TET Guide L2HWL

अध्याय 21. राष्ट्रीय पाठ्यचर्या की रूपरेखा

बच्चों को कैसे तथा किस प्रकार पढ़ाया जाए • क्रिस्टोफर डे (1999) के अनुसार, बच्चों को पढ़ाने के लिए शिक्षकों के व्यावसायिक विकास को एक जीवन-पर्यंत चलने वाली गतिविधि के रूप में देखा जाना चाहिए।• व्यावसायिक और सहृदय शिक्षक तैयार करने के लिए (एनसीएफटीई, नेशनल काउसिंल फॉर टीचर एजुकेशन, 2009) एक व्यावसायिक कार्यबल का विकास …

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अध्याय 16. विकलांग तथा अधिगम अशक्तता वाले बालकों की पहचान

विकलांग बालक • विकलांग बालक में शारीरिक एवं मानसिक या सांवेगिक रूप से कमियाँ पाई जाती है जिस कारण से ये बालक सामान्य बालकों की तुलना में पिछड़ जाते हैं। विकलांग शिक्षार्थियों की शिक्षा का उद्देश्य उन्हें वैयक्तिक, सामाजिक एवं व्यावसायिक रूप से जीवन में समायोजन सीखाना होता है। इन बालकों के लिए इनकी आवश्यकतानुसार …

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अध्याय 1. वृद्धि एव विकास

विकास की परिभाषा विकास एक सतत् प्रक्रिया है। एक बालक का विकास जीवनपर्यन्त होता रहता है। बालक के विकास में शारीरिक, संवेगात्मक परिवर्तन, सामाजिक एवं मानसिक विकास शामिल होते हैं। यह प्रक्रिया बाह्य कारणों से प्रभावित होती है इसलिए विभिन्न चरणों में अपना स्वरूप बदलती है। विकास के फलस्वरूप हुए परिवर्तन परस्पर संबंधित होते हैं। …

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अध्याय 17. बच्चा: एक समस्या समाधानकर्ता तथा एक वैज्ञानिक अन्वेषक के रूप में

समस्या-समाधान का अर्थ • शिक्षार्थियों को शिक्षण काल में अनेक समस्याओं या कठिनाईयों सामना करना पड़ता है, जिसका समाधान उसे स्वयं करना पड़ता है। शिक्षण काल में आने वाली अधिगम कठिनाईयों को समस्या और उस समस्या को हल करने की प्रक्रिया को समाधान कहते हैं। समस्या समाधान का अर्थ है लक्ष्य को प्राप्त करने में …

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अध्याय 2. बाल विकास के सिद्धान्त

बाल विकास के सिद्धान्त बाल विकास, किसी बालक के व्यवहार में आने वाले गुणात्मक तथा परिमाणात्मक बदलाव का अध्ययन है। इसके अंतर्गत किसी बालक के जीवनकाल में हुए शारीरिक, सामाजिक, संज्ञानात्मक, मानसिक तथा भाशायी विकास को शामिल किया जाता है। इस अध्ययन को लेकर विभिन्न विद्वानों ने अलग-अलग सिद्धांत दिये हैं:• हरलॉक (Hurlock) के अनुसार, …

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अध्याय 18. बच्चों में सोचना तथा सीखना

बच्चे कैसे सोचते हैं? सोचना अथवा चिंतन बालक में किसी भी वस्तु या पदार्थ के ज्ञान के साथ प्रारम्भ हो जाता है। जब कोई बालक किसी वस्तु या घटना के सम्पर्क में आता है, तो वह सोचना प्रारम्भ करता है और यह जानने का प्रयास करता है कि उक्त वस्तु या घटना क्या है? इस …

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अध्याय 3. आनुवंशिकता तथा वातावरण का प्रभाव

आनुवंशिकता की परिभाषा तथा स्वरूप व्यक्तित्व को प्रभावित करने वाले प्रमुख घटकों में से आनुवंशिकता एक प्रमुख घटक है। अंग्रेजी भाषा में इसे हेरेडिटी (Heredity) कहते हैं। इसकी उत्पत्ति लैटिन शब्द हेरीडिटीस (Heredities) से हुई है। आनुवंशिकता का अर्थ व्यक्तियों या बच्चों में पीढ़ी-दर-पीढ़ी निरन्तर संचरित होने वाले बौद्धिक, शारीरिक, मानसिक तथा व्यक्तित्व संबंधी गुणों …

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अध्याय 19. अभिप्रेरणा तथा अधिगम

अभिप्रेरणा का अर्थ तथा परिभाषा • एक व्यक्ति या शिक्षार्थी के जीवन में प्रतिदिन प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से अभिप्रेरणा पायी जाती है। विद्यालय जाना पढ़ाई करना, व्यवसाय करना, खाना खाना, संगीत सुनना, सिनेमा देखना, खेल खेलना आदि सभी कार्यों के पीछे कोई न कोई अभिप्रेरणा विद्यमान रहती है। शिक्षार्थी का व्यवहार हमेशा ही कुछ …

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अध्याय 4. समाजीकरण की प्रक्रिया

समाजीकरण की अवधारणा • प्रत्येक व्यक्ति या बच्चा सामाजिक प्राणी के रूप में समाज में रहता है और समाज में स्वीकृति अथवा मान्यता प्राप्त करना चाहता है। एक व्यक्ति समाज के मानक रूपों के अनुसार व्यवहार करने का प्रयास करता है ताकि दूसरों के साथ सामंजस्य स्थापित कर सके। इस पूरी प्रक्रिया को हम समाजीकरण …

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अध्याय 20. संज्ञान तथा संवेग

संज्ञान का अर्थ • संवेदी सूचनाओं को ग्रहण करके उसका समुचित उपयोग करने को संज्ञान या समझ कहते हैं।• रेबर (1995) के अनुसार, ‘संज्ञान का तात्पर्य ऐसे मानसिक व्यवहारों से है, जिनका स्वरूप अमूर्त होता है और जिनमें प्रतीकीकरण, सूझ, प्रत्याशा, जटिल नियम उपभोग, प्रतिमा, विश्वास, अभिप्राय, समस्या समाधन तथा अन्य शामिल होते हैं।’• संज्ञानात्मक …

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