अध्याय 1 भूगोल सामाजिक अध्ययन एवं विज्ञान के रूप में भूगोल की अवधारणा

भूगोल की अवधारणा
भूगोल शब्द ‘भू + गोल’ की संधि से बना है। ‘भू’ का अर्थ होता है, धरती/पृथ्वी। ’गोल’ शब्द धरती की आकृति के बारे में है। अंग्रेजी में इसे ‘Geography’ कहा जाता है। यह दो यूनानी शब्दों के मेल से बना है, जो हैं Geo और Graphia। Geo का अर्थ होता है पृथ्वी और Graphia का अर्थ होता है लिखना या वर्णन करना। इन शब्दों से यह बोध होता है कि भूगोल वह शास्त्र है जो पृथ्वी के धरातल का वर्णन करता है। सीमित संसाधनों और ज्ञान की सीमा की वजह से आरंभ में भूगोल विषय के अंतर्गत केवल धरती की ऊपरी सतह, विभिन्न क्षेत्र एवं उनकी स्थिति आदि का अध्ययन किया जाता था। ज्ञान एवं तकनीक के प्रसार के साथ भूगोल के अध्ययन का दायरा भी बढ़ता गया। अब इसके अंतर्गत अनेक पक्षों का विकास हो गया है। अब इसमें धरती के धरातल, धरती के भूगर्भ, परिस्थितिकी, वायुमंडल, मौसम व इनसे संबंधित विभिन्न सहायक उपकरणों के बारे में अध्ययन किया जाने लगा है।
‘Geographia’ शब्द का सर्वप्रथम प्रयोग ’इरैटोस्थनीज’ (276–194 ई.पू.) ने किया था। वैदिक काल में भूगोल से संबंधित वर्णन वैदिक रचनाओं में प्राप्त होते हैं। ब्रह्मांड पृथ्वी, वायु, जल, अग्नि, आकाश, सूर्य, नक्षत्र तथा राशियों का विवरण वेदों, पुराणों और अन्य ग्रंथों में दिया गया है। यूरोपीय विद्वानों में 900 ई.पू. ’होमर’ ने पृथ्वी को चौड़े थाल के समान और ऑसनस नदी से घिरी हुई बताया था। मिलेट्स के ’थेल्स’ ने सर्वप्रथम बताया कि पृथ्वी मंडलाकार है। पाइथैगोरियन संप्रदाय के दार्शनिकों ने मंडलाकार पृथ्वी के सिद्धांत को मान लिया था क्योंकि मण्डलाकार पृथ्वी ही मनुश्य के समुचित वासस्थान के योग है।

भूगोल: विज्ञान के रूप में परिभाषाएँ
‘‘भूगोल पृथ्वी की झलक को स्वर्ग से देखने वाला आभामय में विज्ञान है।’’ – क्लाडियस टॉलमी ‘‘भूगोल एक ऐसा स्वतंत्र विषय है, जिसका उद्देश्य लोगों को इस विश्व का, आकाशीय पिंडों का, स्थल, महासागर, जीन-वस्तुओं, वनस्पतियों, फलों एवं भूधरातल के क्षेत्रों में देखी जाने वाली प्रत्येक अन्य वस्तु का ज्ञान प्राप्त कराना है।’’ – स्टैबो उपर्युक्त परिभाषाओं में हम देख रहे हैं कि भूगोल एक विज्ञान के रूप में भी स्वीकार्य है, क्योंकि भूगोल शृंखलाबद्ध विज्ञानों से प्राप्त ज्ञान का उपयोग अपनी क्रियाकलापों, अवधारणाओं की पुष्टि, वैज्ञानिक आधार पर सत्यता की परख तथा नये-नये शोधों के आधार भूगोल के शोध को नया आयाम देने के लिए करता है। दूसरी तरफ यह अपने सामाजिक संबद्धता की वजह से सामाजिक विज्ञान भी है।
20वीं शताब्दी में प्रसिद्ध जर्मन विद्वान हैटनर ने भूगोल को एक क्षेत्र का विवरण विज्ञान माना और भूगोल की परिभाषा देते हुए लिखा है: भूगोल एक क्षेत्र विवरण विज्ञान है।
विज्ञान की प्रमुख विशेषता उसकी खोजी प्रवृत्ति, वस्तुओं या घटनाओं के होने के कारण की खोज, वस्तुपरकरता, विश्लेषण, संबंधों तथा बनावट के वैज्ञानिक तथ्यों को उजागर करना है। विज्ञान एवं वैज्ञानिक प्रवृत्ति मनुष्य की चीजों की अंतरिक संरचना, उत्पत्ति, विकास एवं बदलाव आदि के अध्ययन के साथ-साथ अन्य समान विषयों, वस्तुओं और क्रियाकलापों, घटनाक्रमों के सापेक्ष या संबंद्ध होकर शोध की पुष्टि करता है। भूगोल विज्ञान के इन सभी गुणों को आत्मसात् करता है। यह भौगोलिक संरचना, वायुमंडल, खगोलीय विषय, पारिस्थितिकी, पेड़-पौधे, वन पर्वत, पठार, जीव-जंतु, खानपान, पोशाक, आवास, पेशा आदि का वैज्ञानिक तर्कों पर विचार-विश्लेषण करता है। अत: हम कह सकते हैं कि एक ओर भूगोल समाज के आधार पर सिद्धांतों एवं अवधारणाओं को गढ़ता है तो दूसरी ओर उसकी व्याख्या विज्ञान बनकर करता है।

भूगोल का महत्त्व
भूगोल हमारे जीवन में कई आवश्यक चीजों को निर्धारित करता है या हम यूँ कहें किसी क्षेत्र के भूगोल का व्यक्ति के जीवन, रहन-सहन, खान-पान, पोशाक, पर्व-त्योहार, मान्यताएँ आदि पर भी सीधा प्रभाव होता है। उदाहरणतया, समतल क्षेत्र के लोग चावल, रोटी दोनों खाते हैं। वे कपड़े भी मौसम के अनुसार पहनते हैं। रेगिस्तान के खान-पान में बिना पानी वाले अनाज/मोटे अनाज की बहुतायत है। मकान भी ऐसे बनाये जाते हैं, जिनसे जल संरक्षण को बढ़ावा मिले और घर ठंडा रहे। इसी तरह कश्मीर के लोग अपने कपड़ो में अंगीठी जलाकर रखते हैं। इस तरह हम भूगोल का महत्व देख सकते हैं। भूगोल के समुचित अध्ययन एवं शोध के उपरांत जीवन को सरल बनाने वाले अनेक साधनों की खोज हुई है। विज्ञान ने एक कदम आगे बढ़ते हुए फसलों के जीन में परिवर्तन कर ऐसी साग, सब्जी, फसल बनाई हैं जो विपरीत परिस्थितियों में भी जीवन-यापन में सहयोगी हैं। विभिन्न प्राकृतिक आपदाएँ जानमाल को भारी नुकसान पहुँचाती हैं। भूगोल के अध्ययन के माध्यम से हम प्राथमिक स्तर पर रोकथाम एवं बचाव के उपाय के बारे में जान सकते हैं। साथ ही, ऐसे घरों/मकानों साधनों का निर्माण किया जाता है, जिससे कम से कम नुकसान हो। आज भूगोल के अध्ययन के माध्यम से हम भूकंप, सुनामी, बाढ़, चक्रवात आदि का पूर्व आकलन करने में सक्षम हो पाये हैं। फलस्वरूप, घर, सड़क, पारिस्थितिकी आदि का निर्माण इन सबको ध्यान में रखकर ही किया जाने लगा है।

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