अध्याय 1. परिवार

परिवार सामाजिक संगठनों में सबसे महत्त्वपूर्ण‚ सर्वव्यापी एवं प्राथमिक सामाजिक संगठन या समूह है। मनुष्य के जीवन में परिवार का महत्त्वपूर्ण स्थान है। बालक परिवार में ही जन्म लेता है तथा परिवार में ही उसका पालन पोषण होता है। परिवार ही उसे पारिवारिक एवं सामाजिक प्राणी बनाता है। बालक की प्रथम पाठशाला परिवार होती है। परिवार समाज की एक महत्त्वपूर्ण इकाई है। सामाजीकरण‚ संस्कृति के हस्तान्तरण तथा सामाजिक नियंत्रण में भी परिवार की महत्त्वपूर्ण भूमिका होती है।
परिवार का अर्थ एवं परिभाषा−
परिवार शब्द लैटिन भाषा के ‘Famulus’ शब्द से बना है। इससे एक समूह का बोध होता है‚ जिसमें माता−पिता‚ अविवाहित बच्चे‚ नौकर आते हैं।
मैकाइवर तथा पेज के अनुसार− ‘‘परिवार उस समूह को कहते हैं‚ जो यौन सम्बन्धों पर आधारित है तथा इतना छोटा और शक्तिशाली है कि संतान के जन्म और पालन-पोषण की व्यवस्था करने की क्षमता रखता है।’’ क्लेयर के अनुसार− ‘‘परिवार से तात्पर्य माता−पिता और बच्चों के सम्बन्धों की व्यवस्था से है।’’
• मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है−
अरस्तू परिवार की विशेषताएँ−
विवाह एवं यौन सम्बन्ध
• वंश परम्परा एवं नामकरण की प्रणाली
• एक सामान्य निवास स्थान
• सार्वभौमिक संगठन
• परस्पर आर्थिक बंधन
• परिवार के सदस्यों में उत्तरदायित्व की भावना।
परिवार के प्रकार−आकार के आधार पर मनुष्यों के परिवार दो प्रकार के होते हैं−
(1) एकल परिवार (Nuclear Family)
(2) संयुक्त परिवार (Joint Family)
एकल परिवार− इस तरह के परिवार में माँ−बाप तथा उनके अविवाहित बच्चे शामिल होते हैं। यह परिवार बहुत छोटा होता है।
संयुक्त परिवार− इस तरह के परिवार में दादा−दादी‚ चाचा‚ बुआ‚ ताऊ−ताई‚ माँ−बाप और बच्चे होते हैं। यह परिवार बड़ा होता है।
• किसी एक परिवार को एक पेड़ के रूप में दर्शाया जा सकता है जिसे पारिवारिक वृक्ष कहते हैं।
एकल परिवार के गुण−
एकल परिवार के सदस्य अधिक आत्मनिर्भर होते हैं और वे आत्मविश्वास से भरे हुए व किसी भी काम को करने में सक्षम होते हैं।
• एकल परिवार सुखी परिवार होता है।
• एकल परिवार सदस्यों को अपने व्यक्तित्व का विकास करने का अवसर प्राप्त होता है।
• एकल परिवार अपने सभी सदस्यों का शिक्षित होने का समान अवसर देता है।
• एकल परिवार में पारिवारिक कलह की सम्भावना नहीं होती है।
• एकल परिवार में सामान्यत: कम आय होते हुये भी आर्थिक परेशानियों का सामना नहीं करना पड़ता है। परिवार में सभी लोग खुश एवं प्रसन्नचित रहते हैं।
एकल परिवार के दोष−
एकल परिवार में प्राय: बच्चे का उचित देखभाल नहीं हो पाता है।
• एकल परिवार में स्वार्थ की प्रबल भावना पनपती है।
• एकल परिवार को बुरे समय तथा अन्य संकट में कोई आर्थिक शारीरिक व भावनात्मक सहारा नहीं मिलता है।
संयुक्त परिवार के गुण−
संयुक्त परिवार के सदस्यों में नागरिक गुणों का विकास होता है।
• संयुक्त परिवार में घरेलू एवं बाह्य कार्यों हेतु श्रम विभाजन की सुविधा होती है।
• परिवार के सदस्यों में त्याग‚ सहयोग जैसे मानवीय मूल्यों का विकास होता है।
• संयुक्त परिवार के सदस्यों को आर्थिक परेशानियों का सामना नहीं करना पड़ता है।
• विभिन्न अवसरों पर परिवार के सभी सदस्य एक-दूसरे को सहयोग देते हैं और अनुष्ठानों को मिल-जुल कर पूरा करते हैं। वे सभी भावात्मक रूप से आपस में जुड़े रहते हैं।
संयुक्त परिवार के दोष−
संयुक्त परिवार में पारिवारिक कलह की संभावना होती है।
• संयुक्त परिवार में व्यक्ति के विकास के सम्पूर्ण अवसर नहीं होते हैं।
• संयुक्त परिवार में स्त्रियों की दुर्दशा होती है। इन परिवारों में कुछ महिलाओं को घर का सारा काम करना पड़ता है जिससे उन्हें अपना व्यक्तित्व निखारने का अवसर नहीं मिल पाता है।
• संयुक्त परिवार में बालकों का विकास पूर्णरूप से नहीं हो पाता है।
संयुक्त परिवार के विघटन के कारण− संयुक्त परिवार प्रथा में दोष है। इन दोषों के कारण संयुक्त परिवार व्यक्तिगत परिवारों में बदलते जा रहे हैं। संयुक्त परिवार के विघटन के कारण निम्न प्रकार हैं−
औद्योगीकरण− औद्योगीकरण के कारण परिवार के सदस्यों को काम के लिए शहर जाना पड़ता है। वे सदस्य वहीं बस जाते हैं जिसके कारण वह एक स्वतंत्र परिवार के रूप में अपना अस्तित्व कायम कर लेते हैं।
जनसंख्या वृद्धि− संयुक्त परिवार में जैसे−जैसे जनसंख्या में वृद्धि होती जाती है वैसे−वैसे स्थानाभाव के कारण उसमें से धीरे−धीरे सदस्य अलग होकर अपना एक परिवार बसा लेते हैं।
नगरीकरण− औद्योगीकरण द्वारा औद्योगिक केन्द्रों में जनसंख्या में वृद्धि हुई है। इस प्रकार अनेक नवीन नगरों का जन्म हुआ है। इन नगरों में जनसंख्या के अनुपात में निवास स्थान की कमी है‚ जिसके कारण पूरा परिवार संयुक्त रूप से नहीं रह सकता है।
शैक्षिक कारण− शैक्षिक अवसरों में बढ़ोत्तरी के कारण शिक्षित युवकों ने पढ़ी−लिखी लड़कियों से विवाह करना शुरू किया जिसके कारण संयुक्त परिवार पर विपरीत प्रभाव पड़ा है।
जाति व्यवस्था का विघटन− जाति व्यवस्था के विघटन से संयुक्त परिवार को आघात पहुँचा है‚ जो व्यक्ति जाति व्यवस्था द्वारा लगाये गए प्रतिबन्धों को तोड़ता है उसे संयुक्त परिवार से अलग कर दिया जाता है।
नोट− संयुक्त परिवार प्रथा भारतीय संस्कृति की आधारशिला है। संयुक्त परिवार हिन्दू सामाजिक संगठन का प्रमुख आधार है।
• संयुक्त परिवार का मुखिया घर का सबसे बड़ा व्यक्ति होता है।
परिवार का मुखिया परिवार के सभी सदस्यों की देखभाल करता है। परिवार के सदस्यों की शिक्षा−दीक्षा तथा विवाह सम्बन्ध आदि की जिम्मेदारी परिवार के मुखिया की होती है। परिवार के कमाने वाले सदस्य चाहे वे व्यापार से कमाते हैं और चाहे नौकरी से अपनी कमाई को परिवार के मुखिया के हाथ में देते हैं। उसी आय से परिवार का मुखिया परिवार की आवश्यकताओं की पूर्ति बिना किसी भेदभाव के करता है।
परिवार के कार्य−
परिवार ही बच्चे का पहला स्कूल होता है। बच्चा सबसे पहले परिवार से ही सीखना शुरू करता है। यही से बच्चें के सामाजीकरण का पाठ शुरू होता है। बालक सर्वप्रथम अनौपचारिक रूप से शिक्षा ग्रहण परिवार से करना प्रारम्भ करता है।
• परिवार बच्चे के विकास में मदद करता है। यह माना जाता है कि जैसा परिवार होगा वैसा ही बच्चा विकास करेगा।
• परिवार से बच्चे खुशी मनाना और दु:ख बाँटना सीखते हैं।
• परिवार से बच्चे अपनी संस्कृति को सीखते हैं।
• परिवार के माध्यम से शैक्षणिक कार्य एवं मनोरंजनात्मक कार्य पूरे किये जा सकते हैं।
• परिवार में लिंग आधारित चुनौतिया होती हैं जिसकी वजह से बालक एवं बालिकाओं और स्त्री-पुरुष में भेदभाव किया जा सकता है।
• परिवार से बच्चे मिल-जुल कर रहना सीखते हैं।
बालक की शिक्षा में परिवार का महत्त्व−
बालक की शिक्षा में परिवार का बहुत ही महत्त्वपूर्ण स्थान है।
बालक की शिक्षा का आरम्भ परिवार में ही होता है। इसलिए परिवार को बालक की प्रथम पाठशाला कहा गया है।
• परिवार में बालक सबसे अधिक माँ के सम्पर्क में रहता है। माँ की आदतों कार्यों और व्यवहार का प्रभाव उसके लिए अत्यन्त महत्त्वपूर्ण होती है। प्रत्येक परिवार की भाषा‚ रहन-सहन‚ आचार-विचार रुचियाँ आदि अलग-अलग होती हैं। इसलिए दो परिवारों के बालकों में भिन्नता दिखाई पड़ती है।
नोट− ब्रिटिश शासन के दौरान भारत में लड़कों एवं लड़कियों की विवाह की उम्र शारदा अधिनियम 1929 के तहत लड़कों के लिए 18 वर्ष जबकि लड़कियों के लिए 14 वर्ष निर्धारित की गई थी। बाद में हिन्दू विवाह अधिनियम 1955 के द्वारा लड़कों के लिए न्यूनतम उम्र 21 वर्ष तथा लड़कियों के लिए 18 वर्ष निर्धारित की गयी।
मेरा परिवार‚ मेरी प्रेरणा
जो लोग देख नहीं सकते उनके पढ़ने के लिए एक खास लिपि में किताबें तैयार की जाती हैं जिसे ब्रेल कहते हैं। ब्रेल एक मोटे कागज पर एक नुकीले औजार से बिंदु बनाकर लिखा जाता है। ब्रेल कागज पर हाथ फेरकर पढ़ा जाता है कि उस पर क्या लिखा है।
लुई ब्रेल फ्रांस का रहने वाला था। जब तीन साल का था तब एक नुकीले औजार से उसकी आँख में चोट लग गई और उसकी आँखे खराब हो गई। उसे आँखों से दिखना बिल्कुल बंद हो गया। उसकी पढ़ने में बहुत रुचि थी। वह पढ़ने की तरकीबें सोचता रहता था। आखिर उसने ढूँढ़ ही लिया एक तरीका−छूकर पढ़ने का। पढ़ने की यह विधि बाद में ब्रेल लिपि के नाम से जानी जाने लगी।
• इस तरह की लिपि में मोटे कागज पर उभरे बिंदु बने होते हैं।
उभरे होने के कारण इन्हें छूकर पढ़ा जा सकता है। यह लिपि छ: बिन्दुओं पर आधारित होती है। आजकल ब्रेल में नए−नए परिवर्तन हुए हैं जिससे इसे पढ़ना−लिखना और भी आसान हो गया है। ब्रेल लिपि अब कम्प्यूटर के द्वारा भी लिखी जा सकती है।
• जो लोग सुन नहीं सकते उनके लिए सांकेतिक भाषा (Sign language) इस्तेमाल की जाती है। सांकेतिक भाषा पर आधारित विशेष कार्यक्रम टी.वी. पर प्रसारित होते हैं।
• सुधा चंद्रन को भरत नाट्‌यम में प्रसिद्धि प्राप्त है। एक दुर्घटना के कारण उनका एक पैर काट दिया गया। कृत्रिम पैर (Artificial leg) की सहायता से नृत्य करके उन्होंने प्रसिद्धि प्राप्त की।
• रवीन्द्र जैन को आँखों से दिखाई नहीं देता। उन्होंने बहुत सारी फिल्मों और टी.वी. कार्यक्रमों में अपना संगीत दिया है। उनके अच्छे संगीत के लिए उन्हें कई पुरस्कार प्रदान किए गए हैं।
• शरत गायकवाड़ का एक हाथ खराब है। उन्होंने तैराकी के क्षेत्र में भारत का नाम रोशन किया है।

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