्षण और अपवाह की प्रक्रियाओं द्वारा महासागरों‚ वायु भूमि और पुन: महासागरों में चक्रण द्वारा निरंतर गतिशील है। इस प्रक्रिया को जल चक्र (Water
cycle) कहते हैं।
• पृथ्वी के जलीय क्षेत्रों में एकत्रित जल‚ समुद्र‚ महासागरों‚ नदी‚ तालाब इत्यादि से जलवाष्प के रूप में ऊपर उठता है और निम्न ताप दाब के कारण पुन: संघनित होकर वर्षा के रूप में पृथ्वी पर आ जाता है।
• पृथ्वी के भू−क्षेत्रफल व जल क्षेत्रफल का अनुपात 3:7 है।
• मीठे जल की खपत लगभग 70% खेती के कार्यों में उपयोग किया जाता है।
• जल की आर्द्रता (नमी) को हाइग्रोमीटर (Hygrometer) से मापा जाता है।
दूषित जल से होने वाले रोग
रोग | लक्षण | बचाव |
पेचिश | पेट में मरोड़ के साथ बार−बार दस्त होना | पीने के लिए हमेशा स्वच्छ जल का सेवन |
टायफाइड | तेज बुखार‚ भूख न लगना‚ सिर दर्द | स्वच्छ पानी का उपयोग करना |
पीलिया | आँख‚ नाखून‚ पेशाब का पीला होना | पेयजल हेतु स्वच्छ जल का उपयोग |
हैजा | लगातार उल्टी−दस्त होना | स्वच्छ जल का उपयोग‚ खाने−पीने के पूर्व हाथों की सफाइ |
विश्व जल दिवस− 22 मार्च
• वैश्विक जल संरक्षण को प्रोत्साहित करने हेतु पूरे विश्व में 22 मार्च को विश्व जल दिवस मनाया जाता है।
• वर्ष 2017 के लिए इसका विषय अपशिष्ट जल (waste water) था। वर्ष 2018 के लिए इसका विषय जल के लिए प्रकृति आधारित समाधान (Nature Based Solution for Water) था।
• वर्ष 2019 में मनाये गये विश्व जल दिवस का मुख्य विषय ‘किसी को पीछे नहीं छोड़ना’ था।
राष्ट्रीय जल दिवस− 14 अप्रैल
• केन्द्रीय जल संसाधन नदी विकास एवं गंगा संरक्षण मंत्रालय ने जल संसाधन प्रबंधन के क्षेत्र में डॉ. भीमराव अम्बेडकर के योगदान का उल्लेख करते हुए घोषणा की है कि उनके जन्मदिन 14 अप्रैल को राष्ट्रीय जल दिवस के रूप में मनाया जाएगा।
• भारतीय संविधान के अनुच्छेद−246 और अनुच्छेद−262 में जल के संबंध में केन्द्र और राज्यों के दायित्वों का निर्धारण किया गया है।
• भारतीय संविधान के अनुच्छेद−262 का संबंध अंतर्राज्यीय जल विवादों से है।
• जल की मात्रा मापने की इकाई घन मीटर या हेक्टेयर मीटर है।
• जलभृत मानचित्रण (Aquifer mapping) तैयार करने वाला हरियाणा देश का पहला राज्य है।
• भारत में सर्वाधिक वर्षा मेघालय के मासिनराम में होती है।
• अहमदाबाद के पास अडालज बाव है जिसमें 6 मंजिले हैं।
यह एक मंदिर है जो एक कुएँ पर जाकर समाप्त होता है।
इनकी मंदिरनुमा संरचना एवं जल उपलब्धता की महत्ता को ध्यान में रखते हुए इन्हें जलमंदिर भी कहा जाता है।