सामाजिक अध्ययन की अवधारणा
सामाजिक अध्ययन सामाजिक विज्ञान, मानविकी और इतिहास का समाकलित अध्ययन है। इसमें मानव संबंधों की चर्चा होती है। अत: इसमें सामाजिक विज्ञान के विविध सरोकारों को समाविष्ट किया जाता है। दूसरे शब्दों में हम कह सकते हैं कि यह सामाजिक व भौतिक वातावरण के साथ मानव के संबंधों की चर्चा करता है। शिक्षा शास्त्र सामाजिक अध्ययन के पाठ्यक्रम चयन व गठन में इस बात का ध्यान रखा जाता है कि विद्यार्थियों में समाज के प्रति आलोचनात्मक दृष्टिकोण का विकास हो। यह विषय बालक को स्पष्ट करता है कि काल, स्थान तथा समाज के अनुसार उसका क्या महत्त्व है। विभिन्न पाठ्यचर्या ने सामाजिक अध्ययन की अवधारणा को स्पष्ट करने हेतु रूपरेखाएँ बनायीं। अत: विषय-वस्तु के गठन में मतभेद स्पष्ट है। 1975 की पाठ्यचर्या की रूप-रेखा के अनुसार, ”प्रत्येक विषय की आवश्यक इकाइयों की पहचान करके उन्हें एक समग्र पाठ्यक्रम में सम्मिलित किया जाना चाहिए।“ 1988 की पाठ्यचर्या ने भी पाठ्यक्रम में कुछ विशेष बदलाव नहीं किया, किन्तु यह स्पष्ट कहा गया, ”सामाजिक विज्ञान की पाठ्यचर्या तैयार करने में अब से विशेष सावधानी बरती जाए ताकि किसी भी केन्द्रीय घटक को अनदेखा न किया जाए।“ परिणामस्वरूप माध्यमिक स्तर पर, इसके अन्तर्गत चार पुस्तकों को स्थान दिया गया- इतिहास, भूगोल, नागरिक शास्त्र और अर्थशास्त्र। राष्ट्रीय पाठ्यचर्या की रूपरेखा 2000 ने सामाजिक अध्ययन की पुस्तकों में निहित सूचनाओं की बोझिलता को समझा और बोधगम्य पाठ्यक्रम पर बल दिया, ताकि विद्यार्थी स्वयं के निजी अनुभवों से पाठ को बेहतर समझ सके। इस रूपरेखा में स्पष्ट सुझाव है, ”भूगोल, इतिहास, नागरिक शास्त्र, अर्थशास्त्र और समाज शास्त्र से संतुलित ढंग से विषय-वस्तु ली जा सकती है जिन्हें जटिल से सरल तथा अप्रत्यक्ष से प्रत्यक्ष की ओर उपयुक्त क्रम से रखा जाए।“ यही वजह है कि सामाजिक अध्ययन की पाठ्य-पुस्तकों को विषय-वस्तु के अनुसार क्रमबद्ध किया गया है, जिसमें विषय क्षेत्रों में अन्तर्संबंध स्थापित करने का प्रयास किया गया है।
स्वतंत्र विषय के रूप में सामाजिक अध्ययन
जेम्स हैमिंग के अनुसार, ”सामाजिक अध्ययन बहुत से विषय का सम्मिश्रण नहीं है। यह एक स्वतंत्र अध्ययन-क्षेत्र है। वास्तव में यह ऐतिहासिक, भौगोलिक और सामाजिक संबंधों तथा अंतर्संबंधों का अध्ययन है।“ एम.पी. मुफात के अनुसार, ”सामाजिक अध्ययन वह क्षेत्र है जो मूलभूत मूल्यों, वांछित आदतों और स्वीकृत वृत्तियों तथा उन महत्त्वपूर्ण कुशलताओं के निर्माण के लिए आवश्यक है जिनको प्रभावशाली नागरिकता का आधार माना जाता है।
समसामयिक जीवन पर आधारित
एम.पी. मुफात के अनुसार, ”सामाजिक अध्ययन ज्ञान का वह क्षेत्र है जो युवकों को आधुनिक सभ्यता के विकास को समझने में सहायता करता है। ऐसा करने के लिए यह आपकी विषय-वस्तु को समाज, विज्ञान तथा समसामयिक जीवन से प्राप्त करता है।“
जेम्स हैमिंग के अनुसार, ”सामाजिक अध्ययन में हम मनुष्य के जीवन का स्थान व समय विशेष के अनुसार अध्ययन करते हैं। अत: हम उन सभी विषयों का उपयोग करते हैं, जो हमें उसकी समस्याओं को समझने और यह जानने में सहायता करते हैं कि उन समस्याओं से वह पहले कैसे निबटता था और अब कैसे निबटता है। इसका मुख्य लक्ष्य तो वर्तमान की समस्याओं को भली प्रकार समझना है।“
मानवीय संबंधों के निर्माण का अध्ययन
सामाजिक अध्ययन बालक को स्पष्ट करता है कि काल, स्थान तथा समाज के अनुसार उसका क्या महत्त्व है। जेम्स हैमिंग के अनुसार, ”यह वर्तमान का अतीत से, स्थानीय का दूरवर्ती से तथा व्यक्तिगत जीवन का राष्ट्रीय जीवन से संबंध जोड़ने के अतिरिक्त संसार के विभिन्न भागों में बसे लोगों के जीवन व संस्कृति से भी हमारा संबंध स्थापित करता है।“
उत्तरदायित्वपूर्ण नागरिक का निर्माण
सामाजिक अध्ययन के विषय ज्ञान द्वारा उत्तरदायित्वपूर्ण नागरिक के निर्माण पर बल दिया जाता है। जे.एफ. फोरेस्टर के अनुसार, ”जैसा कि नाम से ही संकेत मिलता है, सामाजिक अध्ययन समाज का अध्ययन है और इसका मुख्य लक्ष्य बालकों को अपने चारों ओर के संसार को तथा इसका निर्माण कैसे हुआ समझने में सहायता करना है ताकि वे उत्तरदायित्वपूर्ण नागरिक बन सकें।“
सामाजिक विज्ञान की धारणाएँ
प्राय: सामाजिक विज्ञान को लेकर छात्र और अध्यापक के मन में कई प्रकार की भ्रांतियाँ होती हैं। यही वजह है कि विज्ञान को सामाजिक विज्ञान से बेहतर विषय माना जाता है। इसी तरह पाठ्य-पुस्तक के विभिन्न खंडों में विभिन्न विवरण खंडित रूप से दिया होता है। इसी प्रकार कक्षा में अध्यापक या तो पूर्ण रूप से भूगोल का पाठ पढ़ाता है या पूर्ण रूप से इतिहास का। सामाजिक अध्ययन का ऐसा पाठ तो वह कभी पढ़ाता ही नहीं जो बालकों के तात्कालिक, सामाजिक व भौतिक वातावरण से संबद्ध हो। ज्ञात हो कि सामाजिक विज्ञान विषयों का सम्मिश्रण नहीं है। यह ऐतिहासिक, भौगोलिक और सामाजिक संबंधों तथा अंत: संबंधों का अध्ययन है।
यह विषय बालक को स्पष्ट करता है कि काल, स्थान तथा समाज के अनुसार उनका क्या महत्त्व है। इसके अध्ययन का मुख्य लक्ष्य वर्तमान सामाजिक समस्या को भली प्रकार समझना है। श्री एम.पी. मुफात का विचार है – ”जीवन की कला एक ललित कला है और सामाजिक अध्ययन इसके समझने में सहायता करता है।“ भारत में माध्यमिक शिक्षा आयोग की रिपोर्ट के अनुसार, ”सामाजिक अध्ययन भारतीय शिक्षा क्षेत्र में एक नया शब्द है। यह उस सारे क्षेत्र के लिए प्रयुक्त होता है जिसका संबंध पहले इतिहास, भूगोल, अर्थशास्त्र व नागरिक शास्त्र से था।
सामाजिक अध्ययन और सामाजिक विज्ञान में अंतर
सामाजिक अध्ययन और सामाजिक विज्ञान में अंतर को निम्नलिखित हैं:
• सामाजिक विज्ञान के विपरीत सामाजिक अध्ययन की सामग्री का चुनाव प्रमुख रूप से स्कूल में पढ़ाने के लिए किया जाता है। अत: इस सामग्री में सामाजिक विज्ञानों के केवल वे भाग ही सम्मिलित होते हैं जो स्कूल के बालकों के लिए उपयोगी हों।
• सामाजिक विज्ञान का क्षेत्र सामाजिक अध्ययन की तुलना में व्यापक होता है।
• सामाजिक विज्ञान का सरल एवं पुनर्गठित रूप सामाजिक अध्ययन है।
• सामाजिक अध्ययन मानव-संबंधों का विवेचन प्रौढ़ स्तर पर नहीं, अपितु बाल स्तर पर करता है।
• सामाजिक अध्ययन अपेक्षाकृत सरल, रोचक, प्रभावोत्पादक व उपयोगी होता है।
• यह अंतर सैद्धांतिक न होकर प्रायोगात्मक है।
• जहाँ सामाजिक विज्ञान मानव-संबंधों का सैद्धांतिक वर्णन है, वहीं सामाजिक अध्ययन उसका क्रियात्मक रूप है।
• सामाजिक विज्ञान जहाँ भिन्न-भिन्न विषयों के रूप में पढ़े जाते हैं, वहीं सामाजिक अध्ययन मानव-संबंधों को अपना केन्द्र मानकर उसका अध्ययन करता है।
सामाजिक अध्ययन एवं सामाजिक विज्ञान के बीच सह-संयोजी संबंध
सामाजिक अध्ययन एवं सामाजिक विज्ञान के बीच सह-संयोजी संबंध को निम्नलिखित रूप से समझा जा सकता है:
• सामाजिक अध्ययन का क्षेत्र काफी व्यापक है। अत: आवश्यक सामान्य ज्ञान की रूपरेखाएं सुनिश्चित करने के लिए यह आवश्यक है कि इसकी सीमाएं निर्धारित की जाएं। दूसरे शब्दों में, सामाजिक अध्ययन एवं सामाजिक विज्ञान के बीच सह-संयोजी संबंध स्थापित कर विषय की सार्थकता पर बल दिया जाए।
• सामाजिक अध्ययन में विभिन्न विषयों से केवल व्यावहारिक ज्ञान की बातें ही ग्रहण करनी चाहिए और ऐसी सामग्री को छोड़ देना चाहिए, जिसका सामाजिक मूल्य कुछ भी न हो।
• सामाजिक विज्ञान से उन्हीं साधारण ज्ञान एवं अनुभव को सम्मिलित किया जाना चाहिए, जो बालकों के दैनिक जीवन के लिए उपयोगी हों।
• सामाजिक अध्ययन एवं सामाजिक विज्ञान अंत: अनुशासित विषय हैं। इनकी सामग्री मानव विज्ञान एवं अनुभवों पर आधारित है।
• हमें चाहिए कि सामाजिक विज्ञान की गंभीरता एवं गहनता को त्याग कर सामाजिक अध्ययन में उन्हीं भाग को शामिल करें, जो स्पष्ट, सरल और बोधगम्य हों।
• सामाजिक उपादेयता सामाजिक अध्ययन की पहली शर्त है, अत: सामाजिक विज्ञान से उन्हीं विषयों का चयन कर सामाजिक अध्ययन में स्थान देना चाहिए जो आम जीवन में ज्यादा जरूरी हों।
सामाजिक अध्ययन और सामाजिक विज्ञान का पाठ्यक्रम
सामाजिक अध्ययन और सामाजिक विज्ञान का पाठ्यक्रम काफी वृहद है। यह एक बहुशाखी विषय है। अत: इनकी सामग्री ज्ञान की अनेक शाखाओं से चुनकर ली जाती हैं। सामाजिक अध्ययन सामाजिक विज्ञान की प्रयोगात्मक शाखा है, जिसका उद्देश्य भावी योग्य नागरिक का निर्माण करना है। समाज की बदलती परिस्थितियों और समस्याओं के साथ सामाजिक अध्ययन का क्षेत्र लगातार बढ़ता जाता है। इसकी शिक्षण पद्धति प्रयोगवादी दार्शनिकता पर आधारित है। यह समाज एवं छात्रों को भावी जीवन में सामाजिक सामंजस्य स्थापित करने हेतु प्रेरित करती है। इनके पाठ्यक्रम में मानव तथा मानव-सामाजिक वातावरण पर विशेष बल दिया जाता है। अत: समुदाय के सभी स्तरों का अध्ययन किया जाता है। जैसे- स्थानीय, प्रादेशिक, राष्ट्रीय तथा अन्तर्राष्ट्रीय स्तर। इनके पाठ्यक्रम में मनुष्य के इतिहास के साथ-साथ समसामयिक जीवन एवं समस्याओं पर अधिक बल होता है। सामाजिक अध्ययन एवं भौतिक विज्ञान में गूढ़ संबंध है। यह स्पष्ट है कि भोजन, वस्त्र, मकान, ऋतु, यातायात तथा संचार आदि से सामाजिक विज्ञान एवं सामाजिक अध्ययन का गहरा संबंध है। औषधि विज्ञान, वास्तुकला, गणित, कला, भाषा आदि विषयों का सामाजिक अध्ययन से गहरा संबंध है क्योंकि ये सभी विषय मानव के आम जीवन से जुड़े हैं एवं सामाजिक अध्ययन मानव जीवन का अध्ययन है। प्राथमिक कक्षाओं के लिए प्राकृतिक एवं सामाजिक पर्यावरण को भाषा और गणित के अविभाज्य अंग के रूप में पढ़ाया जाना चाहिए। 3-5
तक की कक्षाओं के लिए पर्यावरण अध्ययन को नये विषय के रूप में शामिल किया जाना चाहिए। वहीं, उच्च प्राथमिक स्तर पर सामाजिक विज्ञान में इतिहास, भूगोल, राजनीतिशास्त्र और अर्थशास्त्र को शामिल किया जाना चाहिए।